आग लगने के पैटर्न एवं उसके प्रभाव की विस्तृत जानकारी हो तो इस नुकसान को कम किया जा सकता है।
गर्मी के मौसम की शुरुआत के साथ ही उत्तराखंड जैसे पहाड़ी इलाकों में मौजूद जंगलों में आग लगने की खबरें फिर से आने लगी हैं, पर आपको यह जानकर हैरानी होगी कि पहाड़ी क्षेत्रों की अपेक्षा आग लगने की सबसे ज्यादा घटनाएं मैदानी राज्यों में होती हैं। एक ताजा अध्ययन में इस बात का खुलासा हुआ है।
नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर, इसरो और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ स्पेस साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक अध्ययन के मुताबिक भारत के विभिन्न जीव-भौगोलिक क्षेत्रों में आग लगने की सबसे अधिक घटनाएं दक्कन क्षेत्र में दर्ज की गई हैं और इसके बाद पूर्वोत्तर एवं पश्चिमी घाट के जंगल सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। रिसर्च जर्नल करंट साइंस में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2014 में भारत में 57,127 वर्ग कि.मी. वन क्षेत्र में आग लगने से करीब सात प्रतिशत जंगल जलकर नष्ट हो गया।
पिछले साल अप्रैल के अंत में उत्तराखंड के जंगलों में लगी भयंकर आग राज्य के करीब 4,000 हेक्टेयर में फैल गई थी और इसे बुझाने की सरकारी कोशिशें नाकाम हो गईं थी। इसमें कई लोगों की जान चली गई, पर्यावरण प्रदूषित हुआ और वन संपदा एवं जैव-विविधता का भी काफी नुकसान हुआ। जाहिर है, जंगल में आग लगने से पर्यावरण और जैव विविधता को काफी नुकसान होता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक आग लगने के पैटर्न एवं उसके प्रभाव की विस्तृत जानकारी हो तो इस नुकसान को कम किया जा सकता है।
इसरो के रिमोट सेसिंग उपग्रह रिसोर्ससैट-2 से प्राप्त तस्वीरों के आधार पर किए गए इस अध्ययन में वर्ष 2014 के आंकड़ों लिया गया है। इन आंकड़ों के अनुसार आग के कारण कारण ओडिशा में सर्वाधिक 8,186 वर्ग कि.मी. में फैले जंगलों को नुकसान पहुंचा है। इसके अलावा आंध्र प्रदेश में 6,611, महाराष्ट्र में 5,066, छत्तीसगढ़ में 4,606, तमिलनाडु में 4,275, मध्यप्रदेश में 3,342, तेलांगना में 2,955, झारखंड 2,587, मणिपुर में 1,974 और कर्नाटक में 1,920 वर्ग कि.मी. क्षेत्र में फैले जंगल आग की भेंट चढ़ गए।
आंध्र प्रदेश के कुल वन क्षेत्र का 25 प्रतिशत, ओडिशा का 16 प्रतिशत, महाराष्ट्र का 10 प्रतिशत, छत्तीसगढ़ का आठ प्रतिशत, तमिलनाडु का 17 प्रतिशत, तेलंगाना का 14 प्रतिशत, झारखंड का 11 प्रतिशत और मणिपुर का 11 प्रतिशत वन क्षेत्र इस दौरान आग की चपेट में आने से प्रभावित हुआ है। आग लगने के कारण मिट्टी में मौजूद जैविक तत्व नष्ट हो जाते हैं, जिसका असर ह्यूमस की मात्रा पर पड़ता है। ऐसे में छोटे पौधे सबसे अधिक प्रभावित होते हैं और उनकी वृद्धि रुक जाती है। भारत में जंगल की आग का प्रबंधन महत्वपूर्ण है, जहां 55 प्रतिशत वन हर साल लगने वाली आग के प्रति संवेदनशील है।
वन अधिनियम-1927 के मुताबिक जंगलों में आग लगाना दंडनीय अपराध है और इसके तहत वन विभाग के अधिकारियों को आग को नियंत्रित करने की जिम्मेदारी दी गई है। राष्ट्रीय वन नीति-1988 में भी वनों के संरक्षण के लिए अतिक्रमण, चारा कटाई और आग लगाने को गैर-कानूनी माना गया है। इसके बावजूद जंगलों में आग लगना एक वार्षिक घटना बन गई है।
अध्ययन के अनुसार पर्णपाती वनों को आग से सबसे अधिक नुकसान हुआ है। वैज्ञानिकों के अनुसार दुनिया भर में जलने वाला बायोमास गैसों एवं एरोसोल कणों के बारे में पता लगाने का सबसे बेहतर जरिया होता है। अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि इस अध्ययन से प्राप्त आंकड़े पारिस्थितिक नुकसान के मूल्यांकन के लिए किए जा सकेंगे और इससे कार्बन उत्सर्जन का भी पता लगाया जा सकेगा। उनके अनुसार जैव विविधता के संरक्षण के लिए रूपरेखा बनाने में भी इससे मदद मिल सकती है।
अध्ययनकर्ताओं के अनुसार आग के असर को कम करने और उसे फैलने से रोकने के लिए पुराने रिमोट सेंसिंग डाटा का उपयोग राष्ट्रव्यापी फायर हिस्ट्री मैप बनाने के लिए किया जा सकता है, जो जंगलो में लगने वाली आग को नियंत्रित करने में उपयोगी साबित हो सकते हैं। अध्ययनकर्ताओं की टीम में सी. सुधाकर रेड्डी, सी.एस. झा, जी. मनस्विनी वी.वी.एल. पद्मा आलेख्या, एस. वाजिद पाशा, के.वी. सतीश, पी.जी. दिवाकर और वी.के. द्विवेदी शामिल हैं। (इंडिया साइंस वायर)
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