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आदिवासियों की नई दिक्कत, नहीं मिल रहा तेंदूपत्ता संग्रहण का पैसा

तेंदूपत्ता आदिवासियों की आमदनी का सबसे बड़ा जरिया है, सरकारें भी यह बात जानती हैं, इसलिए नई-नई योजनाओं से आदिवासियों को लुभाने की कोशिश की जाती है

 
Published: Friday 20 September 2019
तेंदूपत्ता इकट्ठा कर ले जाती आदिवासी महिलाएं। फोटो: अवधेश मलिक

रायपुर से अवधेश मलिक

छत्तीसगढ़ एक आदिवासी बहुल प्रदेश है और करीब 42 प्रतिशत से अधिक भाग इसका वनों से आच्छादित है। आज भी वन संपदा यहां आय एवं राजस्व दोनों के लिए एक प्रमुख स्रोतों में शामिल है। तेंदुपत्ता जिससे की बीड़ी बनाई जाती है, वह यहां के प्रमुख वनोपज में शामिल है। प्रदेश की आबादी का एक बड़ा तबका जिसकी तादाद लाखों में है, जिसमें आदिवासी प्रमुख रूप से शामिल है और वह अपने आजीविका, विकास एवं कल्याण के लिए वनोपज एवं तेंदुपत्ता संग्रहण पर निर्भर रहता है। तेंदुपत्ता संग्राहकों को रूप में मतदाता का एक बड़ा वर्ग इससे जुड़ा हुआ है।

अविभाजित मध्यप्रदेश में 1980 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने सर्वप्रथम तेंदुपत्ता संग्राहकों को तेंदुपत्ता संग्रहण के मेहताने के साथ बोनस भी दिया जाने की घोषणा की थी। यह आज भी बदस्तूर जारी है। इस प्रयास के महत्व को छत्तीसगढ़ के पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री रमन सिंह के नेतृत्ववाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने अच्छी तरह समझा और तेंदुपत्ता संग्राहण की राशि को नियमित रूप से बढ़ाया। तेंदुपत्ता संग्रहण राशि प्रति मानक बोरा 2500 रुपए से अधिक तक करने के साथ-साथ बोनस देने का वायदा किया, निःशुल्क चरण पादुका वितरण योजना एवं पुनर्वास, कल्याण जैसे नीतियां भी बनाई।

भूपेश सरकार ने सत्ता में आने के साथ ही 4000 रूपया प्रति मानक बोरा के दर से तेंदुपत्ता संग्राहकों को भुगतान करने हेतु घोषणा कर दी। अधिकांश जगहों पर मई महिने तक यह राशि बंट भी गई। फिलहाल राज्य की खजाने की माली हालत ठीक नहीं है। राज्य सरकार ने राजस्व जुटाने के लिए सरकारी जमीनों को नीजि हाथों में बेचने का फैसला भी कर लिया है। इससे तेंदु संग्रहण कर्ता बोनस को लेकर आशंकित हैं।

गरियाबंद की सामाजिक कार्यकर्ता लता नेताम के मुताबिक अमूनन सभी तेंदुपत्ता संग्राहकों का भुगतान किया जा चुका है और उन्हें अघोषित रूप से संकेत भी दिया गया है कि इस बार जो रकम बढ़ा कर दी गयी है उसी में बोनस की रकम भी शामिल है। बारनवापारा क्षेत्र के लक्ष्मी दीवान जैसे कई लोग हैं जिनका कहना है कि उन्हें जो पैसा मिला है वह 2018 का पैसा मिला, लेकिन इस बार का पैसा नहीं मिला है।

इस पर बीजापुर वन विभाग के रेंजर अनिल बताते हैं कि उनके यहां तो करीब-करीब सभी परिवारों का तेंदुपत्ता संग्रहण का पैसा मिल चुका है। लेकिन कहीं पर किसी का भुगतान अटक गया होगा तो जरूर कोई तकनीकी खामी होगी क्योंकि आदेश पूरे प्रदेश भर के लिए था। रही बात बोनस की तो वह खरीददारों द्वारा पुरा भुगतान कर दिए जाने के बाद ही सरकार निर्णय लेती है।

