महासागर ही हैं जो कार्बन डाईऑक्साइड और दूसरे खतरनाक अपशिष्टों को आसानी से अपने अंदर समाहित कर लेते हैं। अब इनका अस्तित्व खतरे में है।
महासागरों को बचाने के मकसद से संयुक्त राष्ट्र का पहला सम्मेलन हाल ही में अमेरिका में हुआ। इसमें विभिन्न देशों, संस्थाओं और व्यापार समूहों ने समुद्र को बचाने का संकल्प लिया। लेकिन क्या ये लोग इन पर अडिग रहेंगे? न्यूयार्क स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय से विभा वार्ष्णेय की रिपोर्ट
ब्रिटेन के प्रतिष्ठित व्यवसायी व वर्जिन ग्रुप के संस्थापक रिचर्ड ब्रैन्सन से जब पूछा गया कि समुद्र को क्यों बचाना चाहिए तो उन्होंने मजाकिया अंदाज में अपने घर के पास स्थित कैरेबियन सागर की पोर्टो रिको खाई का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि इस 8.8 किलोमीटर गहरी खाई में अब भी सोने से भरे स्पैनिश, पुर्तगाली और ब्रिटिश जहाज मौजूद हो सकते हैं। समुद्र को बचाने का दूसरा कारण उन्होंने यहां पाई जाने वाली जैव विविधता को बताया। अब तक इस खाई की 60 मीटर की गहराई तक ही अध्ययन किया गया है।
ब्रैंसन यूएन के समुद्र को बचाने के लिए आयोजित सम्मेलन में 10 लाख से अधिक हस्ताक्षर की गई याचिका लेकर आए थे। इस याचिका के जरिए उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष पीटर थॉमसन से यह आग्रह किया कि 2030 तक कम से कम 30 प्रतिशत महासागरों को बचाया जाए।
यह पहली बार है कि संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देश, शैक्षिक, वैज्ञानिक, सिविल सोसायटी के कार्यकर्ता और व्यवसायिक अधिकारी इसमें मौजूद थे। सबने तरीके सुझाने की पहल की कि समुद्र में पैसों का कारोबार करने के साथ-साथ महासागर को स्वस्थ और जीवंत कैसे रखा जाये।
अमेरिका के पेरिस जलवायु समझौते से बाहर जाने की घोषणा को देखते हुए सम्मेलन की अहमियत और बढ़ गई है। हमारे महासागर धरती के लगभग तीन-चौथाई हिस्से में फैले हैं। प्रशांत, अटलांटिक, भारतीय, आर्कटिक और दक्षिणी महासागर जलवायु और मौसम प्रणालियों को संचालित करते हैं। ये कार्बन उत्सर्जन को अवशोषित करके जलवायु परिवर्तन के प्रतिरोधक के रूप में भी कार्य करते हैं।
पिछली दो शताब्दियों में 525 अरब टन कचरा महासागरों में गया है। इसके अलावा मानवीय गतिविधियों के कारण निकले कार्बन का करीब आधा हिस्सा भी समुद्र में समा गया। अगर समुद्र नहीं होते, तो धरती का औसत तापमान और बढ़ता। दशकों से कचरा, कॉर्बन डाईऑक्साइड और अपशिष्ट पदार्थ समुद्र को प्रदूषित कर रहे हैं।
स्वीडन के उप प्रधानमंत्री इसाबेला लॉविन ने कहा, यह सम्मेलन परिवर्तक हो सकता है। वह फिजी के प्रधानमंत्री फ्रैंक बैनीमारमा के साथ इस सम्मेलन की सह-अध्यक्ष हैं। बैनिमारमा जलवायु परिवर्तन पर इस साल के अंत में होने वाले संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) में कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज (सीओपी 23) की अध्यक्ष भी हैं। उन्होंने कहा “जलवायु परिवर्तन इस समय दुनिया की सबसे बड़ी चुनौती बन गया है। समुद्रों की स्थिति भी बहुत जल्दी खराब हो रही है। इन दोनों को बचाने के लिए समय काफी कम है।”
