गांधी पुराने नहीं पड़े हैं, हम उनके विचारों को व्यवहार में बदलने की क्षमता खो चुके हैं
इस महीने महात्मा गांधी के 150वें जन्म दिवस के उपलक्ष्य में मनाए जाने वाले साल भर लम्बे समारोह की शुरुआत होगी। यह चिंतन का समय है और मैं आपका एक गांधी टेस्ट लेना चाहूंगी।
जहां तक उनके सबसे पसंदीदा आदर्श अहिंसा की बात है, हालात बुरे हैं। आज हम हर चीज में हिंसा देख सकते हैं, हमारे शब्दों से लेकर सामाजिक आचरण व प्रकृति से हमारे रिश्ते तक में। हमारी असहिष्णुता काबू से बाहर हो चुकी है। इस मामले में हमारा स्कोर जीरो-माइनस का है।
फिर बात आती है विकास की। गांधी अंग्रेजों को भारत से भगाने के अलावा भी कुछ चाहते थे। उनका ध्यान आने वाले समय पर था। वे भविष्य के बारे में सोचते व लिखते भी थे। और इसी क्रम में उन्होंने हमारे कर्तव्यों की एक अलग ही अवधारणा बना डाली। उनकी विचारधारा कार्ल मार्क्स और ऐडम स्मिथ की विचारधारा के लिए एक विकल्प थी(अभी भी है)। यहां भी हमारा स्कोर जीरो ही है, संभवतः थोड़ा अधिक। गांधी आज भी अपने विचारों की प्रबल शक्ति की बदौलत प्रासंगिक हैं, इसलिए नहीं कि हमने उन विचारों को व्यवहार में बदला है।
यह सत्य है कि गांधी के खुद के अनुयायियों ने अपने कर्मों से उनकी हत्या की। वे आश्रमों में रहने लगे और गांधी के विचारों को बंद जगहों में ले गए। उन्होंने दुनिया से नाता तोड़कर गांधीवाद को पुराने जमाने का (रेट्रो) बना दिया। जबकि इसके उलट गांधी स्वयं आश्रम में रहने और उसे एक प्रतीक के रूप में पसंद करने के बावजूद बाहरी दुनिया से संपर्क में थे। दरअसल हमने उन्हें एक संकरा, आध्यात्मिक आइकन बना दिया है जबकि गांधी का एक भरा-पूरा राजनैतिक जीवन रहा है। उनमें बिना एक कदम चले लाखों को चलायमान बनाने की क्षमता थी। आज गांधी के विचारों में जो सबसे ज्यादा प्रचलित है, वह है खादी। इसका फैशन वापस आ गया है। लेकिन गांधी ने खादी के प्रयोग पर जोर क्यों दिया, इसकी हमें शायद ही जानकारी हो। गांधी ने अंग्रेजों और औद्योगीकरण, दोनों ही से आजादी पाने के लिए खादी का इस्तेमाल एक अस्त्र के रूप में किया।
उनके लिए खादी केवल रोजगार या जनता के लिए न होकर, जनता की संपत्ति थी। उनके लिए खादी का मतलब कपास के पेड़ का एक बीज था, जिसे कई लोग मिलकर कातते हैं। अंग्रेज कपास की जो किस्म भारत के खेतों में लाए थे, उसकी कताई लंकाशायर की मशीनों में ही होती थी। अतः खादी का संबंध रोजगार सृजन से भी था और यह रोजगार जनता को मिलता, मशीनों को नहीं। गांधी के लिए खादी का उद्देश्य स्थानीकरण था न कि वैश्वीकरण। गांधी द्वारा चुनी गई कपास की यह किस्म देसी थी। इसमें पानी कम लगता और इसकी कीट प्रतिरोधी क्षमता भी अधिक थी। देश का मौसम भी इसके अनुकूल होता। किसानों को उच्च निवेश मूल्य और फसल के बर्बाद होने के डर से आत्महत्या नहीं करनी पड़ती। लेकिन यह सब तब होता जब हम इस मॉडल के अनुसार काम करते। यही कारण है कि गांधी आज भी प्रासंगिक हैं। पूंजीवाद और साम्यवाद दोनों ही बेरोजगारी और पर्यावरण के खतरों का समाधान ढूंढने में विफल रहे हैं। स्मिथ की दुनिया हमें यांत्रिकीकरण की ओर ले जा रही है, इस उम्मीद में कि उत्पादकता में वृद्धि से रोजगार मिलेंगे और कौशल का विकास होगा। मार्क्स की दुनिया अब भी औपचारिक उद्योगों और ट्रेड यूनियनों में अटकी पड़ी है। वे यह समझ नहीं पा रहे कि आज रोजगार की दुनिया पर किस्म-किस्म के उद्यमियों का बोलबाला है। उनका विकास का मॉडल उनके वैचारिक विरोधियों, जिनसे वे घृणा करते हैं, से कुछ खास अलग नहीं है। जहां बात वातावरण की आती है, दोनों ही मॉडल अपने-अपने विकास के तरीकों की वजह से विश्व को जलवायु परिवर्तन की घातक परिणति तक ले जाएंगे और उसकी शुरुआत हो चुकी है।
गांधी पुराने नहीं पड़े हैं, हम उनके विचारों को व्यवहार में बदलने की क्षमता खो चुके हैं। हमारे पास ऐसे नेता नहीं हैं जो गांधी के विचारों को आज की दुनिया की जरूरतों के हिसाब से ढाल सकें। विचारों के माध्यम से उद्देश्य की ओर बढ़ने की क्षमता मेरी समझ में गांधी की सबसे महत्वपूर्ण खूबी रही है। ऐसा उन्होंने अहिंसा, न्याय और समानता के आदर्शों से समझौता किए बगैर किया। इस गांधी टेस्ट के अंत में वह एकमात्र विषय जहां हम जीरो से थोड़ा अधिक स्कोर करते हैं, वह है लोकतंत्र। मैं यह नहीं कह रही कि हमने उनके स्वावलम्बी गांव की अवधारणा को फलीभूत करने में सफलता पाई है। हम ऐसा करने में नाकाम रहे हैं। हमने प्रतिनिधित्व पर आधारित लोकतंत्र को मजबूती दी है जबकि गांधी का उद्देश्य शासन में जनता की भागीदारी सुनिश्चित करना था। पुराने फैशन के लेकिन लोकप्रिय तानाशाहों के तमाम हमलों और आज के जमाने में हमारी निजता पर लगातार हो रहे हमले के बावजूद लोकतंत्र किसी तरह जिंदा है। लेकिन यह पर्याप्त नहीं है।
अब जबकि गांधी का 150वां जन्मदिन अगले साल है, हमें रुककर उनके बारे में विचार करने की जरूरत है। केवल उनके बारे में ही नहीं, उनके तरीके पर भी।
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