कांकेर के कांग्रेस नेता एवं बारदेवरी लघुवनोपज सहकारी समिति के अध्यक्ष नितिन पोटाई का कहना है कि उनके यहां करीब 34,015 परिवार है और लोगों को 4000 रूपया प्रति मानक बोरा के हिसाब से भुगतान हो चुका है। फिलहाल बोनस की बात नहीं कही गई है। इसीलिए हमने पहले भी मांगा था कि हमारी ग्राम सभाओं सामुदायिक वनाधिकार कानून के तहत वन संरक्षण से लेकर तेंदुपत्ता बिक्री करने तक का अधिकार दिया जाए जैसा कि महाराष्ट्र पांच जिलों में वन अधिकार कानूनके तहत दिया गया है। क्योंकि समिति की सिफारिशें सरकारी अधिकारी नहीं मानते।   

छत्तीसगढ़ वन विभाग वरिष्ठ अधिकारी आईएफएस अरूण पांडे का कहना है कि छत्तीसगढ़ में तेंदुपत्ता संग्रहण करने वाले परिवारों की संख्या करीब 11 लाख है और इसबार करीब 15 लाख 28 हजार मानक बोरा के करीब तेंदुपत्ता संग्रहित की गई थी। जिसमे से तेंदुपत्ता संग्राहकों को 650 करोड़ रूपये से अधिक की राशि का वितरण किया जा चुका है जो कि अपने आप में एक रिकार्ड है। रही बात अधिकारी के मानने की तो जो भी राज्य सरकार के विधि सम्मत कार्य एवं सिफारिशें होती है उसे अधिकारी मानते हैं और असमंजस की स्थिति होने पर आपस में बैठ कर रास्ता निकाल लेते हैं।

विदर्भ नेचर कंजर्वेशन सोशाईटी के एक्ज्यूक्यूटिव डायरेक्टर दिलीप गोडे बताते हैं कि वर्ष 2010 में सामुदायिक वन अधिकार कानून के तहत 750 गांवों को वन अधिकार प्राप्त हुआ। लेकिन  गोंदिया के 3 गांव गढ़चिरौली के पांच गांव के ग्राम सभाओं ने देश में पहली बार 2013 में बांस बेचा।

उसके बाद इसी तेंदुपत्ता के संबंध में गढ़चिरौली के गांव नरौटीचक, नरौतिमाल, कुरांडीचक,, टेंभाचक, मोहाटोला, कुकडी, डोंगारटमासी, मेंढ़ा, चामभद्रा, मारेगांव, मौसीचक) एवं गोंदिया जिले के गांव ( धमाधीटोला, तुमडीकासा, मेहाटेखेड़ा) के ग्राम सभाओं ने वन विभाग से मांग की उनके गांव का तेंदुपत्ता एवं संग्रहण का अधिकार दिया जाए।

उसके बाद से इन सभी गांव के नाम वन विभाग ने तेंदुपत्ता के निलामी एवं अन्य प्रक्रिया से निकाल दिया। हमने तेंदुपत्ता का संग्रहण भी कर लिया लेकिन समितियों ने खुद का टेंडर निकाला लेकिन पहले व्यापारियों ने माल खरीदने से मना कर दिया। फिर राज्य के ट्राईबल डेवलपमेंट कार्पोरेशन से बात किया और करीब एक करोड़ रूपया कर्ज लिया।

सरकार ने शर्त रखी थी माल बिकने के साथ ही पैसा वापिस करना पड़ेगा बस ब्याज भर नहीं लगेगा। मेहताना देने के बाद तेंदुपत्ता भी बिका उसके बाद 1320 परिवारों को 4792282 रूपये का मेहताना और बोनस बांटा तो लोगों का खुशी का ठिकाना न रहा। वर्ष 2016 में 21 गांव के लोग इसमें शामिल हुए और 1684 परिवारों के मध्य जब 1,54,33,837 रूपये का वितरण जब बोनस के साथ हुआ और भी लोग जुड़ने लगे। अभी के समय में 5 जिलों में 170 से अधिक गांवों में 7 ग्रामसभा महासंघों के साथ बिजनेस मॉडल पर काम हो रहा है। इस बार हमारे किसी-किसी समिति में तो 8,000 रूपया से अधिक तेंदुपत्ता मानक बोरा तक रेट गया है।

इसमें सबसे अच्छी बात यह है कि यहां सबकुछ पारदर्शी है, जंगल पर ग्राम सभाओं का अधिकार होने से फजूल में जंगल नहीं कटती, आग नहीं लगती और व्यापारी या अधिकारी बेईमानी नहीं कर पाते। दूसरे अर्थों में कहे तो जंगल का संवर्धन एवं संरक्षण दोनों हो रहा है।

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