पुनर्निर्माण से जुड़े बहुत से कार्य इसलिए शुरू नहीं हो सके, क्योंकि केंद्र से पैसा मिलने के बावजूद राज्य सरकार ने वित्तीय या प्रशासनिक अनुमति ही नहीं दी
केदारनाथ में वर्ष 2013 में आई भीषण आपदा के बाद पुनर्निर्माण कार्यों में वित्तीय गड़बड़ियों की बात सामने आई है। 22 फरवरी 2019 को उत्तराखंड विधानसभा सत्र के दौरान सदन के पटल पर भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) की रिपोर्ट रखी गई। “2013 की आपदा के उपरांत बुनियादी ढांचे के पुनर्निर्माण” शीर्षक से पेश की गई रिपोर्ट में कहा गया है कि पुनर्निर्माण कार्यों के लिए राज्य सरकार को केंद्र से जो पैसे मिले उसका इस्तेमाल ही नहीं हो पाया। इसके साथ ही पुनर्निर्माण के लिए मिले पैकेज से जो कार्य किए गए हैं, वे भी मानकों के अनुरूप नहीं पाए गए।
कैग की रिपोर्ट में कार्यदायी एजेंसियों पर भी सवाल उठाए गए हैं। केदारनाथ में पुनर्निर्माण से जुड़े मध्यकालिक और दीर्घकालिक परियोजनाओं के लिए 6259.84 करोड़ रुपए अनुमोदित किए गए, जबकि महज 4617.27 करोड़ रुपए की रकम उपलब्ध कराई गई। इसमें भी महज 3708.27 करोड़ रुपए ही खर्च किए जा सके। साथ ही सरकार पुनर्निर्माण कार्यों की गुणवत्ता की निगरानी के लिए अलग से किसी तंत्र की स्थापना नहीं करा पाई। रिपोर्ट में कहा गया कि पुनर्निर्माण कार्यों के लिए मंजूर किए गए 6,259.84 करोड़ रुपए का राज्य सरकार इस्तेमाल नहीं कर सकी, क्योंकि इसके लिए मजबूत प्रोजेक्ट सौंपे ही नहीं गए।
रिपोर्ट में कहा गया कि पुनर्निर्माण से जुड़े बहुत से कार्य इसलिए शुरू नहीं हो सके, क्योंकि केंद्र से पैसा मिलने के बावजूद राज्य सरकार ने वित्तीय या प्रशासनिक अनुमति ही नहीं दी। गौरीकुंड से केदारनाथ के बीच रोपवे के निर्माण, शेल्टर/गोदाम, केदारनाथ टाउनशिप में दूसरे चरण के कार्य, दूसरे धामों के विकास, 10 इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट का निर्माण के लिए 319.75 करोड़ रुपए स्वीकृत होने के बावजूद राज्य सरकार ने फंड ही नहीं जारी किया।
साथ ही 10 सेतु निर्माण कार्य परियोजना, पर्यटन अवस्थापना ढांचे की दो परियोजनाएं, तीन लघु जलविद्युत परियोजनाओं, सार्वजनिक भवनों के 17 निर्माण कार्य, वन क्षेत्र के पांच निर्माण कार्य आपदा की तारीख से पांच साल से अधिक समय गुजरने के बावजूद शुरू नहीं हो पाए।
साथ ही यह भी कहा गया कि निर्माण कार्यों के लिए जिम्मेदार संस्था तय समय के भीतर कार्य पूरे कर सकती थी, जो कि वर्ष 2014-15 और 2016-17 में होने थे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग (निम) ने 24.50 करोड़ रुपए का यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट सौंपा है, जिससे केदारनाथ में वर्ष 2016 में तीर्थ पुरोहितों के भवनों के निर्माण कार्य किए गए हैं, जबकि सितंबर 2017 तक वास्तविक खर्च 12.86 करोड़ रुपए का था। इसी तरह रिपोर्ट में कहा गया है कि रुद्रप्रयाग में जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने स्पेशल प्लान असिस्टेंट- रिकन्सट्रक्शन के तहत स्वीकृति प्रोजेक्ट के लिए मार्च 2017 तक 23.59 करोड़ रुपए गुप्तकाशी में पीडब्ल्यूडी को जारी किए। जबकि लेखा परीक्षा में पाया गया कि मार्च 2017 तक किए गए कार्यों में 14.62 करोड़ रुपए ही खर्च हुए, कार्यदायी संस्थान ने नवंबर 2016 तक 20.66 करोड़ रुपए का यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट जारी किया।
