चारधाम मार्ग के निर्माण के दौरान नदी को किस तरह नुकसान पहुंचाया जा रहा है, इसका अंदाजा बांसवाड़ा पर मंदाकिनी नदी को देखकर लगाया जा सकता है
उत्तराखंड में ऑलवेदर रोड के नाम पर प्रकृति के साथ किस तरह से खतरनाक तरीके से छेड़छाड़ की जा रही है, इसका एक उदाहरण केदारनाथ मार्ग पर देखा जा सकता है, जहां मन्दाकिनी नदी में भारी मात्रा में मलबा डालकर उसके ऊपर सड़क बना दी गई है। करीब दो महीने तक केदारनाथ यात्रा नदी को डायवर्ट करके बनाई गई इसी सड़क पर संचालित की जाती रही। हालांकि पहाड़ी को कटान हो जाने के बाद यातायात को फिर से मुख्य सड़क पर डायवर्ट कर दिया गया है। लेकिन, नदी में सड़क बनाने के लिए जो मलबा डाला गया है, उसे हटाने की कोई व्यवस्था नहीं है।
इतनी भारी मात्रा में मलबा उठाने के लिए न तो संसाधन उपलब्ध हैं और न ही इस मलबे को डंप करने के लिए कोई जगह उपलब्ध है। उल्लेखनीय है कि 2013 की केदारनाथ त्रासदी के दौरान मन्दाकिनी नदी के तटवर्ती इलाकों में भारी तबाही के लिए इस नदी पर बनने वाली दो जल विद्युत परियोजनाओं फाटा-ब्यूंगगाड परियोजना और संगोली-भटवाड़ी परियोजना के मलबे को बड़ी वजह माना गया था।
जिला मुख्यालय रुद्रप्रयाग से करीब 35 किलोमीटर दूर बांसबाड़ा नामक स्थान पर केदारनाथ यात्रा मार्ग का सबसे खतरनाक स्लाइडिंग जोन है। यहां सड़क की चौड़ाई मात्रा 3.5 मीटर थी। कच्ची चट्टान होने के कारण हर साल बारिश के मौसम में यहां पहाड़ी का मलबा आ जाने से सड़क मार्ग बंद हो जाता है। चारधाम सड़क परियोजना के तहत यहां सड़क 12 मीटर चौड़ी की जा रही है। केदारनाथ यात्रा में वाहनों की भारी आवाजाही के बीच यहां पहाड़ी को काटना संभव नहीं था। पिछले वर्ष 21 दिसम्बर को इसी जगह पर चट्टान काटते समय मलबा गिरने से 8 मजदूरों की दबकर मौत हो गई थी। इसके बाद कुछ दिन तक यहां काम पूरी तरह से बंद रहा था।
नये सिरे से काम शुरू किया गया तो केदारनाथ यात्रा शुरू हो गई। पहाड़ी के कटान और तीर्थयात्रा को एक साथ जारी रखने के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग निर्माण खंड के अधिकारियों ने ऐसा तरीका अपनाया, जिसे प्रकृति के साथ छेड़छाड़ के लिहाज से बेहद चैंकाने वाला माना जा रहा है। अधिकारियों ने मन्दाकिनी नदी के 210 मीटर हिस्से में भारी मात्रा में मलबा डालकर नदी के प्रवाह को मोड़ दिया और यहां करीब 8 मीटर चौड़ी सड़क बना दी। दो महीने से ज्यादा समय तक यातायात नदी को पाटकर बनाई गई इसी सड़क पर चलता रहा।
राष्ट्रीय राजमार्ग खंड रुद्रप्रयाग के अधिशासी अभियंता जितेन्द्र त्रिपाठी कहते हैं कि यह सिर्फ वैकल्पिक व्यवस्था थी, अब यातायात फिर से मुख्य सड़क से ही संचालित किया जा रहा है। वे कहते हैं कि नदी पर सड़क बनाने के लिए जो मलबा डाला गया था, उसे हटाया जाएगा, लेकिन अब जबकि मानसून सिर पर है, ऐसे में गिनती के कुछ ट्रक इतना मलबा कैसे हटा पाएंगे और इसे हटाकर कहां डंप किया जाएगा, इसका उनके पास जवाब नहीं है। वैसे भी चारधाम सड़क परियोजना के तहत जो डंपिंग यार्ड बनाये गये हैं, वे दिखावे से ज्यादा कुछ नहीं हैं। बरसात होने पर इन डंपिंग यार्डों का मलबा बहकर नदियों में ही जा रहा है। जितेन्द्र त्रिपाठी कहते हैं कि सड़क को 12 मीटर चौड़ा किया जा रहा है। इसके लिए कुछ हिस्सा पहाड़ का काटा जा रहा है और नदी की तरफ से दीवार बनाकर पहाड़ी का मलबा उसमें भरा जा रहा है। स्थानीय लोगों की माने तो ऐसी बहुत कम जगह हैं, जहां नदी की तरफ से दीवार बनाई जा रही हो, ज्यादातर जगहों पर पहाड़ ही काटे जा रहे हैं।
