फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा तैयार द स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2017 उपग्रह से प्राप्त चित्रों से निर्मित है। इससे पता चलता है कि वन क्षेत्र कमोबेश स्थिर रहा है।
भारत को अपने जंगल का प्रबंधन कैसे करना चाहिए? यह एक सवाल है। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से यह सवाल शायद ही कभी पूछा जाता है और जिसका कभी उत्तर नहीं दिया जाता। ऐसा प्रतीत होता है कि देश में जंगल की हालत पर चिंता करने की कोई आवश्यकता ही नहीं है। कम से कम इस मोर्चे पर सरकार का यही कहना है।
सरसरी तौर पर शायद सरकार का ऐसा कहना सही भी है। फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा तैयार द स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2017 उपग्रह से प्राप्त चित्रों से निर्मित है। इससे पता चलता है कि वन क्षेत्र कमोबेश स्थिर रहा है। 2015 से 2017 के बीच केवल 0.21 प्रतिशत का बदलाव नोट किया गया है। आज, देश का फॉरेस्ट कवर 21.54 प्रतिशत है। वन विभाग के नियंत्रण वाली भूमि, जिसे रिकॉर्डॆड “फॉरेस्ट” कहा जाता है, का हिस्सा देश में करीब 23 प्रतिशत है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि जंगल को लेकर हमारे पास अच्छी खबर है।
सबसे पहले, हमें यह समझना होगा कि ये पेड़ कहां बढ़ रहे हैं। दूसरा, हमें जंगल की गुणवत्ता को समझना होगा जो इतना स्थिर है। स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट के अनुसार, वन क्षेत्र वो इलाका है, जो एक हेक्टेयर से अधिक भूमि पर फैला हो और वहां 10 प्रतिशत से अधिक वृक्ष हो। इसमें जमीन का उपयोग, स्वामित्व और कानूनी स्थिति पर ध्यान नहीं दिया जाता। दूसरे शब्दों में, ये जो 21.54 प्रतिशत वन क्षेत्र है, वो सरकार के वन क्षेत्र और निजी भूमि पर स्थित है। लेकिन इन सभी को “रिकॉर्डॆड” जंगल नहीं माना जा सकता क्योंकि सभी राज्य सरकारों ने ऐसी भूमि सीमा का डिजिटाइजिंग (अंकीयकरण) कार्य पूरा नहीं किया है। इसलिए, हमारे पास वर्गीकृत और संरक्षित वनक्षेत्र के रूप में जंगल की पूरी तस्वीर नहीं है।
रिपोर्ट के अनुसार, आज तक 16 राज्यों ने जंगल की सीमाओं को डिजिटल किया है। वास्तव में यह आंकड़ा दिखाता है कि राज्यों ने एक महत्वपूर्ण वन क्षेत्र खो दिया है। लगभग 70,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र, जिसे पहले जंगल के रूप में दर्ज किया गया था, तब मिले ही नहीं जब उनका रिकॉर्ड डिजिटल किया गया। यह रिकॉर्डॆड वन क्षेत्र का लगभग 12 प्रतिशत है और पूरे देश में सीमाओं के डिजिटलीकरण पूरा करने के साथ-साथ रिजर्व या संरक्षित वनों के तहत भूमि की वास्तविक स्थिति जानने के लिए महत्वपूर्ण है।
फिर जंगल की गुणवत्ता का सवाल है। इस मूल्यांकन के अनुसार, 21.54 प्रतिशत वन भूमि का केवल 3 प्रतिशत ही 70 प्रतिशत या इससे अधिक घनत्व वाले पेड़ से आच्छादित स्वरूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। लगभग 9 प्रतिशत भूमि मामूली रूप से घनी (40-70 प्रतिशत वृक्ष) है और 9 प्रतिशत भूमि खुले जंगल (10-40 प्रतिशत पेड़) हैं। रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि 2015 और 2017 के बीच, “बहुत घना” के रूप में वर्गीकृत जंगल की श्रेणी में 9,000 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि हुई है, जबकि “मामूली घने जंगल” की श्रेणी में कमी आई है और “खुले” जंगल में कुछ वृद्धि हुई है। इसलिए, ऐसा लगता है कि वन आवरण की गुणवत्ता में सुधार हुआ है और “मामूली घना” को “बहुत घना” में बदल दिया गया है। क्या यह खुशखबरी है? रिपोर्ट के अनुसार, बदलाव के कई कारण है, जैसे सैटेलाइट इमेजेरिज में सुधार से लेकर “रिकॉर्डेड” वनक्षेत्र के बाहर संरक्षण और बागान।
इसके अलावा, हम 0.76 मिलियन वर्ग किलोमीटर रिकॉर्डॆड वनों की रक्षा क्यों कर रहे हैं? उनका उद्देश्य क्या है? क्या उत्पादक प्रयोजनों के लिए पेड़ लगाया जाएगा? जो पौधे लगाए जाएंगे, उससे किसे लाभ होगा, वन विभाग या ग्रामीण समुदायों को जो यहां निवास करते हैं? भारत की वनभूमि का मुख्य उद्देश्य संरक्षण है तो, क्या हम रिकॉर्डेड वन के बजाए निजी भूमि पर वृक्ष उगाएंगे और फिर उसे काटेंगे? ये सवाल न पूछे जाते हैं और न इसका जवाब मिलता है।
लेकिन 2017 की रिपोर्ट आज की घटनाओं के बारे में एक अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। इसके अनुमान के अनुसार, रिकॉर्डेड वन भूमि से लकड़ी का वार्षिक उत्पादन 4 मिलियन क्यूबिक मीटर (घन मीटर) है। इसलिए, लकड़ी की अधिकांश मांग वन क्षेत्र से बाहर से पूरी होती है। इस रिपोर्ट में रिकॉर्डेड फॉरेस्ट के बाहर की भूमि में लकड़ी उत्पादन की बढ़ती क्षमता का आकलन भी किया गया है और यह करीब 74.5 मिलियन घन मीटर है। इसकी तुलना में 4 मिलियन घन मीटर है, जो वन विभाग के तहत विशाल भूमि से आती है। अब आप यह समझ सकेंगे कि वास्तव में कौन, कहां पेड़ उगा रहा है?
वास्तव में, बढ़ते स्टॉक का लगभग 30 प्रतिशत वन स्वास्थ्य और उत्पादकता का एक संकेतक रिकॉर्डेड जंगल के बाहर से आता है और बढ़ता ही जा रहा है। यह वन विभाग द्वारा नियंत्रित भूमि के बढ़ते स्टॉक की तुलना में तेजी से बढ़ रहा है। ये अंतर पेड़ की प्रजातियों में भी है। जंगल के बढ़ते स्टॉक में मुख्य रूप से साल, सागौन या पाइन की प्रजातियां हैं। इससे अलग, आम, नारियल, नीम और बांस-बागवानी और वृक्षारोपण प्रजातियां हैं। यह सब तब हो रहा है, जब भारत में पेड़ काटना एक जटिल व्यवसाय है। यहां पेड़ काटने, परिवहन और इसकी बिक्री के लिए कई प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत होती है।
तो, सवाल बाकी है। भारत में वनभूमि का अर्थ क्या है? आइए, इस बारे में चर्चा जारी रखते हैं।
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