प्रदूषण के बढ़ते स्तर के चलते कार को प्रतिबंधित करने की बात हो रही है। कारों को समस्या के रूप में 1882 से ही देखा जाने लगा था
निजी वाहनों, खासकर कारों को पर्यावरण के लिए गंभीर समस्या के तौर पर देखा जाने लगा है। दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण के बढ़ते स्तर के चलते इन्हें प्रतिबंधित करने की बात हो रही है। दरअसल कारों को समस्या के रूप में 1882 से ही देखा जाने लगा था। जर्मनी के कार निर्माता कार्ल बेंज ने जब अपने प्रारंभिक कंबस्टन इंजन को स्टटगार्ट शहर की सड़क पर प्रयोग के लिए उतारा तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। फ्रांस के अल्बर्ट डी डिऑन ने जब भाप चालित ऑटोमोबाइल का व्यवसायिक उत्पादन करने की कोशिश की तो उनके पिता को उन्हें रोकने का आदेश दिया गया।
इसके बावजूद डी डिऑन और उनके सहयोगी जॉर्ज बॉटन बीसवीं शताब्दी की शुरुआती में कार निर्माताओं की अग्रणी कतार में खड़े हो गए। उन्होंने बेंज बनाई। यूरोप और अमेरिका के अखबारों ने इस कार के प्रति उत्सुकता का माहौल बना दिया। इस उत्सुकता के माहौल के बीच ऐसे भी लोग थे जिन्हें कार पर तब भी भरोसा नहीं था। स्विट्जरलैंड के ग्रोबनडन कैंटोन में रहने वाले लोग भी कारों को शंका की नजर से देख रहे थे। 24 अगस्त 1900 को ग्रोबनडन की सरकार ने अपनी सड़कों पर सभी तरह के ऑटोमोबाइल पर प्रतिबंध लगा दिया। कैंटोन को शांतिमय रमणीय स्थल बनाने और ऑटोमोबाइल के शोर शराबे से लोगों को सुरक्षित रखने के लिए यह कदम उठाया गया। एक साल बाद उरी के कैंटोन ने भी इस तरह का प्रतिबंध लगा दिया।
इस प्रतिबंध के बाद प्रचार युद्ध शुरू हो गया। कार समर्थक घोड़ों से होने वाली परेशानियों, लीद की बदबू और मक्खियों के भिनभिनाने की दलील दे रहे थे। कार का विरोध करने वालों में सैडलर (घोड़ों पर बैठने की सीट बनाने वाले), कोचवान और प्रकृति प्रेमी शामिल थे। उन्हें हादसों, धूल, शोर और बदबू का डर था। कारों के कारण सड़क से बेदखली का डर उन्हें सबसे ज्यादा सता रहा था। कारों के प्रति यह नाराजगी देखते ही देखते अमेरिका और यूरोप के कई हिस्सों में पहुंच गई। इतिहासकार कैटी अल्वर्ट लिखते हैं, “जब मोटरगाड़ी सड़क से गुजरती हैं तो गरीबों को न केवल अपनी गरीबी याद आती है बल्कि उन्हें यह भी लगता है कि कार उनके सार्वजनिक स्थल पर भी अतिक्रमण कर रही है।” नतीजतन बहुत से स्थानों पर कार चालकों के खिलाफ पत्थरबाजी की घटनाएं सामने आने लगीं।
1904 में न्यूयॉर्क के आसपास ये घटनाएं इतनी आम हो गईं कि पुलिस को कार्रवाई करनी पड़ी। दो साल बाद अमेरिकी राष्ट्रपति वुडरो विल्सन को यह कहकर चिंता जाहिर करनी पड़ी कि कार चालकों द्वारा अमीरी के प्रदर्शन से लोग समाजवाद की ओर आकर्षित हो सकते हैं। जर्मनी में पहले विश्वयुद्ध से पहले कार को राष्ट्रीय गौरव से जोड़कर देखा गया। जर्मनी के एक पेपर ने लिखा, “हमारे देश और उद्योगों की प्रगति ऑटोमोबिलिजम पर निर्भर है।” ऑस्ट्रेलिया में ऑटोमोबाइल के घोर विरोधी माइकल रीहर वॉन पाइडल ने पैंफ्लेट्स के माध्यम से इसका विरोध किया। उन्होंने कहा, “मोटरचालकों को सड़क पर चलने का अधिकार किसने किया। सड़क उनकी नहीं बल्कि पूरी आबादी के लिए है।” उन्होंने बताया कि 1912 शुरुआती महीनों में विएना में कार से 438 हादसे हुए हैं और 16 लोगों की मौत हुई है। बाद के महीनों में सात बच्चों को हादसों में जान गंवानी पड़ी।
ग्रोबनडन में नौ जनमत संग्रह में कार पर प्रतिबंध का समर्थन किया गया। लेकिन 1919 में इसमें ढील देते हुए स्विस पोस्टबस के रूप में सार्वजनिक परिवहन को स्वीकृति दे दी गई। स्विस कैंटोन में 1921 में निजी वाहनों पर लगा प्रतिबंध हटा लिया गया।
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