इस नए सेंसर की मदद से सिंचाई के लिए होने वाली पानी की खपत को लगभग 35 फीसदी तक कम किया जा सकता है भारत में जहां 3.9 करोड़ हेक्टेयर कृषि भूमि सिंचाई के लिए भूजल पर निर्भर है, यह तकनीक और महत्वपूर्ण है
नेक्टिकट विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने एक ऐसे सेंसर को बनाने में सफलता हासिल की है जो कि मिट्टी में मौजूद नमी की मात्रा को माप सकता है । जिससे सिंचाई के लिए उपयोग होने वाले जल की आवश्यकता को 35 फीसदी तक कम किया जा सकता है । जलवायु परिवर्तन और सूखे के चलते दुनिया के अधिकतम देश आज पानी की समस्या से ग्रसित हैं। वैश्विक स्तर पर जिस तरह से जल की उपलब्धता घटती जा रही है, उसको देखते हुए यह तकनीक किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है। गौरतलब है कि धरती पर उपलब्ध साफ पानी का लगभग 70 फीसदी हिस्सा कृषि कार्यों के लिए खर्च हो जाता है । जबकि पिछले 50 वर्षों में कृषि के लिए जल की मांग तीन गुना बढ़ गयी है। वहीं अनुमान है कि दुनिया भर में 2050 तक, सिंचाई के लिए पानी की मांग 19 फीसदी तक बढ़ जाएगी।
इस सेंसर को टेस्ट करने के लिए कनेक्टिकट विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने इसके एक प्रोटोटाइप को तारों की सहायता से एक उपकरण से जोड़ दिया जोकि, सेंसर द्वारा जुटाए गए आंकड़ों को एकत्रित करने में सक्षम था। इसके साथ ही उन्होंने इस सेंसर के एक व्यावसायिक रूप से तैयार मॉडल को भी बदलते मौसम में टेस्ट किया है। इन दोनों ही परीक्षणों से उन्हें उत्साहजनक आंकड़े प्राप्त हुए हैं | वैज्ञानिकों ने पाया कि यह सेंसर अपनी पूर्वनिर्धारित 10 महीनों की अवधि तक लगातार सफलतापूर्वक तरीके से मौसम में आ रहे बदलावों और उसके मिट्टी में मौजूद नमी पर पड़ रहे प्रभावों को दर्ज करने में सफल रहा था । जो की एक बड़ी सफलता है।
आखिर इतना विशेष क्यों हैं यह सेंसर
शोधकर्ताओं के अनुसार उन्होंने इस सेंसर को विश्वविद्यालय में ही डिजाइन और परीक्षण किया है। यह सेंसर मिट्टी में नमी को मापने के लिए वर्तमान में उपलब्ध उपकरणों की तुलना में काफी छोटा और सुविधाजनक हैं। जो इसकी एक बड़ी विशेषता है। आकार में छोटे होने के कारण इसे आसानी से कम कीमत पर बनाया जा सकता है।
कनेक्टिकट विश्वविद्यालय में पर्यावरण इंजीनियरिंग के प्रोफेसर और अध्ययन के लेखक प्रोफेसर गिलिंग वांग ने बताया कि वर्त्तमान में खेतों की मिट्टी में मौजूद नमी सम्बन्धी आंकड़ों की कमी, जल विज्ञान के अध्ययन के लिए एक बड़ी चुनौती है । वैसे भी जमीन के नीचे उपस्थित चीजों को मॉनिटर करना अपने आप में एक कठिन कार्य है । इसके अलावा इस कार्य के लिए मौजूदा रूप से उपलब्ध सेंसर बहुत महंगे हैं, साथ ही उनके इंस्टॉलेशन की प्रक्रिया बहुत अधिक मुश्किल और मेहनत लेने वाली है।"
शोधकर्ताओं के अनुसार उनके द्वारा निर्मित यह नया सेंसर पानी की खपत का लगभग 35 फीसदी तक कम कर सकता है, वहीं दूसरी और यह वर्त्तमान में उपलब्ध सेंसरों से काफी सस्ता है। जहां इसकी कीमत 2 अमेरिकी डॉलर (150 रुपये) से भी कम है, वहीं दूसरी ओर अन्य सेंसर और तकनीकों की कीमत 7,000 से 70,000 रुपये के बीच है। दूसरी ओर रडार और रेडियोमीटर जैसी रिमोट सेंसिंग तकनीक से इकटठे किये गए, मिट्टी की नमी के आंकड़ें कम रेजॉलूशन के होते हैं, जो की एक बड़ी समस्या है। लेकिन कनेक्टिकट विश्वविद्यालय द्वारा विकसित यह नई तकनीक, जल विज्ञान के मॉडल के विकास के लिए जरुरी उच्च रेजॉलूशन का डेटा प्रदान कर सकती है।
भारत जैसे कृषि प्रधान देशों के लिए है उपयोगी
यह देखते हुए कि मिट्टी में मौजूद नमी की मात्रा, वैश्विक स्तर पर कृषि सम्बन्धी निर्णयों को लेने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह सेंसर अत्यंत उपयोगी है क्योंकि छोटा और सस्ता होने के कारण इसे दुनिया के किसी भी हिस्से मेंभेजा और उपयोग किया जा सकता है। वहीं जल जैसे जरुरी संसाधन को बर्बाद न करते हुए, एक अच्छी फसल पाने के लिए मिट्टी में नमी की सटीक जानकारी का होना अत्यंत आवश्यक है और यह सेंसर यह काम बखूबी कर सकता है।
जबकि भारत में जहां 3.9 करोड़ हेक्टेयर कृषि भूमि सिंचाई के लिए भूजल पर निर्भर है, यह तकनीक और महत्वपूर्ण हो जाती है । इसकी सहायता से भूजल और नदियों पर बढ़ रहे दबाव को कम किया जा सकता है । साथ ही फसलों को जलवायु परिवर्तन और सूखे जैसी समस्याओं से बचने में प्रभावी रूप से मदद मिल सकती है।
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