आर्कटिक के बदलते परिदृश्य के मायने तलाशती किताब और किताब के लेखक मार्क सी. सेरेज का साक्षात्कार
मार्क सी. सेरेज की किताब ब्रेव न्यू आर्कटिक के अंतिम अध्याय के आखिर शब्द, “लेकिन आर्कटिक झूठ नहीं बोलता” जहां एक ओर दुख भरे लगते हैं, वहीं दूसरी ओर डराने वाले भी हैं। इस किताब के बारे में सबसे अच्छी बात यह है कि पूरी किताब में सेरेज निष्पक्ष रहे हैं, हालांकि कई जगहों पर उनका दर्द छलक आया है। कहीं पर वह विभिन्न कारणों से ध्रुवीय भालू की आबादी कम होने पर दुखी हैं, तो अगले ही पल बोहेड व्हेल की संख्या बढ़ने पर खुशी भी जाहिर करते हैं जिसका मुख्य कारण समुद्री बर्फ पिघलने से बोहेड व्हेल के लिए पर्याप्त खाना उपलब्ध होना है।
जैसा कि ऊपर दिए गए उदाहरण से स्पष्ट है, जलवायु परिवर्तन एक जटिल अवस्था है। जीवनभर इसका अध्ययन करने वाले भी अभी तक इसके प्रभावों को पूरी तरह नहीं समझ पाए हैं। इस किताब में इसी जटिलता को समझने की कोशिश की गई है और यही इसका मुख्य विषय भी है। सेरेज बेझिझक स्वीकार करते हैं कि 1990 और 2000 के दशक तक वैज्ञानिक समुदाय इस बात को लेकर निश्चित नहीं था कि वैश्विक तापमान के लिए मानव कितना जिम्मेदार है और प्राकृतिक रूप से जलवायु परिवर्तन इसमें क्या भूमिका निभाता है। इसका मुख्य कारण वे अविश्वसनीय तथ्य व रिकॉर्ड थे जिनकी वजह से जलवायु परिवर्तन के आकलन के लिए पर्याप्त आंकड़े नहीं जुटाए जा सके। इसलिए वैज्ञानिकों के सामने सबसे बड़ी चुनौती ऐसी घटना का अध्ययन करना है जो पूरे ग्रह के लिए समय निरपेक्ष हो तथा संभवत: जलवायु के स्वरूप के संबंध में किसी सुव्यवस्थित, वस्तुपरक अध्ययन से पहले घटित हुई हो।
वर्ष 1996-97 के आसपास आर्कटिक का अध्ययन कर रहे विभिन्न विषयों के वैज्ञानिकों ने अपने संसाधनों और विशेषज्ञता के साझे उपयोग के लिए आधिकारिक/ अनाधिकारिक समूह बनाने शुरू किए। “वायुमंडलीय पुन: विश्लेषण” के लिए किए गए प्रयास इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं जो ऐतिहासिक रूप से उपलब्ध सारी वायुमंडलीय जानकारी को, मौसम के संख्यात्मक मॉडल से जोड़ने को अनिवार्य बना देते हैं जिससे जलवायु परिवर्तन के छोटे, अलग-थलग पड़े उदाहरण बड़ा रूप ले लेते हैं।
ऐसे विवरणों के जरिए सेरेज पिछले दो दशकों के दौरान आर्कटिक और समग्र रूप से वैश्विक तापमान पर हुए अनुसंधान के संबंध में कालक्रम प्रस्तुत करते हैं। वह ऐसे महत्वपूर्ण अध्ययनों और प्रमुख नतीजों की चर्चा करते हैं जिनसे आर्कटिक के बारे में हमारी वर्तमान समझ विकसित हुई है। वैज्ञानिक अनुसंधान की अव्यवस्था और इसके दोषों को दर्शाने की क्षमता एक तरह से इस किताब की सबसे बड़ी उपलब्धि है।
