Natural Disasters

बारिश के पैटर्न में बदलाव की वजह जलवायु परिवर्तन: केजी रमेश

भारतीय मौसम विभाग के महानिदेशक केजी रमेश का मानना है कि केरल में पिछले नौ माह के दौरान आई आपदाओं के लिए जलवायु परिवर्तन काफी हद तक दोषी है। 

 
By Anil Ashwani Sharma
Published: Tuesday 07 May 2019
Photo : Verghese Thomas

पिछले नौ माह के दौरान केरल ने कई आपदाओं का सामना किया है। केरल की इन अतिशय मौसमी घटनाओं के कारणों की डाउन टू अर्थ  ने विस्तृत पड़ताल की है। उसी पड़ताल के तीसरे भाग में भारतीय मौसम विभाग के महानिदेशक केजी रमेश से बातचीत की। प्रस्तुत हैं उनसे बातचीत के अंश - 

सवाल : केरल में पहले भारी बारिश के बाद सूखा और फिर हीटवेव (लू) और इसके बाद पानी संकट के हालात पैदा हुए। क्या इसे जलवायु परिवर्तन का संकेत माना जा सकता है?

आपको इसके लिए केरल के पूरे भूगोल को दिमाग में रखना होगा। गर्मी में तेज ताप, जाड़े में खूब ठंड और बरसात में प्रचंड बारिश। प्रचंड मौसम के ये तीन बिंदु हैं। ये सारे बारंबारता और गहनता के अर्थ में लिए जाते हैं, कितने समय में और कितनी मात्रा में क्या हो रहा है। मानसून सीजन में सिर्फ केरल में प्रचंड बारिश नहीं हुई। कर्नाटक से लेकर कोंकण तक के पूरे पश्चिमी घाट में प्रचंड बारिश हुई। लेकिन बारिश होने में अंतर हो गया है।

 

सवाल : बारिश की प्रवृत्ति (पैटर्न) में बदलाव का कारण क्या जलवायु परिवर्तन है?

निश्चित तौर पर बारिश के पैटर्न में बदलाव जलवायु परिवर्तन की वजह से होता है और इस बदलाव को लेकर केरल की प्रतिक्रया अलग हुई। पूर्वी कर्नाटक जिसे कुर्ग बोलते हैं, वहां भी ऐसी समस्या आई।

सवाल : क्या आप केरल में मौसम की चरम घटनाओं में पश्चिमी घाट का असर देखते हैं?

पश्चिमी घाट में बारिश तो सभी जगह हुई लेकिन स्थानीय जगहों पर प्रतिक्रिया अलग-अलग हुई। यह प्रतिक्रिया अलग-अलग क्यों हुई इसके उदाहरणों को देखेंगे तो आपको अपने सवाल का जवाब मिल जाएगा। केरल के पश्चिमी घाट लंबे हैं और अगर आप उत्तर केरल से मुंबई तक तक जाएंगे तो वे तट पर हैं। तो यह बहुत बड़ा अंतर है। गूगल मानचित्र देखकर भी आप इस अंतर को समझ सकते हैं। यह पहाड़ी इलाका है, यहां कोई घाट नहीं है। कोझीकोड से पहाड़ियों का अंतर कितना है यह समझना होगा। उत्तर की तरफ जाएंगे तो कोस्ट पर पहाड़ी है। बंगलूर छोटा सा मैदानी इलाका है। पणजी के बाद थोड़ा सा ज्यादा एरिया है और उसके बाद तट तक प्लैट हैं। बारिश पहाड़ी पर आती है। क्योंकि मानसूनी हवाएं अरब सागर से आती हैं। इधर बारिश आ गई तो उधर बंगाल की तरफ जाती है, जहां ढलान है। इसलिए पानी पूरब की ओर जाता है।

सवाल : क्या मानसूनी हवाओं और ढलानों ने दक्षिण भारत की नदियों की दिशा तय की है?

ज्यादा नदियां जैसे गोदावरी, कृष्णा और कावेरी पूरब की ओर बहनेवानी नदियां हैं। वहां बहुत कम ऐसी नदियां हैं जो पश्चिम की ओर बहती है। अब केरल में ज्यादातर नदियां पश्चिम की ओर बहनेवाली हैं। इसलिए ज्यादातर जलाशय पहाड़ियों पर बने हुए हैं। यहां पानी छोड़ने पर जलाशयों का पानी सीधे नीचे शहर की ओर जाएगा। केरल में 35 से 40 जलाशय हैं तो सारा छोड़ा हुआ पानी नीचे आएगा। यह ढलान है। जितना पानी आएगा पहले महाराष्ट्र के जलाशय भरेंगे, उसके बाद आंध्र प्रदेश के जलाशयों में जाएगा पानी। इसलिए जितना पानी बरेसगा वह बाढ़ के रूप में नहीं बहकर जलाशयों में जमा होगा। केरल में अगर जलाशय भर गया और पानी छोड़ दिया गया तो आधे घंटे में सारा पानी नीचे आ जाएगा। इस कारण से भारी बारिश को लेकर केरल की प्रतिक्रिया अलग होगी। सिर्फ आधे घंटे में बाढ़ की स्थिति बन जाती है। केरल के शहरों में जनसंख्या घनत्व ज्यादा है। कुछ शहर समुद्र के स्तर पर तो कुछ समुद्र तल के नीचे हैं। इसलिए बाढ़ की स्थिति में नुकसान होगा ही और यह ढांचागत नुकसान अधिक हुआ।

सवाल : केरल में बारिश के बाद अचानक सूखे के हालात कैसे पैदा हो गए?
पानी छोड़ने पर वह नीचे जा रहा है लेकिन जमीन के अंदर नहीं जा रहा है। यहां इस बात पर ध्यान देना होगा कि जब पानी छोड़े जाने की स्पीड अधिक होगी तो वह जमीन के नीचे नहीं रिस पाता है। ऐसे में जमीन के अंदर पानी की पुर्नप्राप्ति कैसे होगी। इसके बाद तो पानी की कमी तो होनी ही थी। धीरे-धीरे बारिश होगी तो धरती में संरक्षित होगी, लेकिन थोड़े समय की तेज बारिश बाढ़ ही के साथ बह जाती है।

सवाल : अगस्त, 2018 में केरल में आई भीषण बाढ़ क्या इसके भविष्य में भी दुहराने की आशंका है?
तेज बारिश तो कभी भी आ सकती है। अब देखना है कि यह जलाशय में कितना भरता है। पानी के इस भराव को नियंत्रित करना होगा। कुछ तो आपको बाहर रखना होगा ताकि नया पानी जलाशय में जा सके। नीतिगत स्तर पर कोई जलप्रबंधन है ही नहीं। तो पानी को तुरंत छोड़ने वाले जैसे हालात पैदा होंगे ही।

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