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दी ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैलेन्ज

कोई हंस नहीं रहा था। जज खामोश थे। एंकर भी चुप बैठा था। प्रतियोगी, दर्शक, प्रोड्यूसर और तो और पूरा देश खामोश था

 
By Sorit Gupto
Published: Sunday 15 October 2017

सोरित/सीएसई

वह कोई टीवीय मंच था जिसके एक ओर तीन जज बैठे थे जिनके चेहरों  पर एक जज सुलभ भाव और नींद की खुमारी का कॉकटेल था। प्रतियोगियों की हालत उन कैदियों जैसी थी जो अदालत में इस उम्मीद से बैठे थे कि उन्हें आज “बेल” मिलेगी या नहीं। मंच के दूसरी और सैकड़ों की तादाद में “वी-दी-पीपल” बैठी थी जिनका काम हर दूसरी बात पर हंसना और हर तीसरी बात पर ताली पीटना था। प्रोग्राम शुरू होने को ही था कि विज्ञापन-टूट (ऐड -ब्रेक ) हो गया।

विज्ञापन बिना प्रोग्राम ठीक वैसा होता है जैसे जल-बिन -मछली, नृत-बिन-बिजली ,ओसामा-बिन-लादेन और मंत्रालय विहीन नेता होता है।  लो जी टीवी स्क्रीन पर  टाइमर आ चुका है। प्रोग्राम शुरू हुआ समझो। दर्शकों को हंसाने की नाकामयाब कोशिश करता  हुआ और इस कोशिश में  अपनी बातों पर खुद हंसता हुआ एंकर एक-एक कर प्रतियोगियों को बुलाता है।  

पहला प्रतियोगी मियां-बीवी के पिटे हुए कुछ व्हाट्सअप जोक्स बोलता है जिसे सुनकर दर्शक इसलिए हंसते-हंसते हुए लोटपोट हो जाते हैं क्योंकि जज लोग हंस रहे हैं। जज लोग इसलिए हंस रहे होते हैं कि दर्शकों का हंसते-हंसते बुरा हाल है। बाद में यह पता लगता है कि इस हंसने की शुरुआत किसी “लाफिंग ट्रैक” की  मशीनी हंसी से हुई थी।  

इसके बाद अगला ऐड-ब्रेक। फिर अगला प्रतियोगी। फिर कुछ घिसे पिटे जोक्स। फिर लाफिंग ट्रैक।  फिर जजों का हंसना। फिर दर्शकों का हंसना।

इसी बीच, अचानक दर्शकों में से कोई अपना हाथ उठाता है। एक खड़खड़ाई सी आवाज आती है “क्या मैं कुछ चुटकुले सुना सकता हूं ?”

पहला जज दूसरे की ओर  देखता है। दूसरा, तीसरे की और तीसरा एंकर की ओर देखता है। एंकर प्रोडूसर की ओर देखता है। आखिर हरी झंडी मिल जाती है। भला वह कैसा रिएलिटी शो जिसमें दर्शकों की भागीदारी न हो। सभी दर्शक सांसें रोक कर स्टेज की ओर देख रहे हैं। स्टेज पर धोती-कुर्ता  पहने एक बुजुर्ग आते हैं। अपने पर पड़ी इतनी रोशनियों से यकायक उनको कुछ दीखता नहीं। लोगों में सुगबुगाहट शुरू हो जाती है। लोग बोर हो रहे हैं।  

वह कहना  शुरू करते हैं, “मितरों! मैं चिद्दी शर्मा, भगवान कृष्ण की नगरी मथुरा का रहने वाला हूं...”

उनकी बात खत्म होने से पहले ही लाफिंग ट्रैक चला दिया जाता है । लोग हंसने लगते हैं। जज हंसने लगते हैं। प्रतियोगी हंसने लगते हैं। मंच पर खड़ी वह  बूढ़ी-सी आवाज चुपचाप लोगों की हंसी के रुकने का इन्तजार करती है। फिर बोलना शुरू करती है,“भारत एक कृषि प्रधान देश है।”  

दर्शक हंसने लगते हैं। उन्हें हंसता देख कर जज हंसने लगते हैं। जजों को हंसता देख बाकी प्रतियोगी हंसने लगते हैं। बूढ़ी आवाज कहती है,“किसान हमारे अन्नदाता हैं।”

अब देश हंसने लगता है।

बूढ़ी-सी आवाज कहती है, “हमारे प्रदेश के मुख्यमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार किसानों के ऋणों को माफ कर देगी।”

अब हंसने की बारी उनके प्रान्त के किसानों की थी।

बूढ़ी आवाज कहती है

“ऋण माफ किए जाने वाले किसानो में एक मैं भी हूं और सरकार ने मेरे  कुल एक पैसे का ऋण माफ किया है।”

आखिरी के शब्द उनसे बोला नहीं गया। उनका गला भर आया था।
 
किसान जो थे आखिर। भला रो कैसे सकते थे?

पर यह क्या? कोई हंस नहीं रहा था। जज खामोश थे। एंकर भी चुप बैठा था। प्रतियोगी, दर्शक, प्रोड्यूसर और तो और पूरा देश ख़ामोश था। कहीं से कोई हंसने की आवाज नहीं आ रही थी, सिवाए लाफिंग ट्रैक के...

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