हाल में अदालतों ने दवाओं की ऑनलाइन बिक्री पर तब तक के लिए प्रतिबंध लगाया है, जब तक सरकार नियमन के लिए कोई नियम नहीं बनाती
हाल में दिल्ली और मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा दवाओं की ऑनलाइन बिक्री पर तब तक के लिए प्रतिबंध लगा दिया है, जब तक केंद्र सरकार द्वारा ऑनलाइन फार्मेसी के नियमन के लिए कोई नियम नहीं बन जाते। अदालतों के इन फैसले के बाद कई तरह के सवाल उठ रहे हैं।
फार्मेसी ने कोर्ट में इस प्रतिबंध को हटाने की अपील करते हुए कहा है कि उनके पास जरूरी लाइसेंस हैं और वे किसी तरह की अवैध बिक्री नहीं कर रही हैं।
ऑनलाइन बिक्री पर प्रतिबंध की याचिका डर्मालॉजिस्ट जहीर अहमद ने दायर की थी। अपनी याचिका में उन्होंने कहा कि ड्रगिस्ट और डॉक्टर जहीर अहमद द्वारा ऑनलाइन दवाओं और दवाओं की अवैध बिक्री पर रोक लगाने के लिए याचिका दायर की गई थी। याचिका में उन्होंने कहा कि "दवाओं की ऑनलाइन बिक्री एक दवा महामारी, नशीली दवाओं के दुरुपयोग और आदत बनाने और नशीली दवाओं के गलत उपयोग को बढ़ावा देगी"।
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि राज्य दवा नियंत्रक के निर्देश के बावजूद ऑनलाइन बिक्री जारी रही और उन्होंने ड्रग्स एवं कॉसमेटिक्स एक्ट के प्रावधानों का पालन नहीं किया। इसके अलावा ऑनलाइन दवाओं की बिक्री पर किसी तरह का कोई नियत्रंण नहीं है।
याचिका में कहा गया कि कई वेबसाइट लाखों रुपए की दवाइयां रोजाना बेच रही हैं। इतना ही नहीं, डॉक्टरों के बिना पर्चे के केवल दवाओं की तस्वीरों के आधार पर वेबसाइट दवाएं सप्लाई कर रही हैं। कई देशों में हाल ही में ऑनलाइन फार्मेसी की निगरानी और नियमन के लिए कई कदम उठाए हैं।
आंकड़ों के मुताबिक, चीन खाद्य एवं दवा प्रशासन ने इस साल मार्च में 991 कंपनियों को इंटरनेट मेडिसन ट्रेडिंग सर्विस क्वालिफिकेशन के तहत उपयुक्त पाया है। इसके बाद राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग और पारंपरिक चीनी दवाओं के राष्ट्रीय प्रशासन ने इंटरनेट बेस्ड मेडिकल सर्विसेज और टेलीमेडिसन के लिए तीन नियम बनाए हैं। इसके तहत, इन कंपनियों को रजिस्ट्रेशन कराना होगा, उनको लाइसेंस दिया जाएगा और उनकी निगरानी की जाएगी।
पुर्तगाल सरकार ने भी दावा किया है कि इस तरह की निगरानी के बाद गलत दवाओं की खरीद के कारण होने वाली मौतों की संख्या घटी है।
इस बारे में स्वयंसेवी संगठन पहल के संस्थापक शम्स आलम कहते हैं कि ऑनलाइन दवाओं की बिक्री पर प्रतिबंध का असर गरीबों पर नहीं पड़ेगा, बल्कि उन लोगों पर पड़ेगा, जो ऑनलाइन दवाइयां खरीदने में सक्षम हैं। साथ ही, दवाओं का दुरुपयोग करने वाले बच्चों और किशोरों पर भी इसका असर पड़ेगा।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के वित्त सचिव विमल कुमार मोंगा ने कहा, "ऑनलाइन दवाओं की बिक्री को लेकर एक गाइडलाइंस होनी चाहिए, ताकि दवाओं की बिक्री पर नजर रखी जी सके। ऑनलाइन दवाइयां खरीदना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। क्योंकि दवाओं के एक जैसे नाम खरीदार को संशय में डाल सकते हैं और वह गलत दवा खरीद सकता है। इतना ही नहीं, डॉक्टरों की उचित सलाह न होने के बावजूद दवाओं की बिक्री कई तरह की समस्याएं बढ़ा सकती है।
