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भारत में भी उग सकते हैं रजनीगंधा के रंगीन फूल

डॉ. एसके दत्ता ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर लगभग 70 नई सजावटी फूलों की किस्मों का विकास किया है और रजनीगंधा पर किए गए उनके शोध विशेष उल्लेखनीय रहे हैं।

 
By Shubhrata Mishra
Published: Wednesday 01 November 2017

रजनीगंधा के फूल अपनी अद्भुत सुंदरता व भीनी-भीनी दिव्य सुगन्ध और अधिक समय तक ताजा बने रहने की प्रकृति के कारण पुष्प व्यवसाय में एक विशेष महत्त्व रखते हैं। भारत में इसकी ज्यादातर सफेद फूलों वाली किस्मों की ही खेती की जाती है। सीएसआईआर- राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआई), लखनऊ के जाने माने वैज्ञानिक डॉ. एसके दत्ता ने रजनीगंधा की रंगीन फूलों वाली किस्मों को विकसित करने की पहल की है।

रजनीगंधा एक सजावटी व बल्ब वाला पौधा है, जिसका वानस्पतिक नाम पॉलिएंथस ट्यूबरोज़ा है। विश्व के अनेक देशों जैसे मेक्सिको, ताइवान, अमेरिका आदि के वैज्ञानिक रजनीगंधा की गुलाबी, मैरुन, बैंगनी, लाल-बैंगनी, पीले और नारंगी फूलों वाली संकर किस्में विकसित करने में सफल हुए हैं। इसकी विकसित की गईं रंगीन फूलों वाली कुछ संकर किस्में पॉलिएंथस जेमिनिफ्लोरा, पॉलिएंथस बुंद्रांति, पॉलिएंथस होवार्डी, पॉलिएंथस ब्लिसी हैं। लुडविग नामक एक डच पुष्प प्रजजन कम्पनी ने 2014 से “पिंक सेंसेशन” के नाम से रजनीगंधा की हल्के व गहरे पीले और गुलाबी फूलों वाली विविध संकर प्रजातियां बाजार में उतारी हैं।

अभी तक भारत में रजनीगंधा की रंगीन पुष्पों वाली एक भी संकर प्रजाति विकसित नहीं की गई है। विश्व स्तर पर रंगीन फूलों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए जिस तरह फूल उद्योग क्रॉस प्रजनन के माध्यम से अन्य प्रजातियों के फूलों के रंगों के अद्वितीय मिश्रण बना रहा है, उसी तरह का काम भारत में भी रजनीगंधा के लिए किए जाने की आवश्यकता है।

विज्ञान की भाषा में समझा जाए तो किसी भी फूल का रंग पौधों द्वारा उत्पादित वर्णक की प्रकृति और मात्रा पर निर्भर करता है। रजनीगंधा की रंगीन फूलों की किस्मों को विकसित करने में एन्थोसाइनिन और कैरोटीनोइड जैसे वर्णकों की गुणात्मक और मात्रात्मक भिन्नता और वैक्यूल्लर पीएच जैसे गुण बहुत मायने रखते हैं। साथ ही सूर्यप्रकाश, तापमान और ऊंचाई जैसे कारकों की भी फूलों के रंग निर्धारण में बड़ी भूमिका होती है। वैज्ञानिकों द्वारा रजनीगंधा की एक किस्म 77ए05 पर किए गए एक प्रयोग से स्पष्ट हुआ था, जब इसे सामान्य प्रकाश में 20 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पर उगाया जाता है, तो लाल-बैंगनी फूल खिलते हैं, जबकि 30 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पर सफेद फूल खिलते हैं। रजनीगंधा के फूल के रंग संबंधी प्रत्येक गुण व कारक कई जीनों द्वारा नियंत्रित होते हैं और विशेषरुप से भारत में इनके जीन पूल भी सीमित हैं। इसके कारण वैज्ञानिकों को रंगीन फूलों वाली संकर किस्में विकसित करने में परेशानियां आती हैं। 

भारत में रजनीगंधा की सिर्फ सफेद फूल वाली सिंगल, सेमी डबल और डबल प्रकार की तीन प्रजातियां ही उपलब्ध हैं। भारतीय वैज्ञानिकों ने लोकल सिंगल, पुणे लोकल सिंगल, कलकत्ता सिंगल, हैदराबाद सिंगल, मेक्सिकन सिंगल, नवसारी लोकल, रजत रेखा, कलकत्ता डबल, सुवासिनी, वैभव, स्वर्णरेखा, अर्क सुगंधी, एसटीआर-505 जैसी रजनीगंधा की अनेक उत्तम संकर किस्में विकसित की हैं। परन्तु ये सभी सफेद फूल वाली और विशेषरुप से अपनी अधिक पैदावार, जलवायु के प्रति अनुकूलन, रोग प्रतिरोधक क्षमता, फूलों की सुंदरता और खुशबू जैसे गुणों में सर्वश्रेष्ठ हैं।

भारत में रजनीगंधा की रंगीन फूलों वाली किस्मों को विकसित करने के लिए वैज्ञानिकों / प्रजनकों को रजनीगंधा के विभिन्न उपलब्ध रंगीन फूलों वाले जर्मप्लाज्म एकत्र करने होंगे, क्योंकि फूलों के रंग में आनुवांशिक विविधता लाने में इनकी भूमिका सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होगी। इसके अलावा आणविक प्रजनन भी एक सार्थक विकल्प हो सकता है। भारत में इस तरह के रंगीन रजनीगंधा की खेती से भारतीय कृषकों को भविष्य में और भी अधिक व्यावसायिक लाभ मिल सकता है।

हाल ही में करेंट साइंस में रजनीगंधा पर प्रकाशित डॉ. दत्ता के एक रिव्यू से ये सभी तथ्य सामने आए हैं। पिछले 35 सालों से एनबीआरआई से जुड़े डॉ. दत्ता ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर लगभग 70 नई सजावटी फूलों की किस्मों का विकास किया है और रजनीगंधा पर किए गए उनके शोध विशेष उल्लेखनीय रहे हैं।

(इंडिया साइंस वायर)

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