पूर्वोत्तर राज्यों के सांसद और अन्य समूह काफी समय से एक अलग समय क्षेत्र की मांग कर रहे हैं
देश के पूर्वोत्तर क्षेत्र में भारतीय मानक समय (आईएसटी) पर आधारित आधिकारिक कामकाजी घंटों से पहले सूर्य उगता और अस्त होता है। सर्दियों में दिन के उजाले के घंटे कम हो जाते हैं क्योंकि सूरज और भी जल्दी अस्त हो जाता है। इसका उत्पादकता और बिजली की खपत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। यदि भारत को दो समय क्षेत्रों में बांट दिया जाए तो इस स्थिति में सुधार हो सकता है। एक नए वैज्ञानिक अध्ययन ने इसकी पुष्टि की है।
आईएसटी का निर्धारण करने वाली राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला (एनपीएल) के एक नए विश्लेषण के आधार पर असम, मेघालय, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा और अंडमान निकोबार द्वीप समूह के लिए अलग समय क्षेत्र (टाइम जोन) में बांटने का सुझाव दिया गया है।
पूर्वोत्तर राज्यों के सांसद और अन्य समूह काफी समय से एक अलग समय क्षेत्र की मांग कर रहे हैं। असम के चाय बागानों में तो लंबे समय से 'चायबागान समय' का पालन हो रहा है, जो आईएसटी से एक घंटा आगे है।
शोध पत्रिका करंट साइंस में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, भारत में दो समय क्षेत्रों की मांग पर अमल करना तकनीकी रूप से संभव है। दो भारतीय मानक समय (आईएसटी) को दो अलग-अलग हिस्सों में बांटा जा सकता है। देश के विस्तृत हिस्से के लिए आईएसटी-I और पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए आईएसटी-II को एक घंटे के अंतर पर अलग-अलग किया जा सकता है।
फिलहाल भारत में 82 डिग्री 33 मिनट पूर्व से होकर गुजरने वाली देशांतर रेखा पर आधारित एक समय क्षेत्र है। नए सुझाव के अंतर्गत यह क्षेत्र आईएसटी-1 बन जाएगा, जिसमें 68 डिग्री 7 मिनट पूर्व और 89 डिग्री 52 मिनट पूर्व के बीच के क्षेत्र शामिल होंगे। इसी तरह, 89 डिग्री 52 मिनट पूर्व और 97 डिग्री 25 मिनट पूर्व के बीच के क्षेत्र को आईएसटी-2 कवर करेगा। इसमें सभी पूर्वोत्तर राज्यों के साथ-साथ अंडमान और निकोबार द्वीप भी शामिल होंगे।
पूर्वोत्तर के लिए अलग समय क्षेत्र सुझाने के कई कारण हैं। इनमें लोगों की जैविक गतिविधियों पर सूर्योदय और सूर्यास्त के समय का प्रभाव और कार्यालय के घंटों को सूर्योदय और सूर्यास्त समय के साथ समकालिक बनाना शामिल हैं। दो समय क्षेत्रों का प्रबंधन भी किया जा सकता है।
एनपीएल के निदेशक डॉ. डी.के. असवाल ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “दो समय क्षेत्रों के सीमांकन में परेशानी नहीं होगी क्योंकि सीमांकन क्षेत्र काफी छोटा होगा जो पश्चिम बंगाल और असम की सीमा पर होगा। समय समायोजन के लिए केवल दो रेलवे स्टेशनों- न्यू कूच बिहार और अलीपुरद्वार को प्रबंधित किए जाने की आवश्यकता होगी। चूंकि सिग्नलिंग सिस्टम अभी पूरी तरह से स्वचालित नहीं हैं, इसलिए दो समय क्षेत्रों की वजह से रेलवे परिचालन में बाधा नहीं होगी।”
डोंग, पोर्ट ब्लेयर, अलीपुरद्वार, गंगटोक, कोलकाता, मिर्जापुर, कन्याकुमारी, गिलगिटम, कवरत्ती और घुआर मोटा समेत देशभर में दस स्थानों पर सूर्योदय और सूर्यास्त के समय मैपिंग करने पर पाया गया कि चरम पूर्व (डोंग) और चरम पश्चिम (घुआर मोटा) के बीच करीब दो घंटे का समय अंतराल है। बॉडी क्लॉक (शरीर की आंतरिक घड़ी) की लय के अनुसार, मौजूदा आईएसटी कन्याकुमारी, घुआर मोटा और कवरत्ती के लिए पूरी तरह उपयुक्त है। अलीपुरद्वार, कोलकाता, गंगतोक, मिर्जापुर और गिलगिटम के लिए भी काम चल सकता है, पर डोंग और पोर्ट ब्लेयर के लिए यह बिल्कुल उपयोगी नहीं है।
डॉ. असवाल के अनुसार, "वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के अंतर्गत कार्यरत नई दिल्ली स्थित प्रयोगशाला एनपीएल आईएसटी की उत्पत्ति और प्रसार के लिए जिम्मेदार है। यहां पर फ्रांस के इंटरनेशनल ब्यूरो ऑफ वेट्स एंड मेजर्स (बीआईटीएम) में स्थित यूनिवर्सल टाइम कोर्डिनेटेड (यूटीसी) के साथ समेकित घड़ियों का एक समूह है। दूसरे समय क्षेत्र के लिए एनपीएल को पूर्वोत्तर में एक और प्रयोगशाला स्थापित करनी होगी और इसे यूटीसी के साथ सिंक करना होगा। हमारे पास देश में दो भारतीय मानक समय प्रदान करने की क्षमता है। दो समय क्षेत्रों के होने पर भी दिन के समय के साथ मानक समय को संयोजित किया जा सकता है।"
इस अध्ययन में डॉ असवाल के अलावा लखी शर्मा, एस. डे पी. कांडपाल, एम.पी. ओलानिया, एस. यादव, टी. भारद्वाज, पी. थोराट, एस. पांजा, पी. अरोड़ा, एन. शर्मा, ए. अग्रवाल, टी.डी. सेनगुत्तवन और वी.एन. ओझा शामिल थे। (इंडिया साइंस वायर)
भाषांतरण : उमाशंकर मिश्र
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