General Elections 2019

आम चुनाव : पंजाब में राष्ट्रीय नहीं, स्थानीय मुद्दे हावी

आगामी 19 मई के लोकसभा के आखिरी चरण में वोट पंजाब में डाले जाएंगे। जहां स्थानीय मुद्दे ज्यादा हावी हैं। 

 
By DTE Staff
Published: Thursday 09 May 2019

पंजाब में पहली बार लोकसभा का चुनाव स्थानीय मुद्दों पर लड़ा जा रहा है। 2004 में अगर इंडिया शाइनिंग और सोनिया गांधी के विदेशी मूल जैसे देशव्यापी मुद्दे यहां भी प्रमुख थे, तो 2009 में पंजाब के सपूत डा. मनमोहन सिंह के आर्थिक विकास का नारा बड़ा था। 2014 का  चुनाव नरेंद्र मोदी के नाम पर लड़ा गया था। पंजाब में इस बार बालाकोट और राफेल डील की चर्चा तो है। लेकिन, इनसे ज्यादा बड़े मुद्दे नितांत स्थानीय हैं। जैसे,किसानों की कजर्माफी। पंजाब को नशामुक्त करने के वादे, दावे तो खैर सतत मुद्दे हैं ही।

पंजाब के लगभग 2 करोड़ मतदाताओं में दो तिहाई ग्रामीण पृष्ठभूमि से हैं। इसलिए खेती-किसानी से जुड़े मसले चुनावों के बिना भी हमेशा हावी रहते हैं। फरवरी-मार्च में किसानों ने अमृतसर के पास रेलवे लाइनों पर एक किलोमीटर तक तंबू तानकर रेल यातायात रोककर यह जता भी दिया। गुस्सा गन्ना मिलों से है, जिन्होंने किसानों से फसल दर फसल गन्ना ले लिया मगर करोड़ों रुपए का भुगतान रोका हुआ है। उन दिनों भारत-पाक सीमा पर तनाव चरम पर था, इसलिए हाईकोर्ट ने दखल दिया। किसानों से कहा कि यह महत्वपूर्ण रेललाइन है, इससे सैनिकों के लिए रसद और दूसरी जरूरी चीजों की आपूर्ति रुक रही है। किसानों ने राष्ट्रहित में तुरंत रेलवे ट्रैक खाली कर दिया, लेकिन यह कहकर कि आंदोलन खत्म नहीं हुआ है, सिर्फ टला है। ये आवाजें चुनावों के दौरान तेज होनी हैं।

किसानों की कजर्माफी का मुद्दा भी गरम है। राज्य में सत्ताधारी कांग्रेस की कैप्टन अमरेंद्र सिंह सरकार इसे अपना सबसे बड़ा चुनावी अस्त्र मान रही है। पिछले साल उसने दो लाख रुपए तक के कजर्दार छोटे और सीमांत किसानों के कर्ज माफ करने की प्रक्रिया शुरू की थी। इसके बाद ही कांग्रेस तीन राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में इस मुद्दे को दोहराकर पिछले साल दिसंबर में सत्ता में लौट चुकी है। इसलिए पंजाब कांग्रेस इस मुद्दे पर एक कदम आगे बढ़ा रही है। कैप्टन ने नया वादा किया है कि पंजाब की आर्थिक स्थिति जैसे-जैसे मजबूत होगी, किसानों के बड़े कर्ज भी माफ किए जाएंगे। इसके विपरीत भाजपा और अकाली दल गठबंधन कजर्माफी की कांग्रेसी नीति को ढकोसला कह रही हैं। वे ऐसे किसानों को सामने ला रहे हैं, जिन्हें कांग्रेस ने पोस्टर ब्वाय बनाया, लेकिन कर्ज माफ नहीं किया। ऐसे ही एक किसान को खड़ा कर अकाली दल ने लगभग दो लाख रुपए देकर सहानुभूति बटोरने की कोशिश की तो कैप्टन सरकार को भी घेरा। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पंजाब में अपनी पहली सभा गुरदासपुर में की तो किसान कजर्माफी को धोखा बताया। यही बात वह तीन राज्यों में विधानसभा चुनावों के दौरान भी कह चुके थे। यह अलग बात है कि वह इसके बाद अंतरिम बजट में किसानों के लिए एक निश्चित राशि की योजना लाकर प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि की पहली किस्त भी सीधे खातों में भिजवा रहे हैं। कांग्रेस कह रही है कि गरीब किसान को साढ़े तीन रुपए रोजाना देकर प्रधानमंत्री ढोंग कर रहे हैं।

