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90 वर्षों में बदलता धरती का स्वरूप
आज धरती का जहां 75 फीसदी से अधिक हिस्सा बंजर हो चुका है या लगभग होने की कगार पर है । वहीं हर बरस लगभग 41.8 करोड़ हेक्टेयर भूमि बंजर होती जा रही है जो कि लगभग आधे यूरोप के बराबर है

1951-1980   ➜   1981-2010   ➜   2011-2040

दुनिया भर में मुख्यतः अफ्रीका और एशिया महाद्वीप में मरुस्थलीकरण तेजी से बढ़ रहा है। आंकड़ों के अनुसार सूखे क्षेत्रों में होने वाले मरुस्थलीकरण का 67 फीसदी हिस्सा इन्ही दो महाद्वीपों में हो रहा है । जबकि 43 फीसदी से अधिक बड़े शहर (जिनकी आबादी तीन लाख से अधिक है) इन्ही शुष्क क्षेत्रों में बसती है, मगर दुखद है कि यह शहर भी जल्द ही मरुस्थलीकरण का शिकार हो जायेंगे, जिसका प्रभाव न केवल वहां के पर्यावरण पर पड़ेगा बल्कि वहां रहने वाले लोगों पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ेगा। लोगों के रहन सहन और अन्य गतिविधियों में भी परिवर्तन आ जाएगा और गैर शुष्क क्षेत्रों में बसे 70 फीसदी शहर जल्द ही सूखे की मार झेलने को मजबूर हो जाएंगे।

आईये मानचित्रों की मदद से समझते हैं कि कैसे 90 वर्षों में बदल रहा है हमारी धरती का स्वरूप

ललित मौर्य, राजू सजवान, स्निग्धा दास, और रजित सेनगुप्ता


 


बंजर होती धरती
1951-1980

दुनिया भर में 610 करोड़ हेक्टेयर* भूमि शुष्क है। जिसमें से लगभग 100 करोड़ हेक्टेयर भूमि मानव सभ्यता के उदय से ही प्राकृतिक रूप से बंजर या रेगिस्तान के रूप में हैं। वहीं बाकी बची 510 करोड़ हेक्टेयर भूमि में आ रही गिरावट और बढ़ते मरुस्थलीकरण के लिए सीधे तौर पर हम मनुष्य ही जिम्मेदार हैं, जिन्होंने अपने उत्थान के बाद से इसका व्यापक दोहन किया है ।

(शुष्कता से तात्पर्य, लम्बे समय तक किसी दिए नियत स्थान पर सूखे की मात्रा से है। जहां वर्षा इतनी कम होती है कि पेड़ – पौधे नहीं उग सकते । वहीं शुष्कता सूचकांक, संभावित वार्षिक वाष्पीकरण (पीईटी) और वार्षिक वर्षा (पी) का अनुपात है। जबकि शुष्कता सूचकांक में कमी आने का मतलब है कि सूखे के हालात बन रहे हैं । वहीं इसके विपरीत, शुष्कता सूचकांक में वृद्धि दर्शाती है कि भूमि में नमी की मात्रा बढ़ रही है ।)

*1992 में यूएनईपी द्वारा मरुस्थलीकरण पर प्रकाशित पहली वैश्विक एटलस पर आधारित
आंकड़ों का स्रोत: यूरोपियन यूनियन के संयुक्त अनुसंधान केंद्र द्वारा 2018 में जारी वर्ल्ड एटलस ऑफ डेजर्टिफिकेशन का तीसरा संस्करण

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भारत सहित दुनिया के कई देशों में दिखा बड़ा बदलाव
1981-2010

1951 से 1980 और 1981 से 2010 के बीच की अवधि में जहां सूखे क्षेत्रों में 0.35 फीसदी की वृद्धि की गयी। वही इस अवधि के दौरान भारत, पूर्वी ऑस्ट्रेलिया, यूरेशिया, उत्तरी अमेरिका, उत्तरी चीन, दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका में धरती के बंजर होने की दर सबसे अधिक देखी गयी । जो स्पष्ट रूप से मानव के भूमि पर बढ़ते दबाव का द्योतक है ।



आंकड़ों का स्रोत: यूरोपियन यूनियन के संयुक्त अनुसंधान केंद्र द्वारा 2018 में जारी वर्ल्ड एटलस ऑफ डेजर्टिफिकेशन का तीसरा संस्करण

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सूखा ग्रस्त रहेगा आने वाला वक्त
2011-2040

2040 तक गैर-शुष्क प्रदेशों में बसे 70 फीसदी बड़े शहर सूखा ग्रस्त हो जायेंगे। जबकि बाकी बचे केवल 29 फीसदी शहर ही नम रह जाएंगे। जहां कृषि करना संभव हो सकेगा । संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार कई उष्णकटिबंधीय वन दशकों से वनों की कटाई संबंधी समस्या से जूझ रहे हैं जो कि धीरे-धीरे गायब हो रहे हैं। जिससे मरुस्थलीकरण की समस्या और गंभीर हो जाएगी । 2010 से 2015 के बीच उष्णकटिबंधीय वन सालाना 55 लाख हेक्टेयर की दर से नष्ट हुए हैं। रिपोर्ट में 11 उन नष्ट हुए वन क्षेत्रों के बारे में भी बताया गया है जहां 2015 से 2030 तक वनों के गंभीर क्षति की आशंका जताई गई है। इस सूची में अमेजन के जंगल शीर्ष पर हैं। यहां 2030 तक अनुमानित वन क्षति 2.3 से 4.8 करोड़ तक हो सकती है। अमेजन के बाद कतार में शामिल बोर्नियो में 2.1 करोड़ हेक्टेयर वन क्षेत्र और ग्रेटर मेकांग क्षेत्र में 1.5 से 3 करोड़ हेक्टेयर वन क्षेत्रों के 2030 तक नुकसान का अनुमान रिपोर्ट में लगाया गया है।


*3 लाख से अधिक जनसंख्या वाले शहर। वर्तमान में 1,692 बड़े शहर हैं, जिनमें से 1,109 गैर-शुष्क प्रदेशों में बसे हैं ।
आंकड़ों का स्रोत: यूरोपियन यूनियन के संयुक्त अनुसंधान केंद्र द्वारा 2018 में जारी वर्ल्ड एटलस ऑफ डेजर्टिफिकेशन का तीसरा संस्करण

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आंकड़ों का स्रोत:

✸   यूरोपियन यूनियन के संयुक्त अनुसंधान केंद्र द्वारा 2018 में जारी वर्ल्ड एटलस ऑफ डेजर्टिफिकेशन का तीसरा संस्करण