जम्मू-कश्मीर के तीन दिन के दौरे के बाद लौटे राष्ट्रीय किसान मजदूर महासंघ के पदाधिकारियों ने बताया कि सरकार ने 5500 करोड़ के सेब खरीदने का वादा किया था, लेकिन एक पेटी की भी खरीद नहीं हुई है
हर वर्ष नवम्बर के आखिरी महीने तक हम सेब के बागानों को खाली कर देते थे। हमारा माल कश्मीर से दिल्ली के फलमंडी बाजार तक पहुंच जाता था। इस वर्ष सब बर्बाद हो गया। धारा 370 हटाए जाने के बाद से खराब कानून व्यवस्था के चलते कश्मीर से सेब के बागान खाली नहीं हो सके। माल रखा रहा और 7 नवम्बर को हुई बेमौसम बर्फबारी ने न सिर्फ सेबों को बल्कि सेब के पुराने पेड़ों को भी तहस-नहस कर दिया। ना ही किसानों को मुआवजा मिला है और न ही किसी ने अभी तक सुध ली है।
यह अल्फ़ाज बारापुला के सेब किसान अमनजीत सिंह के हैं। उन्होंने डाउन टू अर्थ को बताया कि बर्फबारी पहले भी हुई है लेकिन पहले इस तरह के लॉ एंड ऑर्डर की समस्या नहीं थी, इसकी वजह से हम और तंगी से गुजर रहे हैं।
अमनजीत सिंह मंगलवार को दिल्ली में राष्ट्रीय किसान मजदूर महासंघ की एक प्रेसवार्ता में शामिल थे। किसान महासंघ ने 21 से 25 नवंबर को जम्मू-कश्मीर के 25 गांव का दौरा और किसानों से मुलाकात की है।
महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवकुमार कक्का ने बताया कि करीब पांच दिन कश्मीर में पंडितपोरा, आदूरा, कलमचकला, कलमाबाद, कुरुहू, यारू, शरकवारा, कनिसपुरा, उपलीना, कटियावली, सिंहपुरा, टनमर्ग, लंगेट, पंपोर, वतरगाँव, काज़ियाबाद, पलाहलन, हाईगाम, बुलगाम समेत 25 से अधिक गाँव का दौरा किया गया है। इन गाँव में किसानों की हालत काफी दयनीय है।
उन्होंने बताया कि इन गाँव की 85 फीसदी आबादी सेब के बागीचों से होने वाली आमदनी से अपना गुजर-बसर करती है। बेमौसम बर्फबारी में करीब 50 फीसदी पेड़ टूट गए हैं। घर में संकट है। 15 दिन बीत चुके हैं और कोई सुध लेने नहीं आ सका है।
महासंघ में जम्मू-कश्मीर के प्रदेश अध्य्क्ष तनवीर अहमद डार ने कहा कि सेब के एक पेड़ को तैयार होने में 20 से 25 साल लगते हैं। पूरे साल सेब की खेती में लगना पड़ता है। किसानों की लागत मूल्य लगातार बढ़ रही है लेकिन सेब के एक पेटी की कीमत 20 वर्ष पुरानी ही है। बीते वर्ष भी सेब बर्बाद हो गए थे और आज तक किसानों को उसका मुआवजा नही मिला।
महासंघ के इम्तियाज खानडे ने कहा कि पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने वादा किया था कि नेफेड किसानों से 5500 करोड़ का सेब खरीदेगी, उसके बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी कहा कि किसानों के सेब नेफेड खरीदेगी। जमीनी हालत यह है कि एक भी किसान ऐसा नहीं है जिसकी एक भी सेब पेटी नेफेड ने खरीदी हो। यहाँ तक कि यदि किसान खुद नेफेड के सोपोर मंडी में सेब बेचने जा रहे हैं तो वहां सबसे अच्छी गुणवत्ता वाले सेब के आधे दाम ही किसानों को मिल रहे हैं।
वहीं एक राज्य से दूसरे राज्य तक सेब पहुंचाने वाले ट्रक ड्राइवरों को आतंकी धमकियाँ मिल रही हैं। पहले एक सेब की पेटी कश्मीर से दिल्ली के आजादपुर मंडी 70 रुपये में पहुंच जाती थीं, अब इसमें 150 रुपये से भी अधिक देने पड़ रहे हैं। किसानों को कुछ महीनों बाद केसीसी लोन भी चुकाना है, ऐसी स्थिति में किसान अपने कर्ज कहां से चुकाऐगा। जम्मू- कश्मीर में सेब के किसान जबरदस्त आर्थिक तंगी से गुजर रहे हैं और 32 से ज्यादा लाभ देने वाली स्कीम सिर्फ कागजों में ही हैं।
महासंघ ने किसानों की तत्काल मदद की मांग की है। साथ ही भविष्य में मांग न माने जाने पर राष्ट्रव्यापी आन्दोलन की चेतावनी दी है। महासंघ की युवा इकाई के राष्ट्रीय अध्यक्ष अभिमन्यु कोहाड़ ने कहा कि जम्मू कश्मीर में किसानों को के.सी.सी. का लोन लेने के लिए अपनी जमीन के अलावा दो सरकारी कर्मचारी गारंटी के तौर पर देने पड़ते हैं, अन्य किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश में दो सरकारी कर्मचारियों की गारंटी देने का नियम नहीं है। जम्मू-कश्मीर में भी इस नियम को समाप्त किया जाए।
इसके अलावा कश्मीर में किसानों को नकली कीटनाशक दवाइयां उपलब्ध होती हैं। एक किसान ने बताया कि आज से 20 साल पहले उन्हें सिर्फ 2 तरह की कीटनाशक दवाइयों का इस्तेमाल करना पड़ता था, उन्हें 18 तरह की कीटनाशक दवाइयों का इस्तेमाल करना पड़ता है जिस वजह से उनकी फसल की लागत बढ़ती जा रही है। नकली कीटनाशक दवाइयों के खेल में राजनेता, अधिकारी व दवाई कम्पनियां शामिल हैं।
उन्होंने कहा कि कश्मीर में मंडियों में व्यापारियों द्वारा किसानों से 12 प्रतिशत कमीशन वसूला जाता है। इस तरह किसानों का शोषण अन्य किसी भी राज्य की मंडियों में नहीं होता। व्यापारियों द्वारा किसानों से सेब ले कर बिना पेमेंट किये भाग जाने की घटनाएं कश्मीर में आम बात है।
किसानों के उत्पाद खरीदने से पहले व्यापारियों के लाइसेंसों की ठीक से जांच कश्मीर घाटी में नहीं की जाती है। जम्मू कश्मीर में सॉयल टेस्टिंग (मिट्टी की जांच) योजना पूरी तरह विफल रही है। एक साल से भी अधिक समय बीत जाने के बावजूद किसानों को अपनी मिट्टी की जांच रिपोर्ट नहीं मिलती है।
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