राज्यों में इस साल और लोकसभा के अगले साल होने वाले चुनाव में किसानों के मुद्दे अहम भूमिका निभाएंगे।
कर्नाटक में तमाम उठापटक के बाद राजनीतिक रस्साकसी खत्म हो गई। इस चुनाव के साथ ही अगले साल मई में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए उलटी गिनती शुरू हो गई है। अगले 11 महीनों में लोकसभा चुनाव से पहले कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। ये सभी चुनाव सत्ताधारी और विपक्षी दलों की दिलों की धड़कनें बढ़ाएंगे।
ऐसे बहुत से राजनीतिक समीकरण हैं जो चुनावी नतीजों को तय करेंगे। एक बात पूरे भरोसे के साथ कही जा सकती है कि अगला चुनाव ग्रामीण क्षेत्रों में विकास की डिलिवरी पर लड़ा जाएगा। दूसरा कोई मुद्दा इतना प्रभावी नहीं होगा। चुनावों में कृषि संकट सबसे बड़ा मुद्दा बनकर उभरेगा। पर क्यों?
पहला कृषि अंसतोष का एक और चरण अरब सागर की कोख में छुपे मानसून की तरह कहीं दबा बैठा है। फरवरी से अस्थिर बारिश और बेमौसमी घटनाओं ने किसानों को परेशान कर रखा है। ये किसान भयंकर कर्ज में डूबे हैं क्योंकि इससे पहले की फसल के उन्हें उचित दाम नहीं मिले। इन परिस्थितियों में किसान सामान्य मानसून का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं लेकिन इस बात के संकेत मिल रहे हैं कि मानसून अस्थिर रहेगा।
इससे संपूर्ण भारत में फसलों को नुकसान की आशंका है। अगर यह आशंका सच साबित हुई तो किसानों में व्यापक अंसतोष फैलेगा, खासकर राजस्थान और मध्य प्रदेश सरीखे राज्यों में जहां इस साल के अंत तक चुनाव होने हैं। सरकारों को देखना होगा कि किसानों को सही पैकेज मिले। सरकार का विशेष ध्यान पूरी तरह से कृषि क्षेत्र पर होगा जो हाल के वर्षों में सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है।
दूसरा, खाद्य मुद्रास्फीति की दर बढ़ रही है। इसकी एक वजह ईंधन के दामों में बढ़ोतरी और पिछले तीन महीनों में फसलों को हुआ नुकसान है। खाद्य मुद्रास्फीति पर बात करने की जरूरत है। करीब तीन महीने तक स्थिर रहने के बाद फुटकर वस्तुओं के दामों में अप्रैल से उछाल आया है। ऐसा तेल और खाद्य पदार्थों की कीमत में इजाफे के कारण हुआ है। पिछले अनुभवों का देखें तो पता चलता है कि महंगाई से मध्यम वर्ग पर पड़ने वाले प्रभाव के चलते सरकार अति संवेदनशील हो जाती है।
कीमतों को कम करने के लिए सरकार खाद्य पदार्थों का आयात करती है। इससे घरेलू उत्पादकों को अधिक मूल्य नहीं मिल पाता और किसानों का लाभ कम हो जाता है। इससे किसानों की चिंताओं में इजाफा होता है। मध्य प्रदेश में प्याज और लहसून के उचित दाम न मिलने पर किसान सड़कों पर हैं। भविष्य में ऐसे हालात और देखने को मिलेंगे। इससे निश्चित रूप से सरकार का ध्यान किसानों को उचित मूल्य प्रदान करने पर जाएगा।
तीसरा, भारत का मुख्य वित्तमंत्री यानी मानसून फिर से अस्थिर होने जा रहा है। भारत के मौसम विभाग ने भले की अनुमान जताया हो कि मानसून सामान्य रहेगा लेकिन इसकी पहुंच और बारिश का वितरण एक समान न रहने की भरपूर आशंकाएं हैं। बारिश से पहले के अस्थिर मौसम ने मानसून के भविष्य पर कुछ सवाल खड़े कर दिए हैं। अगर सामान्य बारिश नहीं होती है तो क्या होगा? ऐसे हालात चुनावी साल में सरकार के लिए बड़ी चुनौती होंगे। किसानों को राहत प्रदान करने के लिए कुछ उपाय करने होंगे।
इन तीनों परिस्थितियों का किसानों के संदर्भ में मूल्यांकन किया जाना जरूरी है। सामान्य मानसून उनके कर्ज और असंतोष का कम जरूर करेगा। लेकिन यह भी सच है कि वे सरकार द्वारा सृजित गलत बाजारों को लंबे समय से बर्दाश्त कर रहे हैं। चुनावी साल में कोई पार्टी इस खतरनाक परंपरा को झेल सकने की स्थिति में नहीं है। इसलिए चुनावी उठापटक ग्रामीण मुद्दों के इर्दगिर्द ही रहेगी, खासकर कृषि क्षेत्र के मुद्दों पर।
We are a voice to you; you have been a support to us. Together we build journalism that is independent, credible and fearless. You can further help us by making a donation. This will mean a lot for our ability to bring you news, perspectives and analysis from the ground so that we can make change together.
Comments are moderated and will be published only after the site moderator’s approval. Please use a genuine email ID and provide your name. Selected comments may also be used in the ‘Letters’ section of the Down To Earth print edition.