भारत में कब बदलेंगे हालात

आजादी के 72 साल बाद आज भी भारत में 94 फीसदी नौनिहालों को नहीं मिलता पोषक आहार, जबकि विडम्बना देखिये 58 फीसदी आज भी भरपेट नहीं सोते

किसी देश का भविष्य कैसा होगा, यह उसके बच्चों के भविष्य पर निर्भर होता है। पर जब विकास का आधार ही कुपोषित हो तो सोचिये वह देश के भविष्य में कितना योगदान देगा। सोचिये क्या होगा, जब देश के लगभग 58 फीसदी नौनिहालों (6 से 23 माह के बच्चों) को पूरा आहार ही न मिलता हो और जब 79 फीसदी के भोजन में विविधता की कमी हो। कैसे पूरे होंगे, उनके सपने जब लगभग 94 फीसदी के भोजन में विकास के लिए जरुरी पोषक तत्वों ही न हो। यह दुखद और चिंताजनक आंकड़ें भारत सरकार द्वारा किये गए राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण (2016 - 18) में सामने आये हैं, जिसमें देश के बच्चों और उनके पोषण पर एक व्यापक अध्ययन किया गया है। आइये, राज्यवार तरीके से जानते हैं, देश में क्या है स्थिति? और अभी स्वास्थ्य और पोषण के क्षेत्र में हमें कितना और विकास करना बाकि है। इस इन्फोग्राफिक में सिर्फ 6 से 23 माह के बच्चों में पोषण की स्थिति का विश्लेषण किया गया है, उससे अधिक आयु वर्ग के बच्चों का विश्लेषण इसके अगले भाग में किया जायेगा ।




79 फीसदी नौनिहालों के भोजन में है विविधता की कमी

भारत में बच्चों की एक बड़ी आबादी कुपोषण का शिकार है, जिसके पीछे की बड़ी वजह बच्चों के आहार में विविधता की कमी है। आंकड़ें दर्शाते हैं कि भारत में 79 फीसदी नौनिहालों के भोजन में विविधता की कमी है। हमारे देश में 6 से 23 माह के बच्चों के भोजन में विविधता के मामले में मेघालय की स्थिति सबसे अच्छी है, जहां 62.3 फीसदी बच्चों के भोजन में पर्याप्त विविधता है। उसके बाद सिक्किम (58.8), केरल (52.8), पश्चिम बंगाल (42.9), और पंजाब (41.2) का स्थान आता है। जबकि इसके विपरीत सबसे बुरी स्थिति झारखण्ड और राजस्थान की है, जहां केवल 11.6 फीसदी बच्चों के भोजन में पर्याप्त विविधता है। इसके बाद क्रमशः आंध्र प्रदेश (11.9), बिहार (13.2) , तेलंगाना (13.2), मध्यप्रदेश (16.4), गुजरात (16.5) और महाराष्ट्र (16.5) का स्थान आता है।



स्रोत: राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण (2016 - 18), स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार




स्रोत: राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण (2016 - 18), स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार

58 फीसदी आज भी भरपेट नहीं सोते

सोचिये, उस देश का क्या होगा, जहां आज भी 58 फीसदी बच्चों (6 - 23 माह) को आवश्यकता के अनुरूप भोजन नहीं मिलता है। भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा बच्चों में पोषण की स्थिति जानने के लिए किये गए राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण (2016-18) के अनुसार देश में आधे से अधिक बच्चों को जितनी बार भोजन मिलना चाहिए, उतनी बार नहीं मिलता। इस मामले में सबसे बुरी स्थिति आंध्र प्रदेश की है, जहां सिर्फ 22 फीसदी बच्चों को आवश्यकता के अनुरूप भोजन मिल पता है। इसके बाद क्रमशः पंजाब (22.6), गोवा (23), तमिलनाडु (24.1), दिल्ली (24.9) और महाराष्ट्र (26.9) का स्थान आता है। जहां बच्चों को जितनी बार भोजन मिलना चाहिए, उतनी बार मिल पाता है, आप खुद ही समझ सकते हैं कि कितनी बड़ी आबादी को भरपेट भोजन नहीं मिलता है। जबकि तुलनात्मक रूप से देश में सिक्किम (67.4) और केरल (65.9) की स्थिति ज्यादा बेहतर है, इसके बाद क्रमशः त्रिपुरा (62.5), झारखण्ड (60.6), छत्तीसगढ़ (57.1) और अरुणांचल प्रदेश (55.8) का स्थान आता है।


93.6 फीसदी को नहीं मिलता पोषक आहार, तो कैसे होगा विकास

भारत में 93.6 फीसदी नौनिहालों (6-23 माह) को पोषक आहार नहीं मिलता। यदि बच्चों को लंबे समय तक आवश्यक संतुलित आहार नहीं मिलता तो उनके शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है, जिससे वे आसानी से कई तरह की बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। साथ ही आहार में पोषण की कमी शारीरिक और बौद्धिक विकास को भी प्रभावित करती है। शोध दिखते हैं कि बच्चों को संतुलित आहार न मिलने के कारण वह मानसिक रूप से मजबूत नहीं रहते, जिसका प्रभाव भविष्य में उनके जीवन और उनकी कार्यक्षमता पर पड़ता है, जोकि देश की अर्थव्यवस्था के लिए भी बड़ा खतरा है। साथ ही बच्चों की आयु के शुरुआती सौपान में कुपोषण से ग्रसित होने से उनमें डायबिटीज, हाइपरटेंशन और हृदय रोग का खतरा बढ़ जाता है। आंकड़ों के अनुसार इस मामले में भारत में लगभग सभी राज्यों की स्थिति बहुत खराब है। सबसे बुरा हाल आंध्र प्रदेश का है, जहां केवल (1.3) फीसदी बच्चों को संतुलित आहार मिलता है, जबकि इसके बाद महाराष्ट्र (2.2), मिजोरम (2.8), गोवा (3.1) और राजस्थान (3.5) का स्थान आता है। जबकि देश में केवल सिक्किम (35.9) और केरल (32.6) ऐसे राज्य हैं, जहां 30 फीसदी से अधिक बच्चों को पोषक आहार मिल पाता है। बाकि सभी राज्यों की स्थिति बद से बदतर है।



