चुनाव में बुंदेलखंडवासी सूखा, नाली, सड़क, पानी और विकास के मुद्दे पर चुनाव का बहिष्कार कर रहे हैं
झांसी से प्रदीप श्रीवास्तव/ अनिल अश्विनी शर्मा
बुंदेलखंड में अब तक चौथे और पांचवें चरण के चुनाव खत्म् हो चुके हैं और इन दो चरणों के चुनाव में क्षेत्र के चार जिलों के एक दर्जन से अधिक गांवों ने चुनावों का बहिष्कार किया है। बहिष्कार कारण यही कि अब तक इस क्षेत्र की विकराल होती सूखे की समस्या पर अब तक न तो उत्तर प्रदेश और न ही मध्य प्रदेश सरकार ने कुछ काम किया है। यही नहीं इन चुनाव के बहिष्कार का यह असर भी रहा है कि उसके आसपास के गांवों में भी मतदान का प्रतिशत कम हुआ है। इसका अंदाजा इसबात से लगाया जा सकता है कि बुंदलखंड में चौथे और पांचवें चरण के संपन्न हुए चुनावों में मतदान का प्रतिशत कम रहा है। इसे यदि आंकड़ों के माध्यम से देखें तो चौथे चरण का चुनाव 29 अप्रैल हो हुआ, जबकि, पांचवें चरण का चुनाव छह मई हुआ। इस बार यहां पर वोट डालने का प्रतिशत कम रहा। सन 2014 के लोकसभा चुनाव में 68.30 प्रतिशत वोट पड़े थे, जबकि इस बार मात्र 65.60 प्रतिशत ही वोट पड़ा। वर्तमान में 19 विधानसभा व 4 लोकसभा सीटों पर भारतीय जनता पार्टी का कब्जा है। बुंदेलखंड की भारी आबादी भी इस बार चुनाव से दूर रही। उनकी नाराजगी जनप्रतिनिधियों द्वारा चुने जाने के बाद क्षेत्र का विकास नहीं करना और सूखे का दिन प्रतिदिन विकाराल रूप लेते जाना है। यहां पर चैथे चरण में झांसी-ललितपुर, जालौन - भोगीनीपुर और चित्रकूट लोकसभा क्षेत्र में वोट डाले गए। पांचवें चरण में बांदा लोकसभा क्षेत्र में वोट डाले गए।
चौथे चरण में झांसी लोकसभा क्षेत्र में चुनाव के दौरान ललितपुर में तालबेहट ब्लाक के लालौन ग्रामवासियों ने नहर में पानी नहीं मिलने को लेकर मतदान का बहिष्कार कर दिया। गांव वालों का कहना था कि खेतों में फसल खड़ी है, जबकि उन्हें नहर में पानी नहीं दिया जा रहा है, जिससे फसल सूख जाएंगे। इसी तरह पाली तहसील के ग्राम बरेजा के लोगों ने पीने के पानी की कोई व्यवस्था नहीं होने से नाराज थे। उनका कहना है कि गांव में सड़क नहीं है। बुंदेलखंड जैसे सूखे क्षेत्र के बावजूद उनके पास सिंचाई की कोई व्यवस्था नहीं है, जिससे उनकी जिंदगी कठिन होती जा रही है। गांव का विकास थम सा गया है। हर बार जनप्रतिनिधियों को अवगत कराया जाता है, लेकिन वोट लेने के बाद वह वादे से मुकर जाते हैं। गांव वालों की मांग है कि जामनी बांध से एक छोटी नहर निकालकर बरेजा गांव तक लाई जाए। थाना पूंछ के परैछा गांव के लोगों ने भी 29 मई को चुनाव का बहिष्कार कर दिया। गांव वालों का कहना था कि गांव का विकास नहीं किया जा रहा है। यहां पानी की समस्या अभी तक दूर नहीं की गई है। गांव में रास्ता या कोई सड़क भी नहीं है।
जालौन लोकसभा क्षेत्र के डकोर ब्लाॅक के बंधौर, सिमिरिया, खरका, ददरी, टीकर, एन, कुरैना गांव के लोगों ने चुनाव बहिष्कार किया। यहां आला आधिकारियों ने मौके पर जा कर लोगों को समझाने बुझाने का प्रयास किया, लेकिन वह मानें नहीं। गांव वाले बिजली, पानी व सड़क जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए कई सालों से अधिकारियों से लेकर जनप्रतिनिधियों के तक के चक्कर लगा रहे हैं, लेकिन अभी तक कोई सुनवाई नहीं हुई है। गांव वालों का कहना था कि इन गांवों में सड़क नहीं है। कच्ची सड़क इतनी खराब है कि पैदल चलना तक दूभर है। सड़क खराब होने के कारण कई बार लोग बीमारी या दवा इलाज के अभाव में मौत तक के शिकार हो चुके हैं, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है। गांव वालों ने कई दिनों पहले से ही गांव में चुनाव बहिष्कार का पोस्टर व बैनर तक लगा दिया था, लेकिन तब किसी भी अधिकारी या जनप्रतिनिधि ने सुध नहीं ली। इसी तरह कदौरा के जकसिया गांव में भी सड़क की मांग को लेकर चुनाव बहिष्कार हुआ।
हमीरपुर लोकसभा क्षेत्र के कई गांवों में भी चुनाव का बहिष्कार किया गया। क्षेत्र के हेलापुर व अमिरता गांव के लोगों ने पोलिंग बूथ के बाहर चुनाव बहिष्कार करते हुए नारेबाजी शुरू कर दी। उनका कहना था कि गांव का संपर्क मार्ग कई सालों से खराब है, लेकिन उसे ठीक नहीं कराया जा रहा है। जरिया के पवई गांवों में भी पेयजल समस्या को लेकर गांव वालों ने चुनाव बहिष्कार किया। राठ क्षेत्र के टोला खंगारन गांव के लोगों ने भी सड़क निर्माण को लेकर चुनाव बहिष्कार किया।
बुंदलेखंड में विकास व पानी के मुद्दे को लेकर चुनाव बहिष्कार इस बार कुछ ज्यादा ही रहा। अधिकतर गांवों में अधिकारियों ने जाकर लोगों को समझाया तब जाकर गांव वाले मानें। कुछ गांव वालों ने तो बहिष्कार जारी रखा, जबकि कुछ बूथों पर कई घंटे बाद वोट पड़े। कहीं -कहीं तो मात्र दो चार वोट ही डाले गए।
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