लॉविन ने कहा कि “अगर अभी कदम नहीं उठाए गए तो हमारे समुद्र जलवायु परिवर्तन के सबसे बड़े शिकार होंगे।”
एक देश की समस्या नहीं
यह सम्मेलन उस वक्त हो रहा है जब भूमि पर उत्पन्न सभी तरह का कचरा महासागरों में जा रहा है। इस सम्मेलन में जारी ग्लोबल इंटीग्रेटेड मरीन आकलन में कहा गया है कि महासागरों में प्रदूषण को समाने की क्षमता पूरी हो गई है। यद्यपि ये रिपोर्ट ये जानकारी प्रदान नहीं करती कि कौन सा सागर साफ है या कौन सा देश सबसे अधिक प्रदूषण फैला रहा है, लेकिन इसमें यह बात साफ है कि महासागर जिस स्तर पर दबाव झेल रहे हैं, उसे दूर करने के लिए वैश्विक स्तर पर तत्काल कार्रवाई की जरूरत है। लेकिन दुर्भाग्य से, हम हमारे चारों ओर फैले महासागरों के बारे में बहुत कम जानते हैं। हिंद महासागर का अध्ययन तो बहुत ही कम किया गया है। इसके पीछे एक कारण हो सकता है कि हिंद महासागर जिन देशों की सीमाओं से जुड़ा है वे बहुत गरीब हैं और शोध के लिए वे बहुत अधिक रुपये खर्च नहीं कर सकते। अब तक, महासागर के अध्ययन के लिए दो अंतरराष्ट्रीय अभियान भेजे जा चुके हैं। एक अभियान 2015 में भेजा गया था। लेकिन इस अभियान का उद्देश्य मुख्य रूप से मछली पकड़ने के लिए नये मैदान की खोज तक ही सीमित है।
उद्योग और देश मौके तलाशें
समुद्र से हमें बहुत से आर्थिक लाभ मिलते हैं मसलन, मछलियां, पर्यटन, खनिज, दवाइयां, नवीन ऊर्जा, व्यापार और यातायात। अनुमान के मुताबिक, समुद्र से हासिल होने वाले समस्त उत्पादों की कीमत 2.5 ट्रिलियन डालर है। इन सब चीजों का लाभ लेने के दौरान समुद्रों को बचाने के लिए सतत विकास लक्ष्य14 (एसडीजी 14) तय किया गया है। एसडीजी 14 में दस लक्ष्य हैं जो समुद्र में पाई जाने वाली जैव विविधता और संसाधनों को बचाए रखेंगे। इनमें से कुछ लक्ष्य ऐसे हैं जो 2020 तक हमें हासिल करने हैं। सम्मेलन में प्रतिनिधियों ने नीति, शोध, व्यापार, मानवाधिकार के बारे में भी बात की।
सम्मेलन में आए विभिन्न देशों के प्रतिनिधियों ने पांच दिन के सम्मेलन के अंत तक महासागरों को स्वस्थ और सुरक्षित रखने के लिए 1328 स्वैच्छिक संकल्प लिए। व्यापारी वर्ग ने इसमें ज्यादा उत्साह नहीं दिखाया। उनके केवल छह प्रतिशत संकल्प थे। यूएन ग्लोबल कॉम्पैक्ट (व्यापार समूहों के साथ काम करने वाली यूएन की संस्था) की मुख्य कार्यक्रम अधिकारी लीला करबासी ने कहा कि कंपनियों से एसडीजी 14 पर स्वैच्छिक संकल्प लेना काफी कठिन रहा।
भारत ने पुराने वादे ही सम्मेलन में दोहराये
विश्व महासागर दिवस पर भारत ने भी सम्मेलन में स्वेच्छा से 17 वादे किए। इन वादों में आर्कटिक महासागर में वैश्विक शोध में योगदान देने से लेकर भारतीय मछुआरों की सहायता करना शामिल है। भारत ने यह भी संकल्प लिया कि वह छोटे द्वीपों व विकासशील राज्यों (एसआईडीएस) की मदद भी करेगा। |
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