खाद्य एलर्जी का संबंध महानगरीय क्षेत्रों में रहने वाले व्यक्तियों के अलावा उन लोगों से भी हो सकता है, जो पाश्चात्य जीवन शैली अपना चुके समुदायों के बीच जाकर रह रहे हैं।
बदलती जीवन शैली के साथ-साथ खानपान का बाजार बढ़ रहा है। इसके साथ खाद्य एलर्जी का खतरा भी अपने पैर पसार रहा है। यह सुनकर कोई भी हैरान हो सकता है कि रोगों से बचाने वाला शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र ही खाद्य एलर्जी के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार होता है। खाद्य एलर्जी के लिए जीवन शैली से लेकर खानपान की आदतें, प्रदूषित हो रही खाद्य श्रृंखला एवं पर्यावरणीय बदलाव समेत कई कारण जिम्मेदार हो सकते हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार बढ़ती खाद्य एलर्जी का संबंध महानगरीय क्षेत्रों में रहने वाले व्यक्तियों के अलावा उन लोगों से भी हो सकता है, जो पाश्चात्य जीवन शैली अपना चुके समुदायों के बीच जाकर रह रहे हैं। भारतीय शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन में यह खुलासा किया गया है।
दिल्ली स्थित वल्लभभाई पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट के निदेशक प्रो. राजकुमार के अनुसार “भारत में 30 प्रतिशत से अधिक लोग किसी न किसी प्रकार की एलर्जी से ग्रस्त हैं। खाद्य पदार्थों से होने वाली एलर्जी संपर्क माध्यमों जैसे- सांस, स्पर्श एवं आहार से हो सकती है।”
यह भी आश्चर्यजनक है कि खानपान की अत्यधिक विविधता वाले इस देश में स्वास्थ्य विशेषज्ञ एवं नीति निर्माता फूड एलर्जी से संबंधित आंकड़ों के लिए विदेशी अध्ययनों पर ही निर्भर हैं। हमारे यहां राष्ट्रीय स्तर पर एलर्जी से ग्रस्त मरीजों से संबंधित आंकड़ों का अभाव है।
हाल में वल्लभभाई पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट में एलर्जी के विभिन्न रूपों के प्रसार और उनके उपचार से जुड़ी रणनीतियों पर चर्चा के लिए एक सम्मेलन आयोजित किया गया था। इस दौरान प्रो. राजकुमार ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “भारत की करीब तीन प्रतिशत आबादी फूड एलर्जी से ग्रस्त है। सम्मेलन में आए विशेषज्ञों से प्राप्त तथ्य एलर्जी के मामलों से निपटने में कारगर रणनीति बनाने में मददगार हो सकते हैं।”
मनुष्य का प्रतिरक्षा तंत्र वायरस, परजीवी, बैक्टीरिया और विषाक्त तत्वों के हमले से रक्षा करता है। लेकिन कुछ लोगों का रोग-प्रतिरोधी तंत्र भ्रमित हो जाता है और हानि-रहित एवं हानिकारक तत्वों के बीच अंतर नहीं कर पाता।
प्रतिरक्षा तंत्र जब किसी खाद्य पदार्थ में मौजूद प्रोटीन की पहचान बाहरी तत्व के रूप में करता है तो यह खास प्रतिरोधी तत्व इम्यूनोग्लोबिन 'ई' उत्पन्न करता है। इम्यूनोग्लोबिन त्वचा, फेफड़े और आंतों की कोशिकाओं से जुड़े रहते हैं। एलर्जी पैदा करने वाले तत्वों के संपर्क में आने पर ये कोशिकाएं हानिकारक तत्वों से बचाव के लिए हिस्टैमीन समेत अन्य रसायन छोड़ती हैं। इस तरह शरीर के भीतर एक घमासान मच जाता है, जिसके कारण हम बीमार हो जाते हैं।
जब शरीर का रोग-प्रतिरोधक तंत्र किसी हानि-रहित बाहरी तत्व के संपर्क में आने से अति सक्रिय हो जाता है तो एलर्जी पैदा होती है। एलर्जी के लक्षणों में खुजली होना, त्वचा पर चकत्ते पड़ जाना, आंखों, होठ, चेहरे एवं गले में सूजन, सांस लेने में तकलीफ और धड़कनों का तेज होना शामिल हैं। कई बार ये लक्षण सामान्य होते हैं तो कई बार जानलेवा भी हो सकते हैं। इसलिए इन्हें नजरंदाज करना ठीक नहीं है। एलर्जी पैदा करने वाले तत्वों के प्रति हमारे रोग प्रतिरोधी तंत्र की प्रतिक्रिया का प्रभाव कुछ सेकंड से लेकर 30 मिनट या फिर 6-8 घंटों में उभर सकता है।