रिपोर्ट के मुताबिक आपदा प्रभावित जिलों में पांच हेलीड्रोम, 19 हेलीपोर्ट्स, 34 हेलीपैड और 37 बहुद्देश्यीय हॉल बनाए जाने थे। लेकिन सिर्फ 27 हेलीपैड का निर्माण हुआ। बहुद्देश्यी हॉल बने ही नहीं।
पुनर्निर्माण पैकेज से बनी 61 फीसदी सड़कों की गुणवत्ता पर भी कैग ने सवाल उठाए हैं। यह भी कहा गया है कि राज्य के लोक निर्माण विभाग ने ही इन सड़कों की गुणवत्ता को कमजोर माना है। राज्य सरकार ने परियोजनाओं के लिए धन स्वीकृत करने में देरी की, कार्यदायी संस्थाओं ने कार्य में ढिलाई बरती, जिससे पुनर्निर्माण कार्य समय से शुरू नहीं हुए, न ही उनकी गुणवत्ता की निगरानी की गई।
रिपोर्ट में कहा गया कि पुनर्निर्माण कार्यों के पैकेज में ऐसे कार्य भी शामिल कर दिए गए, जो आपदा के दौरान क्षतिग्रस्त नहीं हुए थे। साथ ही निर्धारित मानकों के उलट बजट खर्च किया गया। निर्माण कार्यों की निगरानी और गुणवत्ता की जांच के लिए कोई केंद्रीयकृत व्यवस्था तक नहीं बनाई गई। कई निर्माण कार्य पांच वर्ष से अधिक समय गुजर जाने के बावजूद शुरू नहीं हो सके।
कैग रिपोर्ट में खास तौर पर वर्ष 2014-15 से 2016-17 किए गए निर्माण कार्यो का ऑडिट किया गया है। इस दौरान राज्य में पूर्व की कांग्रेस सरकार के विजय बहुगुणा मुख्यमंत्री थे। इसके बाद फरवरी 2014 में हरीश रावत मुख्यमंत्री बने। वर्ष 2017 तक उनके नेतृत्व में पुनर्निर्माण कार्य किए गए। मार्च 2017 के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत की अगुवाई में बीजेपी सरकार कार्य कर रही है।
रिपोर्ट पर कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय का कहना है कि निष्पक्ष एजेंसी से इन मामलों की जांच कराई जानी चाहिए। जो भी इसमें संलिप्त पाया जाता है, उस पर कानून के अनुसार कार्रवाई होनी चाहिए। उनका कहना है कि भारतीय जनता पार्टी ने भी पुनर्निर्माण कार्यों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे, लेकिन आज वे उन्हीं लोगों के साथ कार्य कर रहे हैं। क्योंकि देवभूमि में यदि भ्रष्टाचार होता है तो इससे लोगों की भावनाएं भी आहत होती हैं।
राज्य के वित्त मंत्री प्रकाश पंत का कहना है कि केदारनाथ पुनर्निर्माण प्रोजेक्ट में केंद्र की तरफ से बड़ी वित्तीय मदद मिली थी। इस पर सदन में कैग की रिपोर्ट आने के बाद, अब पब्लिक अकाउंट्स कमेटी (पीएसी) इस रिपोर्ट का अध्ययन कर रही है। पीएसी इस पर जो भी सुझाव देगी, उसी के मुताबिक राज्य सरकार इस मामले में कार्रवाई करेगी। वित्त मंत्री का कहना है कि हालांकि राज्य सरकार गंभीर मसलों को अलग से भी देखेगी। जो भी संबंधित विभागीय अधिकारी हैं, उनसे पूछताछ की जाएगी।
वित्त मंत्री का का कहना है कि वर्ष 2013 के बाद से ही पुनर्निर्माण कार्यों को लेकर कई तरह की शिकायतें आती रहीं। विपक्ष में रहते हुए, उनकी पार्टी ने भी कई बार ये मुद्दा उठाया। प्रकाश पंत कहते हैं कि योजना विभाग की थर्ड पार्टी मॉनीटरिंग सिस्टम पुनर्निर्माण कार्यों की निगरानी करती है। कैग ने अकाउंट्स के ऑडिट और फिजिकल वेरिफिकेशन के बाद रिपोर्ट दी है। कैग की रिपोर्ट से भ्रष्टाचार प्रमाणित हो चुका है और अब उस पर कार्रवाई का वक्त है।
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