मध्य प्रदेश में पांच साल बाद भी परियोजनाएं शुरू न होने पर आदिवासियों ने अपनी जमीन लौटाने की मांग की है। इस लड़ाई में किसान भी उनके साथ हैं।
अधिग्रहित जमीन वापस लेने की मांग को लेकर किसान और आदिवासियों ने भोपाल में धरना प्रदर्शन किया। फोटो: मनीष चंद्र मिश्रा
मध्यप्रदेश के अलग-अलग जिलों से आए किसान और आदिवासी गुरुवार को नीलम पार्क में इकट्ठा होकर एक दिवसीय धरने पर बैठे। यह धरना राज्य शासन द्वारा अधिग्रहित जमीन वापस मांगने के लिए किया गया था। किसानों का मानना है कि कई जिलों में पूर्व की भाजपा सरकार ने किसानों की जमीन विभिन्न प्रोजेक्ट के लिए किसानों की जमीन अधिग्रहित की थी। काफी समय बीत जाने के बाद भी उन जमीनों का उपयोग सरकार ने नहीं किया।
धरने में शामिल होने आए किसान शारदा पटेल ने बताया कि कटनी जिला के बुजबुजा डोकरिया और विजयराघवगढ़ गांव में सरकार ने वेलस्पन पावर कंपनी के लिए जमीन अधिग्रहित की। ये खेत एक वर्ष में तीन फसल देने वाले थे लेकिन किसानों के हाथ में न होकर इन खेतों को खाली रखा गया है। शारदा पटेल मानते हैं कि 5 साल से अधिक तक अगर अधिग्रहित जमीन का उपयोग न किया गया हो तो उसे किसान को वापस दिया जाना चाहिए।
धरने में शामिल आदिवासी किसान संतोष महोबिया का कहना है कि किसानों को न सिर्फ जमीन वापस मिलनी चाहिए बल्कि उन्हें उस जमीन पर पिछले 8 वर्षों में हुए नुकसान का मुआवजा भी मिलना चाहिए। महोबिया ने बताया कि कई किसानों ने जमीन छिनने के बाद आर्थिक तंगी की वजह से आत्महत्या तक करने को मजबूर हो गए। वर्ष 2011 के बाद से किसान अपनी जमीन का उपयोग नहीं कर पाए हैं।
किसानों की मांग है कि सरकार उन्हें 1 लाख प्रति फसल प्रति साल के हिसाब से हर साल तीन लाख का मुआवजा दे। धरने में मौजूद सामाजिक कार्यकर्ता रघु ठाकुर ने बताया कि आज किसानो के साथ सरकारें छल कर रहीं हैं । आज सरकारे दो तरह की नीतियां बनाती है जिसमें फायदा उद्योगपतियों को ही मिलता है और किसानों के साथ हमेशा छलावा ही होता है।
उन्होंने कहा कि कानून की मंशा अनुसार 5 वर्ष से अधिक समय तक उद्योग न लगाने पर भूमि अधिग्रहण रद्द किया जाए। ठाकुर ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री को किसानो के हक में बस्तर जिले मे टाटा के अधिग्रहण को रद्द कर किसानों की जमीन वापस करने पर बधाई दी।
धरने में मौजूद कार्यकर्ताओं ने एसडीएम के माध्यम से मुख्यमंत्री तक अपनी मांग को ज्ञापन के जरिए पहुंचाया। आंदोलनकारियों ने निश्चय किया कि अगर मुख्यमंत्री किसानों की वैधानिक मांग पूरी नहीं करते तो अगला धरना दिल्ली में दिया जाएगा।
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