Environment

पर्यावरण, स्त्री और साहित्य

के. वनजा अपनी किताब में कहती हैं कि ऋग्वेद से लेकर आज तक साहित्य में स्त्रियों की रचनाओं की एक विशेषता है कि यह लोकचेतना से संपन्न है।

 
By Anil Ashwani Sharma
Published: Thursday 15 March 2018

“हे पति राजन! जैसे पृथ्वी राज्यधारण एवं रक्षा करनेवाली होती है वैसे ही मैं प्रशंसित रोमोंवाली हूं। मेरे सभी गुणों को विचारो। मेरे कामों को अपने सामने छोटा न मानो।”  के. वनजा अपनी किताब “इको फेमिनिज्म” में ऋग्वेद के प्रथम मंडल के एक सौ छब्बीसवें सूक्त के सातवें मंत्र की द्रष्टा ब्रह्मवादिनी रोमशा का कथन उद्धृत करते हुए कहती हैं कि यह नारीवाद की दृष्टि से अहम कथन है। रोमसा बृहस्पति की पुत्री और भावभव्य की पत्नी थीं। संपूर्ण शरीर में घने रोमों के कारण पति ने उनकी उपेक्षा की थी। ऋग्वेद में स्त्री विमर्श के इस प्रथम स्वर के साथ ही के. वनजा हिंदी साहित्य में पारिस्थितिक नारीवाद की विवचेना करती हैं।

नारीवादी सिद्धांत सभी पितृसत्तात्मक व्यवस्थाओं को नकारता है। यह पुरुषों और स्त्रियों के बीच के अंतर को समझने और समझाने की कोशिश करता है। नारीवादी स्थापना में पुरुष द्वारा स्त्री के शोषण में पर्यावरण के शोषण को भी जोड़ा गया है। इसी के साथ नया शब्द बना है इको फेमिनिज्म। पारिस्थितिक स्त्रीवाद एक अंतरअनुशासनात्मक आंदोलन है जो प्रकृति, राजनीति, स्त्री, आध्यात्मिकता के संबंध में नए ढंग से सोचने के लिए प्रेरित करता है। हिंदी में इस तरह के विमर्श को पहली बार लेकर आईं हैं के.वनजा।

विज्ञान, समाजशास्त्र, इतिहास, राजनीति जैसे विभिन्न क्षेत्रों के विचारकों ने पर्यावरण के प्रति नारीवादियों की परंपरागत धारणा पर सवाल उठाए थे। 1990 में अमेरिका में साहित्यिक विभागों में साहित्य में पृथ्वी केंद्रित पारिस्थितिक दर्शन का अध्ययन शुरू हुआ। के. वनजा कहती हैं कि इको फेमिनिज्म एक नया शब्द है। यह प्राचीन पर विजय के लिए प्रस्तुत है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी भी जेंडर न्यूट्रल नहीं हैं। पुरुष सत्तात्मक समाज में पुरुष और प्रकृति तथा पुरुष और स्त्री के बीच में एक शोषण परक आधिपत्य का संबंध है, आधुनिक औद्योगिक क्षेत्र में भी। ये सब परस्पर निकट संबंध रखते हैं। यह शोषण का शिकार बननेवाली स्त्री और प्रकृति की तुलना करता है।

के. वनजा कहती हैं कि इको फेमिनज्मि का और एक मुख्य क्षेत्र धर्म और संस्कृति के प्रति वैज्ञानिक विश्वदृष्टि का है। इको फेमिनिज्म मानता है कि कभी-कभी धार्मिक और वैज्ञानिक विश्वदृष्टियों के बीच के विरोध उनके विकास के लिए हानिकारक होते हैं। इसमें नस्लवाद का मुद्दा बहुत ही बुलंद है। पारिस्थितिक स्त्रीवाद एक अंतरअनुशासनात्मक आंदोलन है जो प्रकृति, राजनीति, स्त्री, अध्यात्मिकता के संबंध में नए ढंग से सोचने के लिए प्रेरित करते हैं।

जहां तक भारतीय साहित्य की बात है, इसमें प्रकृति में स्त्री के सभी रूप देखे गए हैं। धरती और स्त्री की समानता हर क्षेत्र में बिखरी हुई है। धरती और स्त्री दोनों को जननी के रूप में देखे जाने के बावजूद हिंदी साहित्य में पारिस्थितिक स्त्रीवाद को लेकर कोई ठोस काम नहीं हुआ था। के. वनजा अपनी किताब में कहती हैं कि ऋग्वेद से लेकर आज तक साहित्य में स्त्रियों की रचनाओं की एक विशेषता है कि यह लोकचेतना से संपन्न है। वे हमारी मिट्टी, मिथक, प्रकृति एवं सहज जीवन की धुन से ओतप्रोत हैं। ऋग्वेद के बाद पाली भाषा में लिखित “तेरीगाथा” में भी कई जगहों पर स्त्री और प्रकृति के संबंध सामने आते हैं।

दरिद्र स्त्री का कोई नाम न था लेकिन जब उसका पुत्र बौद्ध भिक्षु बनकर प्रसिद्ध हुआ तो उसे सुमंगल माता के नाम से जाना गया। वह कहती हैं, “अहो? मैं मुक्त नारी। मेरी मुक्ति कितनी धन्य है! पहले मैं मूसल लेकर धान कूटा करती थी, आज उससे मुक्त हुई...मैं आज वृक्ष-मूलों में ध्यान करती हुई जीवनयापन करती हूं। अहो! मैं कितनी सुखी हूं।” वहीं मध्ययुग में कृषि आधारित व्यवस्था थी। भक्तिकाल के साहित्य में प्रकृति से जुड़े लोक का भरपूर चित्रण है। पूरी खेती और जमीन जमींदार कब्जा कर सकते हैं।

तब ग्रामवधू कहती है, ‘मैं चंदा पर खेती करूंगी, सूरज पर खलिहान बनाऊंगी। यौवन को बैल बनाऊंगी, मेरे प्रिय खेत जाएंगे। सावन-भादो की झड़ी लगी है।” महादेवी वर्मा की श्रृंखला की कड़ियां की रचनाओं में भी स्त्री मन प्रकृति से जुड़ता है। महादेवी के परिवार के सदस्यों में गाय, कुत्ते, मोर, बिल्ली, खरगोश और नेवला हैं। वहीं समकालीन स्त्री रचनाकारों में अनामिका के साहित्य को के. वनजा प्रकृति के बहुत करीब पाती हैं। अनामिका लोकजीवन को विशेषकर स्त्री जीवन को थल बनाती हैं। “इको फेमिनिज्म” हिंदी में एक शुरुआत है स्त्री, पृथ्वी और सत्ता के त्रिकोण को समझने की।

Subscribe to Daily Newsletter :

Comments are moderated and will be published only after the site moderator’s approval. Please use a genuine email ID and provide your name. Selected comments may also be used in the ‘Letters’ section of the Down To Earth print edition.