भारत जैसे देश में खाद्य एलर्जी के खतरे की दस्तक और भी खतरनाक हो सकती है क्योंकि यहां न केवल तेजी से पश्चिमी जीवन शैली को अपनाया जा रहा है, बल्कि शहरीकरण और पलायन भी बढ़ रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार किसी आहार के प्रति एलर्जिक रिएक्शन वयस्कों की अपेक्षा बच्चों में अधिक देखने को मिलते हैं।
फूड एलर्जी से संबंधित जागरूकता के प्रसार, शोध एवं शिक्षा से जुड़ी अमेरिकी संस्था फूड एलर्जी रिसर्च ऐंड एजुकेशन (फेयर) के अनुसार 170 से भी अधिक ऐसे खाद्य पदार्थों की पहचान की गई है, जो एलर्जी पैदा कर सकते हैं। हालांकि फूड एलर्जी के 90 प्रतिशत मामलों के लिए दूध, अंडे, मूंगफली, कवचदार प्राणी, मछली, सोया, प्रिजर्वेटिव्स, फास्ट फूड और गेहूं को ही एलर्जी पैदा करने वाले कुछ प्रमुख तत्वों को जिम्मेदार माना जाता है।
विभिन्न देशों का एलर्जी संबंधी प्रोफाइल भी अलग-अलग है। भारत में मूंगफली को एलर्जी पैदा करने वाला आम खाद्य पदार्थ माना जाता है। इसके बाद चॉकलेट, मछली, नारियल और काजू एलर्जी पैदा करने वाले तत्वों में शुमार किए जाते हैं।
स्पेन, इटली और ग्रीस जैसे देशों में तरबूज, सेब और आड़ू से होने वाली एलर्जी आम है। नॉर्वे और आइसलैंड जैसे देशों में फलीदार खाद्य पदार्थों को मुख्य रूप से फूड एलर्जी के लिए जिम्मेदार माना जाता है। जबकि स्विजरलैंड को अजवाइन के कारण होने वाली एलर्जी के लिए जाना जाता है। हांगकांग में रॉयल जैली, घाना में अनन्नास, सिंगापुर में पक्षियों के घोंसले, जापान में कूटू और बांग्लादेश में कटहल एलर्जी के लिए सबसे ज्यादा बदनाम हैं।
भोजन से होने वाली एलर्जी के मामलों में संबंधित खाद्य पदार्थ का उपयोग छोड़ देना ही बचाव का उपयुक्त जरिया माना जाता है। एलर्जी होने के उन छिपे हुए कारणों का भी पता लगाने का प्रयास करना चाहिए, जिनसे आप अनजान हैं। उदाहरण के लिए बेकरी उत्पादों को ले सकते हैं। आमतौर पर बेकरी में अंडों का इस्तेमाल होता है। यह संभव है कि आपको अंडों से एलर्जी हो। वैज्ञानिकों के अनुसार फसलों में किए जा रहे आनुवांशिक बदलाव, पशुओं को दी जाने वाली दवाएं और प्रदूषित होती खाद्य श्रृंखला के कारण भी एलर्जी की समस्या हो सकती है। इसलिए कुछ खाने से पहले तय कर लें कि वह खाद्य पदार्थ आपके शरीर के लिए सही है या नहीं। एलर्जी का इलाज काफी लंबा चलता है। इसलिए रोगी को धैर्यपूर्वक इलाज कराना चाहिए। डॉक्टर के परामर्श से दवाओं का सही व नियमित प्रयोग करना चाहिए।
विभिन्न प्रकार की एलर्जी की समस्याओं के लिए हमारी जीवन शैली और वातावरण प्रमुख रूप से जिम्मेदार माना जाता है। खानपान की आदतों से लेकर रहन-सहन के तौर-तरीके, प्रदूषण, मौसम और पर्यावरणीय दशाएं भी इसमें शामिल हो सकती हैं। इससे निपटने के लिए विस्तृत स्तर पर सर्वेक्षण जरूरी है ताकि एलर्जी पैदा करने वाले तत्वों के प्रभाव के बारे में व्यापक समझ पैदा हो सके।
(इंडिया साइंस वायर)
We are a voice to you; you have been a support to us. Together we build journalism that is independent, credible and fearless. You can further help us by making a donation. This will mean a lot for our ability to bring you news, perspectives and analysis from the ground so that we can make change together.
Comments are moderated and will be published only after the site moderator’s approval. Please use a genuine email ID and provide your name. Selected comments may also be used in the ‘Letters’ section of the Down To Earth print edition.