केंद्र सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना पर दस सवाल…
एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड योजना क्या है?
यह एक केंद्रीय योजना है जिसका मकसद राशन कार्ड पोर्टेबिलिटी है। इस योजना के तहत लाभार्थी अथवा राशन कार्ड धारक देश की किसी भी सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) दुकान से राशन ले सकता है। यानी वह किसी एक पीडीएस दुकान से बंधा नहीं रहेगा।
यह योजना कब से लागू की जाएगी?
केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री रामविलास पासवान ने राज्यों को 30 जून 2020 तक का समय दिया है। इसके बाद यह योजना देश भर में लागू कर दी जाएगी।
देश में कितने लोग जन वितरण प्रणाली से जुड़े हैं?
भारत में करीब 81 करोड़ लोग जन वितरण प्रणाली के तहत राशन प्राप्त करते हैं। केंद्र सरकार का दावा है कि इन लाभार्थियों को हर साल करीब 612 लाख टन खाद्यान्न वितरित किया जाता है। ये खाद्यान्न 5 लाख 40 हजार सार्वजनिक वितरण दुकानों के जरिए दिया जाता है। कहा जा सकता है कि देश में गरीबों की एक बड़ी आबादी सरकार से मिलने वाले राशन पर निर्भर है।
यह योजना कैसे काम करेगी?
इस योजना के तहत सभी राशन कार्डों को एक सर्वर से जोड़ा जाएगा। ये राशन कार्ड आधार से भी जुड़ेंगे। इसके अलावा राशन की सभी दुकानों को प्वाइंट ऑफ सेल (पीओएस) मशीनों से लैस किया जाएगा। इन मशीनों के जरिए ही राशन का वितरण किया जाएगा। भारतीय खाद्य निगम के गोदामों और राज्य के सभी राशन डिपो को ऑनलाइन किया जाएगा जिससे देशभर में राशन के कुल स्टॉक पर निगरानी रखी जा सके।
अभी राज्यों में पीओएस मशीनों की क्या स्थिति है?
दस राज्यों में अभी पीओएस मशीनों से शत प्रतिशत राशन का वितरण किया जा रहा है। इन राज्यों में आंध्र प्रदेश, गुजरात और हरियाणा, झारखंड, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, तेलंगाना, राजस्थान और त्रिपुरा शामिल हैं। इन राज्यों में पीडीएस दुकानों को इंटरनेट से जोड़ा जा चुका है। यहां राशन कार्ड धारक किसी भी दुकान से राशन प्राप्त कर सकते हैं। सरकार का दावा है कि इन राज्यों में जनवरी 2020 से ही योजना पर अमल शुरू हो जाएगा।
क्या यह केंद्रीय योजना अंतरराज्यीय स्तर पर अब तक आजमाई गई है?
हां। आंध्र प्रदेश-तेलंगाना और गुजरात-महाराष्ट्र में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में यह योजना चल रही है। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के लोग अपने हिस्से का राशन दोनों राज्यों में कहीं से भी ले सकते हैं। इसी तरह महाराष्ट्र और गुजरात में राशन कहीं से भी लिया जा सकता है। रामविलास पासवान ने 9 अगस्त को इन राज्यों के मध्य राशन कार्ड पोर्टेबिलिटी का पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया था। ओडिशा सरकार ने भी भुवनेश्वर नगर निगम क्षेत्र में योजना को शुरू कर दिया है और धीरे-धीरे इसे पूरे राज्य में लागू करने की बात कही है।
केंद्र सरकार इस योजना को क्यों लागू करना चाहती है?
केंद्र सरकार की दलील है कि योजना के लागू होने के बाद राशन वितरण में पारदर्शिता आएगी और भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा। सरकार का कहना है कि यह योजना खाद्य सुरक्षा अधिनियम को अमलीजामा पहनाने में मदद करेगी। साथ ही इससे राशन की चोरी और फर्जी राशन कार्डों को खत्म किया जा सकेगा।
प्रवासी मजदूरों के लिए यह योजना कितनी उपयोगी है?
जनगणना 2011 के अनुसार, भारत में 13.9 करोड़ प्रवासी मजदूर हैं, जो काम की तलाश में एक राज्य से दूसरे राज्य का रुख करते हैं। आर्थिक सर्वे 2017 के अनुसार, 2011 से 2016 के बीच हर साल करीब 90 लाख मजदूरों ने अंतरराज्यीय पलायन किया। दूसरे राज्यों में ये मजदूर राशन की सुविधा से वंचित हो जाते हैं। चूंकि उनका राशन कार्ड गृह राज्य का होता है, लेकिन पलायन के चलते वे वहां से भी राशन नहीं ले पाते। योजना लागू होने के बाद इन मजदूरों की यह समस्या खत्म हो जाएगी। वे देश में किसी भी राशन की दुकान से अपने हिस्से का राशन प्राप्त कर सकेंगे।
किन राज्यों के लोग इस योजना का सर्वाधिक लाभ उठाएंगे?
भारत में सर्वाधिक अंतरराज्यीय पलायन उत्तर प्रदेश और बिहार से होता है। इसके अलावा मध्य प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, उत्तराखंड, जम्मू एवं कश्मीर और पश्चिम बंगाल से लोग बड़ी संख्या में पलायन करते हैं। इन राज्यों के लोग दिल्ली, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, गुजरात, आंध्र प्रदेश और केरल का रुख करते हैं। जाहिर है कि जन राज्यों से पलायन होता है, वहां के मूल निवासियों को इस योजना का सर्वाधिक लाभ मिलेगा।
क्या इस योजना का विरोध भी हो रहा है?
द्रविड मुनेत्र कषघम (डीएमके) नेता एमके स्टालिन का कहना है कि जन वितरण प्रणाली राज्य सरकारों का मूलभूत अधिकार है। उनका कहना है कि केंद्र सरकार यह योजना लागू करके राज्यों का अधिकार छीन रही है। उन्होंने इसे संघीय ढांचे के खिलाफ बताया है। अम्मा मक्कल मुनेत्र कषघम (एएमएमके) नेता टीटीवी दिनाकरन का कहना है कि अगर प्रवासियों को अनाज वितरित कर दिया गया तो स्थानीय लोगों के सामने मुश्किलें खड़ी हो जाएंगी। कुछ जानकारों का कहना है कि पलायन के सटीक आंकड़े उपलब्ध न होने के कारण योजना पर अमल मुश्किल है और इसे लागू करने में कई तरह की जटिलताएं हैं।
We are a voice to you; you have been a support to us. Together we build journalism that is independent, credible and fearless. You can further help us by making a donation. This will mean a lot for our ability to bring you news, perspectives and analysis from the ground so that we can make change together.
Comments are moderated and will be published only after the site moderator’s approval. Please use a genuine email ID and provide your name. Selected comments may also be used in the ‘Letters’ section of the Down To Earth print edition.