ताजे पानी में पाए जाने वाले चार सूक्ष्मजीवों यूप्लोट्स, नोटोहाइमेना, स्यूडॉरोस्टाइला और टेटमेमेना की जैव-संकेतक क्षमता का आकलन करने के बाद शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे हैं।
मानवीय गतिविधियों के कारण पर्यावरण में भारी धातुओं का जहर लगातार घुल रहा है। एक ताजा अध्ययन में भारतीय शोधकर्ताओं ने पाया है कि जलीय पारिस्थितिक तंत्र में भारी धातुओं की मौजूदगी का पता लगाने में जैविक तकनीक कारगर साबित हो सकती है। ताजे पानी में पाए जाने वाले चार सूक्ष्मजीवों यूप्लोट्स, नोटोहाइमेना, स्यूडॉरोस्टाइला और टेटमेमेना की जैव-संकेतक क्षमता का आकलन करने के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय के शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे हैं।
अध्ययन के दौरान तांबा, जस्ता, कैडमियम, निकिल और सीसा समेत पांच भारी धातुओं की विभिन्न मात्राओं का उपयोग सूक्ष्मजीवों पर करके उनमें इन धातुओं के प्रति संवेदनशीलता का परीक्षण किया गया है। सूक्ष्मजीव प्रजातियों के नमूने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के तीन अलग-अलग जलीय पारिस्थितिक तंत्रों नदी, झील एवं तालाब से एकत्रित किए गए हैं। अध्ययन क्षेत्रों में यमुना बैराज पर स्थित ओखला पक्षी अभ्यारण्य, राजघाट स्थित एक कृत्रिम तालाब और संजय झील शामिल थे।
अध्ययन में शामिल आचार्य नरेंद्र देव कॉलेज की शोधकर्ता डॉ. सीमा मखीजा ने इंडिया साइंस वायर को बताया, “सूक्ष्मजीवों की सभी प्रजातियां तांबे के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील पाई गई हैं। जबकि सबसे कम संवेदनशीलता जस्ते के प्रति दर्ज की गई है। स्यूडॉरोस्टाइला को भारी धातुओं के प्रति सर्वाधिक संवेदनशील पाया गया है। सूक्ष्मजीवों की नोटोहाइमेना प्रजाति में इन धातुओं के प्रति संवेदनशीलता का स्तर सबसे कम दर्ज किया गया है और टेटमेमेना और यूप्लोट्स में मध्यम संवेदनशीलता देखी गई है।”
अध्ययनकर्ताओं के अनुसार “अध्ययन में एक कोशकीय सूक्ष्मजीव प्रजातियों को शामिल किया गया है। पारिस्थितिक तंत्र में भारी धातुओं के प्रदूषण का स्तर बेहद कम होने पर भी इन सूक्ष्मजीवों पर गहरा असर पड़ता है, जिसकी निगरानी विषाक्तता परीक्षण के आधार पर आसानी से की जा सकती है। इसी आधार पर इन सूक्ष्मजीवों को भारी धातुओं से होने वाले प्रदूषण का पता लगाने वाला एक प्रभावी जैव-संकेतक माना जा रहा है।”
डॉ. मखीजा के मुताबिक “भारी धातुओं के प्रदूषण की निगरानी के लिए त्वरित एवं संवेदी जैविक तरीके विकसित करना जरूरी है। आमतौर पर प्रदूषण के प्रभाव के अध्ययन के लिए जल के भौतिक एवं रासायनिक गुणों का परीक्षण किया जाता है। हालांकि इन मापदंडों के आधार पर जल की गुणवत्ता का पता लगाने लिए पर्याप्त तथ्य नहीं मिल पाते हैं। ऐसे में जलीय पारिस्थितिक तंत्र में रहने वाले सूक्ष्मजीवों का अध्ययन उपयोगी हो सकता है। यह एक शुरुआती अध्ययन है। सूक्ष्मजीवों की सहनशीलता प्रभावित करने वाले आणविक एवं रासायनिक पहलुओं की पड़ताल करके ज्यादा तथ्य जुटाए जा सकते हैं।”
भारी धातुओं से होने वाला प्रदूषण दिल्ली जैसे महानगरों में खासतौर पर चिंता का विषय बना हुआ है। घरों एवं उद्योगों से निकलने वाला कचरा एवं अपशिष्ट जल इसके लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार माने जाते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार जलीय पारिस्थितिक तंत्र में भारी धातुओं की मौजूदगी पौधों एवं जीवों के साथ-साथ पारिस्थितिक संतुलन के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकती है।
अध्ययनकर्ताओं की टीम में डॉ. मखीजा के अलावा आचार्य नरेंद्र देव कॉलेज की शोधकर्ता जीवा सुसैन, एस. श्रीपूर्णा, आशीष चौधरी, डॉ रवि टुटेजा, मैत्रेयी कॉलेज से जुड़ीं डॉ रेनू गुप्ता और लंदन के नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम के शोधकर्ता डॉ एलैन वारेन शामिल थे। यह अध्ययन हाल में शोध पत्रिका करंट साइंस में प्रकाशित किया गया है।
(इंडिया साइंस वायर)
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