अभी देश भर में लगभग 19 लाख फार्मेसी हैं और लगभग 50 लाख परिवार इन दवा दुकानों में काम कर रहे हैं या जुड़े हैं। ऑनलाइन फार्मेसी पूरी तरह कमर्शियल हैं और अधिक से अधिक पैसा कमाना चाहती हैं, इसलिए वह निगरानी में नहीं रहना चाहतीं। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन अदालत के फैसले से खुश है। इससे दवा बाजार पर बुरा असर पड़ और हमारे उद्योग भी इस तरह के अचानक बदलाव के लिए तैयार नहीं हैं"।
इंडिया ई-फार्मेसी मार्केट ऑप्च्युर्निटी आउटलुक 2024 की रिपोर्ट के मुताबिक, वर्तमान में 8.50 लाख से अधिक फार्मेसी रिटेल स्टोर हैं, जो अब तक कुल घरेलू मांग का 60 फीसदी पूरा करते हैं। यह पारंपरिक रिटेल फार्मेसी दवाओं की कुल का 99 फीसदी बिक्री करते हैं, जबकि ऑनलाइन बिक्री का हिस्सा केवल 1 फीसदी है।
अपोलो फार्मेसी, हैदराबाद के बिक्री विभाग के मुखिया संतोष कुमार ने कहा, "ई फार्मेसी के नियमन की जरूरत है, क्योंकि कई लोग हैं, खासकर बुजुर्ग जो दवाएं लेने के लिए दवा दुकानों तक नहीं जा सकते। उनके घर तक दवाएं पहुंचने से उनकी मदद होगी। प्रतिबंध बुरा नहीं है, यदि व्यापार पूरी तरह साफ हो, यह ग्राहक तक अच्छी सुविधाएं पहुंचाने में मदद करेगा। विश्वनीय कंपनियां ऑनलाइन बुकिंग से आयु प्रमाण के लिए कहती हैं, तब दवाओं की आपूर्ति करती हैं, ऐसे में बच्चों तक गलत दवाएं पहुंचने की बात खारिज की सकती है और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का दुरुपयोग रोका जा सकता है"।
अहमद की याचिका अदालत से यह भी निवेदन किया गया है कि प्रशासनिक अधिकारियों को निर्देश दिया जाए कि वे इंटरनेट से दवाओं का प्रदर्शन या बिक्री करने वाले संगठनों और संस्थानों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करें।
हालांकि कुमार कहते हैं कि ई-फार्मेसी वास्तव में विश्वनीय हैं। यदि सभी कंपनियां अपने ग्राहक को बिल देती हैं तो गलत होने पर उनके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है और बिल को निकट भविष्य में सबूत के तौर पर पेश किया जा सकता है। फिर भी यदि निगरानी की व्यवस्था होती है तो फर्जी वेबसाइट के माध्यम से उद्योग को भी नुकसान नहीं पहुंचाया जा सकेगा। इन विश्वनीय वेबसाइट्स पर डॉक्टर का लाइसेंस नंबर और जीएसटी नंबर की पहचान की जानी चाहिए और यदि वे फर्जी निकलते हैं तो उनकी सेवाओं पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए।
यह अभी भी देखा जाना है कि दवा कंपनियां इस फैसले से कैसे निपटेंगी, क्योंकि पारंपरिक दवा विक्रेताओं के बीच चिंता है कि नया उद्योग उनकी जगह ले लेगा।
दिल्ली फार्मेसिस्ट इम्प्लॉयज एसोसिएशन के महासचिव संजय बजाज ने कहा, इस फैसले से दवा कंपनियों को सहायता मिलेगी, क्योंकि उनके साथ काम कर रहे दवा विक्रेताओं को अपनी नौकरी खोने की चिंता सता रही थी। ई-फार्मेसी उतनी विश्वनीय नहीं है, जितना कि एक दुकान पर खड़ा दवा विक्रेता, जो डॉक्टर की पर्ची देख कर दवा देता है और साथ ही यह भी समझाताा है कि कौन सी दवा कब लेनी है। यदि ऑनलाइन कंपनियों को नियमों में बांधा जाता है तो वे उत्तरदायी साबित होंगी।
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