हमें क्या नहीं भूलना चाहिए
डाउन टू अर्थ, हिंदी पत्रिका छठे वर्ष में प्रवेश कर चुकी है। पढि.ए, वार्षिकांक में लिखा गया पत्रिका की संपादक सुनीता नारायण का संपादकीय
जंगल के सवाल
फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा तैयार द स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2017 उपग्रह से प्राप्त चित्रों से निर्मित है। इससे पता चलता है कि ...
चूक गए तो चुक गए
ऐसा नहीं है कि सिर्फ मध्य प्रदेश में ही किसान सड़कों पर हैं, समृद्ध और ज्यादा उत्पादक राज्यों में कृषि की हालत भी खराब ...
पर्यावरणवाद के 76 साल
पर्यावरण आंदोलन ने नीतियों और विकास के तरीकों को आकार देने में जो भूमिका निभाई है, उसका जायजा लेने का सही समय यही है।
LNG, but not for rich world
Industrial countries need deep decarbonisation; they can’t re-invest in fossil fuels and call it clean & green
दिल्ली में वायु आपातकाल को नियंत्रित करने के लिए और अच्छे कदमों की जरूरत
राजधानी में प्रदूषण का वक्र (कर्व) थोड़ा झुका तो है लेकिन अभी और ज्यादा प्रयास की जरूरत है।
कोरोना की चुनौती : आज और कल
हमने लॉकडाउन करने में देरी कर दी है और हम क्वॉरंटाइन के नियमों का सही तरीके से पालन करने में विफल रहे हैं।
हां, मैं तटस्थ नहीं हूं
कुछ धर्मों के शरणार्थियों को तुरंत भारतीय नागरिकता देने के लिए लाए गए नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 (सीएए) में गंभीर त्रुटियां हैं
Cheering for toilets, with caution
The country did successfully build 100 million toilets, but this success must be made sustainable
Some forest questions
The State of Forest Report 2017 does provide important nuggets of insights into what is happening today
Justice eludes
So many years later, the victims have to still struggle for medical support, rehabilitation, compensation and environmental remediation
‘पेट कोक’ की उलझन
भारत में हर साल 1.20 से 1.30 लाख टन ‘पेट कोक’ बनता है। लेकिन चौंकाने वाली बात है कि इसका आयात भी बढ़ता जा ...
आवरण कथा: क्या कागजों में उग रहे हैं जंगल?
1987 से 2015 तक के दौरान वन आवरण की कुल भूमि में 20-21 प्रतिशत की वृद्धि हुई है लेकिन इसका कोई उल्लेख नहीं है ...
कोविड-19 संकट के बाद मिलकर बनाना होगा एक बेहतर कल
कोविड -19 केवल एक भूल या दुर्घटना नहीं है, बल्कि यह उन कार्यों का एक परिणाम है जो हमने एक ऐसी दुनिया के निर्माण ...
हमारा `एसी' प्रेम
गरीब ऊंचे तापमान में आराम से रह सकते हैं क्योंकि उनका शरीर इसके अनुकूल हो गया है। समाजवाद का यह भारतीय रूप है जो ...
कॉप 26 : ग्लासगो से शुरू होगा दुनिया का नया अध्याय
कॉप 26 का शीर्ष एजेंडा अपने नेतृत्व और आवाज को फिर से हासिल करने वाला होना चाहिए ताकि अमीर और गरीब दोनों के विश्वास ...
दशक पर एक नजर: विस्फोटक दुनिया में हम
विकास ने पर्यावरण को काफी प्रभावित किया है, इसलिए 2010-2019 का दशक आखिरी मौका है कि हम ठोस और सही कदम उठाएं
Holding the mirror, truthfully, for 28 years
Down To Earth's mission is not hidden in reams of corporate gloss. It is open. It is a dare, writes our editor, Sunita Narain.
“मानव निर्मित” आपदा
केरल में जो हुआ वह पूरी दुनिया में हो रहा है। यह एक असहज करने वाला तथ्य है कि हमारे पास बदलते मौसम से ...
Too cold for comfort!
Managing our cooling and heating needs would go a long way to reduce electricity demand and carbon dioxide emissions that contribute to climate …
Weather is 2017 person of the year
The biggest headline of 2017 is not deadly air pollution, but the catastrophe of weather changes that are bringing distress across India’s …
Old answers for ‘new’ monsoon
Mitigating floods and droughts has only one answer: obsessive attention to building millions and millions of connected and living water structures
स्वास्थ्य का व्यापार
जीएम भोजन का स्वास्थ्य के प्रति एक चिंताजनक पहलू यह भी है कि इससे एलर्जिक रिएक्शन हो सकता है।
जलवायु परिवर्तन पर आईपीसीसी की नई रिपोर्ट के बाद कड़ी कार्रवाई की जरूरत
आईपीसीसी की ताजा रिपोर्ट इसकी पुष्टि करती है कि अब हम बातों में वक्त नहीं गंवा सकते या काम न करने के नए बहाने नहीं ...
Delhi battles for clear skies and lungs
The Capital needs to completely transition to clean fuel and address local sources of pollution