पेइचिंग ने समयबद्ध लक्ष्य निर्धारित करके तथा व्यापक क्षेत्रीय कार्य योजना लागू करके केवल चार वर्षों में हवा की गुणवत्ता में सुधार कर लिया है
कुछ ही समय पहले तक दिल्ली और पेइचिंग दुनिया के सबसे प्रदूषिक शहरों के रूप में बदनाम थे। आधे दशक तक पेइचिंग दिल्ली को पीछे छोड़कर सबसे प्रदूषित शहर बना रहा। इसके बाद चीजें बदल गईं। एक ओर पेइचिंग में हवा की गुणवत्ता में निरंतर सुधार होता रहा वहीं दूसरी ओर दिल्ली में प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ता रहा। वर्ष 2017 में पेइचिंग में पीएम 2.5 की औसत वार्षिक सघनता दिल्ली के आधे से भी कम थी। दिल्ली में बेहद अस्वस्थ दिनों (जब प्रदूषण का स्तर बहुत ज्यादा था) की संख्या भी पेइचिंग की तुलना में चार गुना ज्यादा थी। ऐसे में प्रश्न यह है कि पेइचिंग अपने प्रदूषण को कम करने में कैसे सफल हुआ जबकि हम अब तक इससे संघर्ष कर रहे हैं।
जनवरी 2013 में जब मध्य, उत्तरी और पूर्वी चीन में भयंकर धुंध छा गई तो चीनी सरकार ने प्रदूषण नियंत्रण के लिए व्यापक कार्य योजना की शुरुआत की। यह क्षेत्रीय दृष्टिकोण पर आधार थी तथा इसके तहत समयबद्ध कार्रवाई के लिए सबसे प्रदूषित क्षेत्रों जैसे पेइचिंग-तियानजिन-हेबेई की पहचान की गई। इसमें प्रदूषण कम करने के लक्ष्य तय किए गए तथा क्षेत्रीय कार्ययोजना के मार्गदर्शन और विकास के लिए “10 उपायों” को चिह्नित किया गया। चीन के पर्यावरण संरक्षण मंत्रालय ने पेइचिंग-तियानजिन-हेबेई तथा आसपास के क्षेत्र में इन्हें लागू करने के लिए नियम जारी किए। इसके बाद पेइचिंग की सरकार ने कार्य योजना तैयार की जिसमें विशेष लक्ष्य, जैसे 2017 तक पेइचिंग में वाहनों की संख्या को छः मिलियन तक कम करना, 2020 तक कोयले के उपयोग में 80 प्रतिशत की कमी लाना तथा 2017 तक औसत वार्षिक पीएम 2.5 की सघनता को माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर तक लाना शामिल है।
पेइचिंग में इन लक्ष्यों को काफी गंभीरता से लागू किया गया है। उदाहरण के लिए वर्ष 2017 में नई कारों की संख्या 150,000 तय की गई थी जिनमें से 60,000 की संख्या केवल ईंधन-दक्ष कारों के लिए निर्धारित थी। वर्ष 2018 में इस संख्या को 100,000 प्रतिवर्ष कर दिया गया। इसी प्रकार, वर्ष 2017 में कोयले के उपभोग को घटाकर 11 मिलियन टन कर दिया गया जिसके लिए पेइचिंग ने कोयले से चलने वाले अपने सभी बिजलीघरों को बंद कर दिया। पेइचिंग ने औद्योगिक प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए सख्त मानदंड तय किए हैं। वर्ष 2016 में पेइचिंग की निगरानी एजेंसियों ने कुल 21.8 मिलियन डॉलर (150 करोड़ रुपए) का जुर्माना लगाया।
पेइचिंग में हरियाली बढ़ाने के लिए बहुत बड़ा कार्यक्रम भी शुरू किया गया। पांच वर्षों के दौरान लगभग 4,022 हेक्टेयर शहरी हरित क्षेत्र का निर्माण किया गया। पेइचिंग के वायु प्रदूषण को प्रभावी रूप से कम करने के लिए आसपास के प्रांतों जैसे तिआनजिन, हेबेई, शेंडोंग, शांगजी और इनर मंगोलिया ने समन्वय किया और संयुक्त कार्य योजना लागू की। पेइचिंग की अपनी कार्य योजना और आसपास के प्रांतों की संयुक्त कार्य योजना ने मिलकर प्रदूषण कम करने में अहम भूमिका निभाई। 2017 में पेइचिंग में 226 दिन नीला आसमान (अच्छी वायु गुणवत्ता) दिखा जबकि 2013 में यह संख्या केवल 176 दिन थी। वर्ष 2013-17 के बीच पेइचिंग-तियानजिन-हेबेई क्षेत्र में पीएम 2.5 के स्तर में 30 प्रतिशत की गिरावट आई। इससे पेइचिंग को 2013 में तय किए गए पीएम 2.5 के लक्ष्य को हासिल करने में मदद मिली।
तो दिल्ली पेइचिंग से क्या सबक ले सकती है? मैं पांच मुख्य सबक बताता हूं। पहला, क्षेत्रीय कार्य योजना तथा दिल्ली और इसके जुड़े हुए इलाकों के लिए क्षे़त्रीय समन्वित तंत्र का विकास किया जाए। दूसरा, इस क्षेत्र में प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए समयबद्ध लक्ष्य निर्धारित करना आवश्यक है। लक्ष्यों के बिना कार्य योजना निरर्थक है। तीसरा, कार्य योजना एकीकृत होनी चाहिए जिसमें सभी प्रदूषक और प्रदूषण के सभी प्रमुख स्रोत शामिल हों। चौथा, वृद्धिमान परिवर्तन के बजाय उत्तरोत्तर परिवर्तन प्रदूषण को तेजी से कम करने का प्रमुख साधन हैं। पांचवा, सख्ती से लागू कराए बिना ये सभी उपाय बेकार हैं। मुख्य बात यह है कि दिल्ली भी उन्हीं सब चुनौतियों का सामना कर रही है जिनका सामना पेइचिंग कुछ साल पहले तक कर रहा था। राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी तथा सरकार को ठोस कदम उठाने के लिए बाध्य करने के लिए जरूरी जन आक्रोश के अभाव के कारण हम इन चुनौतियों से नहीं निपट पा रहे।
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