कुसुम की खेती सर्दी के अलावा गर्मी और मानसून में भी की जा सकती है। इसका उपयोग मेथी और पालक की तरह पत्तेदार सब्जी के रूप में किया जा सकता है।
भारतीय शोधकर्ताओं ने एक नए अध्ययन में तिलहन फसल कुसुम (सेफ्लावर) की विभिन्न किस्मों को पत्तेदार सब्जी के रूप में भोजन का एक अच्छा पोषक विकल्प और किसानों की आय में बढ़ोत्तरी का उत्तम साधन पाया है।
फल्टन (महाराष्ट्र) स्थित निंबकर कृषि अनुसंधान संस्थान के शोधकर्ताओं ने विभिन्न मौसमों के दौरान ताजी पत्तेदार सब्जी के रुप में कुसुम की उपज, पोषक गुणवत्ता और उससे होने वाले आर्थिक लाभ का मूल्यांकन करके यह निष्कर्ष निकाला है।
आमतौर पर कुसुम रबी की फसल है, जिसको दिसम्बर के प्रथम सप्ताह तक बोया जाता है और यह 145 से 150 दिनों में पककर तैयार होती है। भारत में कुसुम की खेती प्रमुखतया उसके बीजों से तेल और फूलों से खाद्यरंग प्राप्त करने के लिए की जाती है। इसके अलावा कुछ जगहों पर कुसुम के लगभग 30-35 दिनों के कोमल पत्तों का उपयोग सब्जी और जानवरों के चारे के रुप में भी किया जाता है। इससे किसानों को अतिरिक्त आय भी होती है।
अध्ययनर्ताओं का मानना है कि कुसुम की खेती सर्दी के अलावा गर्मी और मानसून में भी की जा सकती है। साथ ही इसका उपयोग साल भर मेथी और पालक की तरह पत्तेदार सब्जी के रुप में किया जा सकता है। शोध में पाया गया है कि ताजी हरी सब्जी के लिए कुसुम के पत्तों की औसत पैदावार काफी अधिक हो सकती है। कुसुम की निचली तीन-चार कोमल पत्तियों का ही उपयोग हरी सब्जी के रुप में किया जाता है और इनको तोड़ने से पैदावार पर कोई विपरीत असर नहीं पड़ता है। इन पत्तियों को बेचकर फसल की पूरी लागत पकने के पहले ही वसूल हो सकती है।
कुसुम के तेल का उपयोग पहले से ही लोग खाने से लेकर जलाने और औद्योगिक स्तर पर साबुन, पेंट, वार्निश, लिनोलियम तथा इनसे सम्बन्धित पदार्थों को तैयार करने में करते आ रहे हैं। इसके तेल में उपस्थित पोलीअनसैचूरेटेड वसा अम्ल खून में कोलेस्ट्राल कम करने में सहायक होता है। कुसुम अपने कई औषधीय गुणों के लिए भी उपयोग में लाया जाता है। इसके फूल की पंखुड़ियों की चाय भी स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद रहती है।
शोधकर्ताओं ने अब कुसुम की पत्तियों के स्वादिष्ट व पौष्टिक सब्जी के रुप में खाने पर भी जोर दिया है, क्योंकि यह वसा, प्रोटीन और विटामिन सी का अच्छा विकल्प है। शोध में पाया गया है कि कि कुसुम की पत्तियों में मेथी और पालक से अधिक वसा और प्रोटीन पाया जाता है। कुसुम में औसतन 2.01 प्रतिशत वसा और 26.27 प्रतिशत प्रोटीन होता है। जबकि मेथी और पालक में वसा और प्रोटीन का प्रतिशत क्रमशः 1.27 व 1.12 एवम् 21.83 व 23.84 आंका गया है। इसी तरह कुसुम की पत्तियों में औसत विटामिन सी 12.66 मिलीग्राम प्रति 100 ग्राम और फीनोलिक कम्पाउण्ड 14.12 जीएई मिलीग्राम प्रति 100 ग्राम पाया गया है, जो कि पालक की अपेक्षा अधिक है।
कुसुम की लगभग तीनों मौसमों में पत्तेदार सब्जी के रूप में पैदावार और उससे होने वाले संभावित आर्थिक लाभ के लिए इस तरह का अध्ययन पहली बार किया गया है। कृषिवैज्ञानिकों का मानना है कि उनकी इस पहल से भविष्य में किसानों में कुसुम की खेती के प्रति रुझान बढ़ेगा। इससे लोगों को पौष्टिक हरीपत्तेदार सब्जी का एक विकल्प मिलेगा और किसान को भी अतिरिक्त आय होगी।
अध्ययनकर्ताओं की टीम में वृजेंद्र सिंह, आर. आर. जाधव, जी ई. आत्रे, आर वी. काले, पी. टी. करांडे, के. डी. कांबारगी, एन. निंबकर और ए. के. राजवंशी शामिल थे। उनका यह शोध करेंट साइंस पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। (इंडिया साइंस वायर)
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