यह किताब बताती है कि किस तरह हर नया अध्ययन पिछले अध्ययन पर आधारित होता है जिसके अंतत: अनुसंधान उस सीमा तक पहुंच जाता है जहां वह व्यापक रूप से स्वीकृत तथ्य बन जाता है। इसमें भी विडंबना यह है कि किसी भी अन्य आधुनिक वैज्ञानिक तथ्य को इतने खंडन और विरोध का सामना नहीं करना पड़ा जितना जलवायु परिवर्तन को करना पड़ा है। शायद यह लेखक की समझदारी है कि उन्होंने जलवायु परिवर्तन में शामिल राजनीति की चर्चा पुस्तक के अंत में संक्षिप्त रूप से की है ताकि स्वतंत्र शैक्षिक अनुसंधान के लिए जनता की भागीदारी और सरकार की सहायता के महत्व को उजागर किया जा सके।
मूलरूप से ब्रेव न्यू आर्कटिक लेखक का व्यक्तिगत संवाद ही बना रहता है जिसमें वह आर्कटिक की समुद्री बर्फ को “मौत का भंवर” कहने के वर्ष 2008 के प्रचारित मत के बारे में अपनी मिली-जुली भावनाओं को व्यक्त करते हैं और शंकाओं को दूर करते हैं। अमेरिकी सीनेट समिति के सामने बयान देते समय सेरेज ने संयम बरतकर सभी बारीकियां और संदेह प्रकट किए तथा यह घोषणा की कि वैश्विक तापमान ही वास्तव में समुद्री बर्फ की गिरावट के लिए जिम्मेदार है। बाद में यह कहकर उन्होंने अपनी बात को सही ठहराया, “जिन्हें सुनाई नहीं देता, उन्हें सुनाने के लिए ऊंचा बोलना पड़ता है।” जलवायु परिवर्तन संबंधी अंतर-सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की विशेष रिपोर्ट, ग्लोबल वॉर्मिंग ऑफ 1.5 डिग्री सेल्सियस को मिली ठंडी प्रतिक्रिया को देखकर हम सोच में पड़ जाते हैं कि क्या वाकई सेरेज की आवाज में पर्याप्त ऊंचाई थी।
“हमें आरामपरस्ती से बाहर निकलना होगा”
जलवायु परिवर्तन से निपटने में कुछ वर्ष हमें आगे की बजाय पीछे ले गए हैं। इसमें कैसे कामयाबी मिलेगी? हाल के वर्षों में कुछ देशों, विशेष रूप से अमेरिका में हमारे कदम पीछे हटे हैं। हालांकि आगे की राह कठिन है, फिर भी मुझे विश्वास है कि अंतत: सच्चाई सामने आएगी। वैज्ञानिकों को जलवायु परिवर्तन और इसके पहलुओं का सच अधिक प्रभावी व सक्रिय रूप से जनता के सामने लाना चाहिए। हमें अधिक प्रभाव पैदा करना होगा, हमें अपना सुख और आराम त्यागना होगा। क्या आपको लगता है कि वैज्ञानिक समुदाय में पर्याप्त महत्वाकांक्षा नहीं है? हमने कुछ अवसर जरूर गंवाए हैं। हमें आंकड़े व जानकारी देने वाला ईमानदार माध्यम बनना होगा। अनियमितताओं को स्वीकार करना भी इसमें शामिल है। हम जलवायु परिवर्तन को हर घटना का जिम्मेदार बताते रहे तो हमें अतिवादी और डर फैलाने वाला माना जा सकता है। असल चुनौती यह है कि यदि कोई व्यक्ति विज्ञान का जानकार नहीं होता, तो उसके लिए ठोस आंकड़ों पर आधारित वैज्ञानिक तथ्यों को कल्पना और सोची-समझी गलतबयानी से अलग करना मुश्किल हो सकता है। अब आप किस पर काम कर रहे हैं? मैं नई किताब पर काम कर रहा हूं। मैं हमेशा से यह जानना चाहता हूं कि लोग वैज्ञानिक क्यों बनते हैं। मुझे कई रोचक कहानियां पता चली हैं कि लोग वहां कैसे पहुंचे जहां वे हैं और मैं उन लोगों में हूं जो इन कहानियों के जरिए अपने वैज्ञानिक समुदाय का थोड़ा मजाक तो उड़ाऊंगा ही। |
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