भाजपा जैसे बालाकोट एयर स्ट्राइक को भुनाकर देश भर में उद्धत राष्ट्रवाद की लहर पैदा करने की कोशिश कर रही है, वैसे ही कांग्रेस भी राज्य में इस मुद्दे पर कार्रवाई का श्रेय लेने की कोशिश कर रही है। पंजाब में चुनाव सातवें और आखिरी चरण में 19 मई को हैं और यह मुद्दा और गर्मी पकड़ेगा, इसके पक्के आसार हैं।

एक और स्थानीय मुद्दा है नशामुक्ति। पंजाब विधानसभा के लिए 2017 में हुए चुनाव में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस पार्टी इसी मुद्दे की लहर पर तैरी थीं। दस साल से सत्ता पर काबिज भाजपा-अकाली दल गठबंधन को 117 में से 20 सीटें भी नहीं मिलीं। कांग्रेस को प्रचंड बहुमत मिला और आम आदमी पार्टी यहां दूसरे नंबर की पार्टी बन गई थी। कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने तब चार हफ्तों में नशा खत्म करने का वादा किया था। इस दौरान नशे के खिलाफ कार्रवाई भी की गई, दो साल में दो लाख से ज्यादा नशा कारोबारियों को जेल भेजने का दावा किया गया। मगर, इनमें नशा करने वाले ज्यादा हैं। ड्रग रैकेट चलाने वाले कोई बड़े नाम नहीं पकड़े गए हैं। पंजाब में नशे की आवक जस की तस है। भाजपा और अकाली दल अब इसी मुद्दे पर कैप्टन सरकार को घेर रही हैं। उनका सवाल है कि चार हफ्तों में नशा खत्म करने के दावे का क्या हुआ? इसका जवाब किसी के पास नहीं है।

शहरों में राष्ट्रवाद का मुद्दा जरूर उठाया जा रहा है। इस पर कांग्रेस को घेरने की कोशिश हो रही है। खास कर कांग्रेस सरकार में कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू की पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के साथ दोस्ती को विपक्ष मुद्दा बना रहा है। पुलवामा हमले के बाद उन्होंने कहा था कि आतंकवाद के लिए एक आदमी या पूरे देश को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद भी उनके बयान को भाजपा और उद्धत राष्ट्रवादियों ने राष्ट्रविरोधी ठहराने की मुहिम छेड़ी। भाजपा के हर छोटे-बड़े नेता ने उन्हें कांग्रेस सरकार से बर्खास्त करने और पाकिस्तान भेज देने के बयान दिए। शायद इसलिए 7 मार्च को मोगा में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की रैली हुई तो स्टार प्रचारक कहे जाने वाले नवजोत सिद्धू को बोलने का मौका नहीं दिया गया। सिद्धू ने कहा, कांग्रेस पार्टी ने मुङो मेरी जगह दिखा दी है। 

मगर इस मुद्दे का पंजाब में कांग्रेस को शायद बहुत ज्यादा नुकसान नहीं हो। सेना में कैप्टन रह चुके पटियाला के पूर्व महाराजा अमरेंद्र सिंह ने नवजोत सिद्धू से अलग लाइन पकड़े रही। एयर स्ट्राइक के बाद सरहद पर तनाव चरम पर पहुंचा तो मुख्यमंत्री ने सूबे से सारे सरहदी जिलों के दौरे शुरू कर दिए थे। पाकिस्तान और इमरान खान को स्पष्ट चेतावनी देकर उन्होंने भाजपा और अकाली दल से यहां यह मुद्दा छीन लिया था। यह उनके मिशन13 की रणनीति के अनुरूप था। सूबे की सभी 13 लोकसभा सीटों को जीतना।

ऐसे में माना यही जा रहा है कि पंजाब में इस बार वोट बिल्कुल स्थानीय मुद्दों पर पड़ेंगे और कांग्रेस पिछले विधानसभा चुनाव जैसा प्रदर्शन दोहरा दे तो कोई आश्चर्य नहीं है।

अनिल अश्विनी शर्मा/योगेश्वर

Subscribe to Daily Newsletter :

Comments are moderated and will be published only after the site moderator’s approval. Please use a genuine email ID and provide your name. Selected comments may also be used in the ‘Letters’ section of the Down To Earth print edition.