क्या मिसाल बन सकता है कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में अवैध रूप से पेड़ काटने का मामला?

नैनीताल हाईकोर्ट ने जिम कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में 6000 से ज्यादा पेड़ काटे जाने की जांच सीबीआई को सौंप दी है

 
Published: Monday 11 September 2023
फोटो- राजेश डोबरियाल

राजेश डोबरियाल

उत्तराखंड में हरे पेड़ों के कटान के तीन मामले इस समय सुर्खियों में हैं। सबसे पहला और बड़ा मामला तो कॉर्बेट में 6000 से ज्यादा हरे पेड़ काटे जाने का है। इस मामले की जांच नैनीताल हाईकोर्ट ने सीबीआई को सौंप दी है। जाहिर तौर पर सरकार कोर्ट को संतुष्ट नहीं कर पाई कि वह निष्पक्ष रूप से जांच कर रही है।

दूसरा मामला देहरादून के विकासनगर और उत्तरकाशी के पुरोला में अवैध रूप से पेड़ों के कटान और उनकी तस्करी से जुड़ा है। बताया जा रहा है कि करीब तीन साल से संरक्षित प्रजाति के देवदार और कैल जैसे हरे पेड़ काटे जा रहे थे। वन विभाग की जांच में अब तक 4000 से ज्यादा शहतीरें और 550 से ज्यादा फट्टे बरामद हो चुके हैं। काटी गई लकड़ी को हिमाचल और यूपी के रास्ते तस्करी किए जाने की बात भी कही जा रही है।

तीसरा मामला विकास के नाम पर हरे पेड़ों की बलि देने का है। देहरादून-दिल्ली एक्सप्रेसवे के लिए 11,000 पेड़ काटे गए थे, देहरादून शहर के अंदर जोगीवाला-सहस्रधारा सड़क के चौड़ीकरण के लिए 2000 से ज्यादा पेड़ों की बलि दी गई और अब देहरादून-शिमला एक्सप्रेसवे के लिए 6000 से ज्यादा पेड़ काटे जा रहे हैं।

ये तीन अलग-अलग तरह के मामले हैं, जो सवाल खड़ा करते हैं कि चिपको आंदोलन के जरिए दुनिया को पर्यावरण संरक्षण का पाठ पढ़ाने वाले उत्तराखंड में अचानक हरे पेड़ों की ये कत्लगाहें क्यों खुल गई हैं?

मिसाल बना यह मामला

जिम कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में 6000 से ज्यादा पेड़ काटे जाने का मामला मिसाल बन गया है। इसकी जांच नैनीताल हाईकोर्ट ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दी है। मूलतः यह मामला दिल्ली हाईकोर्ट में गौरव कुमार बंसल बनाम नेशनल टाइगर कन्जर्वेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) के केस से सामने आया। एनटीसीए ने एक समिति का गठन किया। इस समिति ने उत्तराखंड के कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में स्थलीय निरीक्षण कर अपनी रिपोर्ट पेश की।

समिति ने पाया कि पाखरो वन विश्राम गृह और कालागढ़ वन विश्राम गृह के बीच पुलों, भवनों और जलाशयों के अवैध निर्माण और कालागढ़ टाइगर रिजर्व डिवीजन में चल रहे पाखरो टाइगर सफारी निर्माण में बड़ी संख्या में पेड़ों की अवैध कटाई की गई है। 

समिति ने यह भी कहा कि कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में सड़कों और भवनों के अवैध निर्माण की अनुमति देने के लिए, वन अधिकारियों ने सरकारी रिकॉर्डों में फर्जीवाड़ा किया। इसके बाद एक अंग्रेजी अखबार में छपी खबर के आधार पर स्वतः संज्ञान लेते नैनीताल हाईकोर्ट ने 2021 में पीआईएल संख्या 178 के रूप में मुकदमा दर्ज किया और जांच के लिए विजिलेंस टीम गठित करने की मांग करती एक रिट पिटीशन को भी इसके साथ जोड़ लिया। देहरादून निवासी अनु पंत भी इस मामले में एक याचिकाकर्ता हैं।

बता दें कि कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में 163 पेड़ काटे जाने थे, जिनकी अनुमति ली गई थी, लेकिन इससे कहीं पेड़ ज्यादा काट दिए गए। फॉरेस्ट सर्वे ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार काटे गए पेड़ों की कुल अनुमानित संख्या 6,093 है।

इस मामले में अवैध निर्माण और भवन बुनियादी ढांचे के लिए तत्कालीन डीएफओ कालागढ़ को दोषी बताया जा रहा है। उन्हें तत्कालीन वन मंत्री द्वारा बिना पीसीसीएफ और सिविल सेवा बोर्ड की सिफारिश के कालागढ़ वन डिवीजन में तैनात किया गया था। 

रिपोर्ट में तत्कालीन वन मंत्री हरक सिंह रावत की भूमिका पर भी टिप्पणी की गई है। 

तमाशाई नहीं रह सकते...