स्रोत: राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण (2016 - 18), स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार




स्रोत: राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण (2016 - 18), स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार

91.4 फीसदी के भोजन में है आयरन की कमी

भारतीय बच्चों के भोजन में आयरन की कमी भी एक गंभीर समस्या है। आंकड़ें दर्शाते हैं कि देश में 91.4 फीसदी नौनिहालों के भोजन में आयरन की कमी है। जिसका सीधा प्रभाव उनके मानसिक और शारीरिक विकास पर पड़ रहा है। आज देश में पर्याप्त मात्रा में अनाज, फल, दूध और सब्जियों का उत्पादन हो रहा है। इसके बावजूद यदि बच्चों में पोषण का आभाव है तो वो गंभीर चिंता का विषय है। हरियाणा के बच्चों को सबसे कम आयरन युक्त भोजन मिलता है, आंकड़ों के अनुसार वहां केवल 0.9 फीसदी बच्चों के भोजन में प्रचुर मात्रा में आयरन होता है। इसके बाद सबसे बुरे हालात राजस्थान (1.4), गुजरात, मध्यप्रदेश, पंजाब (3.0), बिहार (3.5) और आंध्रप्रदेश (4.9) के हैं, जबकि इसके विपरीत देश में मेघालय (54.3), मणिपुर (39.4), सिक्किम (38.1), केरल (37.4) और अरुणाचल प्रदेश (34.7) के हालात अन्य राज्यों की तुलना में कहीं बेहतर हैं।

पोषक तत्वों की यह कमी केवल आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों में ही नहीं, बल्कि उन बच्चों में भी पाई गयी है जिन्हे पर्याप्त भोजन मिलता है। जिसका सीधा अर्थ है कि इसके पीछे की बड़ी वजह एक तो गरीबी है। गरीबी पर बनायीं गयी रंगराजन कमिटी के अनुसार देश की एक तिहाई आबादी (36.3 करोड़ लोग) गरीबी रेखा से नीचे हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार गरीबी की जो रेखा निर्धारित की गयी थी वो ग्रामीण भारत के लिए 32 रुपये प्रतिदिन और शहरी भारत के लिए 47 रुपए है, हमारे देश में आज भी परिवार अपनी आवश्यकताओं के लिए एक व्यक्ति पर निर्भर होता है, तो आप खुद ही अनुमान लगा लीजिये कि देश में बच्चों को पोषक आहार कैसे मिल सकता है। जबकि दूसरी वजह भारत के बच्चों में गलत खान-पान की आदत है, यदि 6 से 23 माह के बच्चों में आयरन की कमी की बात करें तो इसके लिए माता पिता को जिम्मेदार माना जा सकता है, जो अपने बच्चों को संतुलित आहार नहीं दे रहे |


स्पष्ट है कि भारत में पोषण की स्थिति कोई बहुत ज्यादा अच्छी नहीं है। भले ही हम विकास के कितनी बड़ी बातें करते रहें, पर सच यही है कि आज भी भारत में लाखों लोगों को पर्याप्त भोजन नहीं मिल पा रहा है, वो आज भी दाने-दाने के लिए मोहताज हैं। हाल ही में छपी यूनिसेफ रिपोर्ट के अनुसार भारत में 50 फीसदी बच्चे कुपोषित है, जबकि ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2019 के अनुसार भारत की स्थिति अपने निकटतम पड़ोसी पाकिस्तान (94), बांग्लादेश (88) और नेपाल (73) से भी बदतर है, इस हंगर इंडेक्स में भारत को 102 वां स्थान मिला है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स के अनुसार, भारत में 2010 के बाद से लगातार बच्चों में कमजोरी (वेस्टिंग) बढ़ रही है। 2010 में पांच साल तक के बच्चों में कमजोरी की दर 16.5 प्रतिशत थी, लेकिन अब 2019 में यह बढ़ कर 20.8 फीसदी हो गई है।

पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया, आईसीएमआर और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रेशन की ओर से 18 सितंबर को सभी राज्यों में कुपोषण पर एक रिसर्च रिपोर्ट जारी की गई। इस रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में तीन में से दो बच्चों की मौत का कारण कुपोषण है। स्पष्ट है कि हम इस समस्या को जितना समझ रहे है, यह उससे कई गुना बड़ी है। आज हमारी वरीयता सिर्फ बच्चों का पेट भरना न होकर उन्हें एक संतुलित और पोषित आहार देने की होनी चाहिए। जो न केवल राष्ट्र की जिम्मेदारी है, बल्कि परिवार को भी इसमें अपनी भूमिका समझनी होगी ।




आंकड़ों का स्रोत:

✸   राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण (2016 - 18), स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार
✸    द स्टेट ऑफ द वर्ल्डस चिल्ड्रन 2019, यूनिसेफ
✸   इंडिया चाइल्ड वेल-बीइंग रिपोर्ट 2019, वर्ल्ड विजन इंडिया और आईएफएमआर लीड
✸   ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2019