पत्थरगढ़ी के लोगों का कहना है कि आम चुनाव के बहाने उन्हें प्रताड़ित किया जा सकता है, इसलिए वे चुनावी प्रक्रिया में शामिल नहीं होंगे।
पत्थरगढ़ी के नाम से चर्चित इलाके के लोग डरे हुए हैं। उनका कहना है कि आम चुनाव के बहाने उन्हें प्रताड़ित किया जा सकता है, इसलिए वे चुनावी प्रक्रिया में शामिल नहीं होंगे। कुछ नागरिक संगठनों ने चुनाव आयोग को इस बात की जानकारी दी है और कहा है कि आयोग इस बारे में दखल दे।
पिछले कुछ वर्षों में, झारखंड के खूंटी जिले के कई ग्रामीणों ने अपने गांवों के प्रवेश द्वार पर पारंपरिक पत्थर की पट्टिका (जिसे पत्थरगढ़ी कहा जाता है) लगा कर घोषित कर रखा है कि ग्राम सभा के अधिकार के बिना गांव में प्रवेश तक नहीं किया जा सकता। खुंटी के बाद आसपास के लगभग 30 गांवों ने भी अपने गांव के प्रवेश द्वार पर पत्थरगढ़ी कर दी। पत्थरगढ़ी का आशय एक एक बड़े पत्थर को गाड़ कर उस पर संविधान की उन धाराओं को लिख दिया गया है, जिनमें ग्राम सभाओं के अधिकारों का वर्णन है। अब इस इलाके को पत्थरगढ़ी के नाम से जाना जाता है।
पत्थरगढ़ी के इस 'विद्रोह' की वजह से स्थानीय पुलिस द्वारा अकसर उनके खिलाफ कार्रवाई की जाती है, इसलिए इन गांवों के लोग बाहर कम निकलते हैं। अब, जब 6 मई 2019 को आम चुनाव है तो इन आदिवासियों को लगता है कि चुनावी प्रक्रिया के कारण उन्हें गांव से बाहर निकलना पड़ सकता है या कुछ लोग चुनाव के बहाने गांव में घुस सकते हैं, इसलिए उन्होंने चुनावी प्रक्रिया से दूर रहने का मन बनाया है।
कई स्वयंसेवी संगठनों जैसे झारखंड जनाधिकार महासभा (जेजेएम), पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज, डब्ल्यूएसएस और आदिवासी मंच की एक फैक्ट फाइंडिंग टीम ने निष्कर्ष निकाला था कि पिछले कुछ समय के दौरान इलाके में कम से कम 150 एफआईआर दर्ज की गई और हजारों लोगों को नामजद किया गया। बल्कि उनमें से कुछ पर देशद्रोह का मुकदमा भी दर्ज किया गया।
यही वजह है कि लोग अब स्थानीय पुलिस से बचना चाह रहे हैं। रांची स्थित एक स्थानीय कार्यकर्ता सुनील मिंज का कहना है कि अब सुरक्षा बलों ने स्थानीय स्कूलों में शिविर बना लिए हैं। उन्होंने कहा कि आदिवासी डरते हैं कि अगर वे बाहर जाते हैं तो सरकार उन्हें पकड़ सकती है। इसलिए, 30 गांवों के लोगों ने घोषणा की है कि वे मतदान नहीं करेंगे।
क्षेत्र में तनाव फैलने के बाद कुछ सिविल सोसायटी ग्रुप्स ने झारखंड के मुख्य निर्वाचन अधिकारी एल खियांगते से 2 अप्रैल, 2019 को मुलाकात की कोशिश की, ताकि उन्हें इलाके में व्याप्त दहशत और भय की जानकारी दी जा सके। इनमें शामिल एक कार्यकर्ता सिराज दत्ता ने बताया कि पहले से समय तय होने के बावजूद मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने तीन घंटे इंतजार कराया। इसके बाद हम एक पत्र उनके कार्यालय में छोड़कर आ गए।
पत्र में कहा गया है कि हाल ही में जिस तरह बिशुनपुरा पुलिस ने भोजन का अधिकार मुद्दे पर लोगों को संबोधित कर रहे जेजेएम के सदस्यों को गिरफ्तार किया था और प्रशासन ने दावा किया था कि धारा 144 के तहत कार्रवाई की गई है तो उससे लगता है कि स्थानीय पुलिस और प्रशासन धारा 144 के बहाने और नागरिक संगठनों या लोगों को प्रताड़ित कर सकती है।
इस पत्र में मुख्य निर्वाचन अधिकारी से खूंटी लोकसभा में असामान्य स्थिति का संज्ञान लेने की मांग करते हुए कहा गया है कि क्षेत्र में स्वतंत्र और निष्पक्ष मतदान कराने के लिए इस इलाके में विशेष स्वतंत्र पर्यवेक्षकों को तैनात किया जाना चाहिए।
उधर, खियांगते ने कहा कि हालांकि उन्हें नागरिक संगठनों के पत्र के बारे में जानकारी नहीं है, लेकिन वह इस मुद्दे से अवगत हैं। इसलिए हम स्थानीय लोगों को समझाने के लिए एक जागरूकता कार्यक्रम चलाएंगे। जब ‘डाउन टू अर्थ’ ने खूंटी जिले में सुरक्षा के इंतजामों के बारे में पूछा, तो उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग द्वारा नियुक्त एक वरिष्ठ पुलिस पर्यवेक्षक रांची में नियुक्त है, जो चुनाव से संबंधित सुरक्षा इंतजामों पर नजर रखे हुए हैं।
We are a voice to you; you have been a support to us. Together we build journalism that is independent, credible and fearless. You can further help us by making a donation. This will mean a lot for our ability to bring you news, perspectives and analysis from the ground so that we can make change together.
Comments are moderated and will be published only after the site moderator’s approval. Please use a genuine email ID and provide your name. Selected comments may also be used in the ‘Letters’ section of the Down To Earth print edition.