इस मामले में हाईकोर्ट ने काफी महत्वपूर्ण टिप्पणी की। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, "कॉमन कॉज बनाम यूनियन ऑफ इंडिया, (2015) 6 एससीसी 332 में, माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कहा- जो महत्वपूर्ण है। वह यह है कि जैसे न्याय न केवल किया जाना चाहिए, बल्कि ऐसा भी प्रतीत होना चाहिए कि किया गया है, वैसे ही, जांच न केवल निष्पक्ष होनी चाहिए, बल्कि ऐसा प्रतीत होना चाहिए कि उन्हें निष्पक्ष तरीके से किया गया है।"

अपने फैसले में हाईकोर्ट ने आगे कहा, "राज्य के उच्च अधिकारियों के खिलाफ गंभीर आरोपों के मद्देनजर, कुछ अधिकारियों को केवल निलंबित करना और उन्हें चार्जशीट देकर मामले को लंबित रखना किसी भी तरह से ठोस कार्रवाई के दायरे में नहीं आता है। राज्य सरकार ने 9 नवंबर, 2021 के पत्र के माध्यम से एक खुली सतर्कता जांच की है। लेकिन, उक्त जांच अभी भी लंबित है। इन परिस्थितियों में, हम एक दर्शक या तमाशाई नहीं रह सकते।"

और बड़े नाम आएंगे सामने
याचिकाकर्ता अनु पंत कहते हैं कि अगर निष्पक्ष सीबीआई जांच होती है तो सचिवालय में बैठे कई बड़े अधिकारियों के नाम भी खुल सकते हैं। इसके साथ उत्तराखंड के वन विभाग की नाकामियां भी सबके सामने आएंगीं। हर साल आग से जंगल राख हो रहे हैं, गुलदार घरों से बच्चों को उठा ले जा रहे हैं। शिकारी जंगलों में जानवरों को मार रहे हैं और ऐसे समय में उत्तराखंड का वन विभाग कहीं नजर नहीं आता। निष्पक्ष जांच से यह भी पता चल सकता है कि कई भ्रष्ट वन अधिकारी अपना काम करने के बजाय जंगलों को बेचकर अपने घर भरने में लगे हैं।

पर्यावरण कार्यकर्ता आशीष गर्ग इस फ़ैसले को मील का पत्थर बताते हैं। आशीष गर्ग सहस्रधारा में सड़क चौड़ीकरण के नाम पर पेड़ काटने के फ़ैसले के खिलाफ पहले हाईकोर्ट गए थे, जहां उन्हें जीत हासिल हुई थी। इसके बाद वह इस मामले में सुप्रीम कोर्ट तक गए थे।

आशीष कहते हैं कि यह मामला खास इसलिए है क्योंकि इसमें वन विभाग के आला अधिकारियों बल्कि मंत्री तक की संलिप्तता सामने आई है। जब ऐसे मामलों में कार्रवाई होती है तो गलत करने वालों को डर लगता है और जब कुछ नहीं होता तो माफ़िया का हौसला बढ़ता है। अगर वन विभाग के शीर्ष अधिकारी और मंत्री पर कार्रवाई होगी तो फिर नीचे के अधिकारियों में भी डर पैदा होगा।

आशीष तो कहते हैं कि चकराता और पुरोला में अवैध पेड़ कटान के जिन मामलों की जांच चल रही है उन्हें भी इस सीबीआई जांच में शामिल कर देना चाहिए ताकि सभी दोषी सामने आ सकें। 

Subscribe to Daily Newsletter :

Comments are moderated and will be published only after the site moderator’s approval. Please use a genuine email ID and provide your name. Selected comments may also be used in the ‘Letters’ section of the Down To Earth print edition.