टीवी पत्रकार मनु पंवार कहते हैं कि तुंगनाथ जाते और लौटते समय उन्होंने बांसबाड़ा में नदी की दिशा बदल कर यातायात संचालित होते देखा तो उन्हें बेहद हैरानी हुई। नदी के साथ यह छेड़छाड़ खतरनाक किस्म की है। अधिकारी बेशक दावा करें कि मलबा हटा दिया जाएगा, लेकिन जितनी भारी मात्रा में यहां मलबा डाला गया है, उसे हटाना संभव नहीं है। ऐसे में यह मलबा बरसात आने के बाद नदी में ही बहेगा और नदी के तटवर्ती क्षेत्रों के लिए खतरा बनेगा। वे विकास के नाम पर इस तरह की गतिविधियों को अनुचित मानते हैं।
मन्दाकिनी नदी पर जल विद्युत परियोजनाओं के विरोध में लंबे समय से आंदोलन कर रहे अखिल भारतीय किसान सभा के प्रांतीय महामंत्री गंगाधर नौटियाल कहते हैं कि नदियों में मलबा डालना एक तरह से नदियों की हत्या करना है। मन्दाकिनी नदी पर बनने वाली दो जल विद्युत परियोजनाओं का विरोध हम इसीलिए कर रहे हैं कि इन योजनाओं के तहत बनने वाली सुरंगों का मलबा नदी में न डाला जाए। नौटियाल कहते हैं कि बांसबाड़ा में जिस तरह नदी के प्राकृतिक प्रवाह को मलबा डालकर डायवर्ट किया गया है, उससे पता चल जाता है कि हमारे नीति-नियंता प्रकृति को लेकर कितने संवेदनशील हैं।
वे कहते हैं कि यदि कोई अन्य विकल्प नहीं था, तब भी इतना तो किया ही जाना चाहिए था कि मानसून से पहले मलबा नदी से हटा दिया जाता, लेकिन फिलहाल जो स्थिति है और जिस मात्रा में मलबा नदी में है, उसे हटा पाना किसी भी हालत में संभव नहीं है।
मन्दाकिनी बचाओ आंदोलन से जुड़ी सुशीला भंडारी भी नदी के साथ इस तरह की छेड़छाड़ को गलत मानती हैं। उनका कहना है कि मन्दाकिनी के साथ लगातार किसी न किसी बहाने इस तरह की ज्यादाती की जाती रही है। पहले दो-दो जल विद्युत परियोजनाओं के नाम पर बड़ी सुरंगें बनाकर मलबा मन्दाकिनी के हवाले कर दिया गया, जो 2013 में कुंड से लेकर रुद्रप्रयाग तक भारी तबाही का कारण बना। हमने उस समय भी आइंदा मन्दाकिनी में किसी तरह का मलबा न डालने की मांग की थी, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। उन्हें आशंका है कि केदारनाथ मार्ग पर पहाड़ों को काटकर मलबा जिस तरह से मंदाकिनी में डाला जा रहा है, वह एक और तबाही का कारण बन सकता है।
उत्तराखंड क्रांतिदल के नेता गंगाधर सेमवाल नदी को डायवर्ट करने के इस मामले को सीधे-सीधे जलीय जीवों की सामूहिक हत्या का मामला मानते हैं। उनका कहना है कि बेकसूर जलीय जीवों की इस तरह से हत्या करना अपराध है और ऐसा करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए। रुद्रप्रयाग के डीएम मंगेश घिल्डियाल कहते हैं कि यह एक वैकल्पिक व्यवस्था थी और यातायात फिर से मुख्य सड़क पर डायवर्ट कर दिया गया है।
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