भारत चीन के बाद दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा झींगा उत्पादक है। लेकिन संक्रामक रोग झींगा उत्पादन के लिए सबसे बड़ा खतरा माने जाते हैं।
अंडमान एवं निकोबार को भारत की मुख्य-भूमि की अपेक्षा मछलियों में होने वाले रोगों और झींगे के रोगजनक वायरस से अधिक सुरक्षित माना जाता है। लेकिन भारतीय वैज्ञानिकों ने इस क्षेत्र में पाई जाने वाली झींगे की पीनियस मोनोडोन प्रजाति के आईएचएचएनवी वायरस से ग्रस्त होने का खुलासा किया है। यहां पाए जाने वाले झींगों के नमूनों का अध्ययन करने के बाद वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे हैं।
अध्ययनकर्ताओं के अनुसार अंडमान एवं निकोबार से एकत्रित झींगों को रोग-मुक्त नहीं माना जा सकता। इसलिए वहां पर मत्स्य पालन को बढ़ावा देने से पहले उन्हें रोगों से मुक्त करने के लिए एक मजबूत एवं विशिष्ट निगरानी प्रक्रिया को लागू किया जाना जरूरी है।
अध्ययन के दौरान मायाबंदर, दुर्गापुर, कैम्पबेल-बे, लक्ष्मीपुर, लोहाबैराक, बेतापुर, वंडूर, येर्राटा और जंगलीघाट समेत अंडमान-निकोबार के नौ स्थानों से झींगों के नमूने एकत्रित किए गए थे। इनमें फेनेरोपीनियस इंडिकस, पीनियस मोनोडॉन, पीनियस मर्गिन्सिस और मेटापीनियस मोनोसीरोस प्रजातियों के 175 नमूने शामिल थे, जिन्हें अगस्त, 2015 से मार्च 2016 के दौरान एकत्रित किया गया था। इसके बाद पॉलिमरेज चेन रिएक्शन (पीसीआर) नामक डीएनए संवर्धन की तकनीक से नमूनों का विश्लेषण करने के बाद निष्कर्ष निकाले गए हैं।
अध्ययनकर्ताओं में शामिल डॉ के. सारावणन ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “समृद्ध जैव विविधता और अनुकूल पारिस्थितक तंत्र के कारण अंडमान एवं निकोबार को झींगों में पाए जाने वाले रोगों से अब तक मुक्त माना जाता रहा है। लेकिन इस अधययन के दौरान झींगों को आईएचएचएनवी संक्रमण से ग्रस्त पाया गया है। निकोबार में संक्रमण की दर सबसे अधिक पाई गई है।”
उनके मुताबिक “अंडमान एवं निकोबार की इंडोनेशिया और थाईलैंड जैसे दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों से नजदीकी भी इसका कारण हो सकती है, क्योंकि इन देशों में संवर्धित एवं वाइल्ड पीनियस मोनोडोन की प्रजातियों में यह संक्रमण पाया जाता है। निकोबार द्वीप के करीब होने के कारण इन देशों से वायरस के स्थानांतरण का खतरा बना रहता है।”
इससे पहले अन्य स्थानों पर भी पीनियस मोनोडोन को ही आईएचएचएनवी वायरस से ग्रस्त पाया गया है। ऐसे में इस तथ्य को बल मिलता है कि आईएचएचएनवी वायरस पीनियस मोनोडोन, पीनियस वैनेमेई और पीनियस स्टाइलिरोस्ट्रिस झींगे को मुख्य रूप से प्रभावित करता है। वैज्ञानिकों का मानना है यह भी है आईएचएचएनवी पीनियस मोनोडोन के भौगौलिक क्षेत्र में पाया जाने वाला एक स्थानीय वायरस है।
आनुवांशिक अध्ययन के आधार पर वैज्ञानिकों का कहना है कि “अब स्पष्ट हो गया है कि अंडमान में झींगों के संक्रमण के लिए जिम्मेदार आईएचएचएनवी भारत की मुख्य भूमि समेत वियतनाम, चीन, ऑस्ट्रेलिया, ताईवान, मिस्र, इक्वाडोर और अमेरिका में पाए जाने वाले रोगजनक वायरस से अलग नहीं है।”
पोर्ट ब्लेयर स्थित इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट और चेन्नई स्थित सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ ब्रैकिशवाटर एक्वाकल्चर के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया यह अध्ययन हाल में शोध पत्रिका करंट साइंस के ताजा अंक में प्रकाशित किया गया है।
आईएचएचएनवी वायरस को झींगा मछली में होने वाले हाइपोडर्मल एवं हेमेटोपोएटिक नेक्रोसिस जैसे संक्रामक रोगों के लिए जिम्मेदार माना जाता है। पीनियस मोनोडोन को टाइगर झींगा के नाम से भी जाना जाता है। लिटोपीनियस वैनेमेई के बाद पीनियस मोनोडोन दुनिया की दूसरी सर्वाधिक संवर्धित की जाने वाली झींगे की प्रजाति है।
भारत चीन के बाद दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा झींगा उत्पादक है। लेकिन संक्रामक रोग झींगा उत्पादन के लिए सबसे बड़ा खतरा माने जाते हैं। अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह के कई हिस्सों को झींगा उत्पादन के तेजी से उभरते क्षेत्रों में शुमार किया जाता है। लेकिन अब तक झींगा मछली के संवर्धन को अंडमान एवं निकोबार में व्यावसायिक उद्यम के रूप में बढ़ावा नहीं दिया गया है। स्थानीय प्रशासन भविष्य में खारे पानी में जलीय कृषि और महासागरीय कृषि को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहा है।
डॉ. सारावणन के अलावा अध्ययनकर्ताओं की टीम में पी. पुनीत कुमार, अरुणज्योति बरुआ, जे. प्रवीणराज, टी. सतीश कुमार, एस. प्रमोद कुमार, टी. शिवरामकृष्णन, ए. अनुराज, जे. रेमंड जानी एंजेल, आर. किरुबा शंकर और एस. डैम रॉय शामिल थे।
(इंडिया साइंस वायर)
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