Governance

हिमालयी राज्यों का मसूरी संकल्प, ग्रीन बोनस पर सहमति  

पर्वतीय राज्यों ने हिमालय की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने और देश की समृद्धि में योगदान का संकल्प लिया

 
By Varsha Singh
Published: Monday 29 July 2019
Photo: Getty Images

28 जुलाई को मसूरी में हुए हिमालयन कॉन्क्लेव में  हिमालयी राज्यों ने ‘‘मसूरी संकल्प’’ पारित किया। इसके तहत पर्वतीय राज्यों ने हिमालय की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने और देश की समृद्धि में योगदान का संकल्प लिया। साथ ही, प्रकृति, जैव विविधता, ग्लेशियर, नदियों, झीलों के संरक्षण का भी प्रण लिया गया। भावी पीढ़ी के लिए लोककला, हस्तकला, संस्कृति के संरक्षण की बात कही गई। हिमालयी राज्यों ने पर्वतीय क्षेत्रों के सतत विकास की रणनीति पर काम करने को लेकर प्रतिबद्धता जतायी।

हिमालयन कान्क्लेव में आपदा, जल शक्ति, पर्यावरणीय सेवाओं जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई। हिमालयी राज्यों ने एक कॉमन एजेंडा तैयार कर केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को सौंपा। हिमालयन कॉनक्लेव में शामिल राज्यों ने पर्यावरणीय सेवाओं के लिए ग्रीन बोनस की मांग की और कहा कि हिमालयी राज्य देश के जल स्तम्भ हैं। इसलिए नदियों के संरक्षण और उन्हें पुनर्जीवित करने के लिए केन्द्र की योजनाओं में हिमालयी राज्यों को वित्तीय सहयोग दिया जाना चाहिए। साथ ही नये पर्यटक स्थलों को विकसित करने में केन्द्र सरकार से सहयोग की मांग की गई। हिमालयी राज्य के प्रतिनिधियों ने कहा कि देश की सुरक्षा को देखते हुए पलायन रोकने के लिए सीमावर्ती क्षेत्रों के विकास को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। साथ ही हिमालय क्षेत्र के लिए अलग मंत्रालय के गठन का भी सुझाव दिया गया।

इस सम्मेलन में नीति आयोग, पन्द्रवें वित्त आयोग और केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने हिमालयी राज्यों के लिए बजट में अलग से प्लान किये जाने का आश्वासन दिया।

केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि सीमांत क्षेत्रों से पलायन रोकने के लिए विशेष प्रयास करने होंगे। इसमें पंचायतीराज संस्थाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। उन्होंने मान कि दूरस्थ क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध करा कर ही पलायन को रोका जा सकता है। उन्होंने कहा कि सीमांत क्षेत्रों में रहने वाले लोग देश की सुरक्षा में आंख और कान का काम करते हैं। इससे सुरक्षा व्यवस्था और मजबूत होगी। निर्मला सीतारमण ने कहा कि हमें विकास के साथ ही पर्यावरणीय सुरक्षा पर भी ध्यान देना होगा।

15वें वित आयोग के अध्यक्ष एनके सिंह ने हिमालयन कॉन्क्लेव को लेकर कहा कि अपनी साझा समस्याओं को रखने और उनके हल के लिए नीति निर्धारण में ये एक महत्वपूर्ण प्लेटफार्म साबित हो सकता है।

सम्मेलन में मौजूद नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने कहा कि कि हिमालयी राज्यों में घरेलू पर्यटन के साथ अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों को आकर्षित करने की बात कही। उन्होंने कहा कि सभी हिमालयन राज्य आपसी तालमेल से नई योजनाओं को साझा कर नीति आयोग के सामने रख सकते हैं।

हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने पर्वतीय क्षेत्रों में रेल और हवाई कनेक्टविटी विकसित किये जाने की जरूरत बतायी। छोटे राज्यों के सीमित संसाधनों को देखते हुए उन्होंने केन्द्र से वित्तीय सहायता में प्राथमिकता दिए जाने को कहा।

मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड कोंगकल संगमा ने कहा कि हिमालयी राज्यों में विकास योजनाओं की लागत अधिक होती है। इसलिए विभिन्न विकास योजनाओं के मानकों में इस पर ध्यान देना जरूरी है। उन्होंने कहा कि आर्थिक विकास और पारिस्थितिकीय संतुलन को बनाये रखना, हिमालयी राज्यों की दोहरी जिम्मेदारी होती है। उन्होंने सतत विकास के लिए रिस्पोंसिबल टूरिज्म पर फोकस करने को कहा।

नागालैंड के मुख्यमंत्री नेफियू रियो ने पर्वतीय क्षेत्रों में आजीविका के साधन बढ़ाने और इको सिस्टम की अहमियत पर ज़ोर दिया। अरूणाचल के उप मुख्यमंत्री चोवना मेन ने कहा कि सीमांत क्षेत्रों में आधारभूत सुविधाओं के विकास पर विषेष ध्यान देना होगा।मिजोरम के मंत्री टी.जे.लालनुनल्लुंगा ने प्राकृतिक आपदा, जैव विविधता संरक्षण में स्थानीय लोगों की भागीदारी, डिजीटल कनेक्टीविटी पर जोर दिया। कार्यक्रम में मौजूद केंद्र के पेयजल एवं स्वच्छता सचिव परमेश्वरमन अय्यर ने जल संरक्षण में स्प्रिंगशेड मैनेजमेंट को प्रभावी ढंग लागू करने की बात कही।

अब हर वर्ष इस तरह का हिमालयन कॉनक्लेव आयोजित होगा। भौगोलिक दुश्वारियां और प्राकृतिक संवेदनशीलता की वजह से हिमालयी राज्यों की कई समस्याएं एक जैसी ही हैं। पर्यटन, इको टूरिज्म, ऑर्गेनिक खेती, पर्वतीय क्षेत्रों में पलायन रोकने के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाने जैसे साझा मुद्दों पर हिमालयी नेताओं ने चर्चा की। अलग हिमालयन मंत्रालय बनाकर ये समस्याएं सुलझायी जा सकती हैं। इस सबमें इन राज्यों के केंद्र सरकार से अलग वित्तीय मदद की दरकार है। लेकिन जल विद्युत परियोजनाओं जैसे पर्यावरणीय बहस वाले मुद्दों पर मसूरी में कोई बात नहीं हुई। 

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