खाद्य तेलों की बढ़ती कीमतों के लिए जिम्मेवार कौन?

प्याज, लहसुन के बाद खाद्य तेलों की कीमतें बढ़ रही हैं। इसकी फौरी वजह पर तो बात की जा रही है, लेकिन असल वजह पर बात नहीं हो रही है

By Anil Ashwani Sharma, Raju Sajwan
Published: Monday 23 December 2019
Photo: Meeta Ahlawat

राम सजीवन की सात पीढ़ियां घानी लगाकर तेल पेरने का काम कर रही थी। वह भी ढाई दशक तक यही काम करते थे। लेकिन उन्हें यह काम बंद करना पड़ा, क्योंकि दुकानदारों ने उनका तेल लेना बंद कर दिया। उन्हें बताया गया कि बाजार में कोई विदेशी तेल आया है, जो उनके तेल से आधी से भी कम कीमत पर बिक रहा है। कुछ समय बाद राम अवतार को अपना काम बंद करना पड़ा और महुआ की ताड़ी बना कर बेचनी पड़ रही है। राम अवतार मध्य प्रदेश के सीधी जिले के गांव हिनौती के रहने वाले हैं। वह तेली समाज से हैं और उनके पूरे गांव ने तेल पेरने का अपना पुश्तैनी काम छोड़ दिया है। कुछ ऐसी ही कहानी उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के गांव पूर्वास की रहने वाली गुलजारी की है। उनका पूरा परिवार भी तेल पेरने का काम करता था, लेकिन उन्हें भी यह काम छोड़ना पड़ा।


विदेशी तेल की वजह से न केवल देश के तेली समाज के अस्तित्व पर संकट खड़ा हो गया, बल्कि खाद्य तेल मिल मालिकों को भी अपना काम छोड़ना पड़ा। राजधानी दिल्ली से सटे हरियाणा के कस्बे बल्लभगढ़ में एक समय में बोहरा मिल का नाम था। इस मिल में बनने वाला तेल देश के कई हिस्सों में सप्लाई किया जाता था, लेकिन साल 2000 में यह मिल बंद हो गई। इस मिल के मालिक महेंद्र बोहरा कहते हैं कि 1995 में भारत ने मलेशिया से समझौता किया और वहां से पाम ऑयल देश में आने लगा। यह तेल इतना सस्ता था कि हम चाह कर भी इस तेल का मुकाबला नहीं कर सके और पांच साल बाद हमने तेल मिल बंद करने का फैसला लिया। जब तक हमारी मिल चलती थी, तब तक आसपास के इलाकों के किसान अपने खेतों में सरसों लगाया करते थे, हमारी मिल बंद होने के कारण किसानों ने भी खेती छोड़ दी। देखते ही देखते, लगभग 90 फीसदी बड़ी तेल मिल बंद हो गईं। 

खाद्य तेल, उन वस्तुओं में शामिल है, जिसका भारत में तेजी से आयात बढ़ा है। जनवरी 1995 में भारत, विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में शामिल हुआ था। इसके बाद भारत ने कई देशों के साथ व्यापारिक समझौते किए। इसमें से एक देश है, मलेशिया। जहां से खाद्य तेल के आयात की शुरुआत हुई और तब से लेकर अब तक देश में खाद्य तेल के आयात के लिए लाइसेंस नहीं लेना होता है। कृषि विभाग की सितंबर 2019 तक की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में सभी खाद्य तेलों का आयात होता है। अकेले ताड़ का तेल (पाम ऑयल) कुल खपत का लगभग 60 फीसदी आपूर्ति आयात से होती है (देखें- आयात की आंच)। अभी भारत अर्जेंटीना और ब्राजील से सोयाबीन तेल, इंडोनेशिया और मलेशिया से पाम ऑयल और यूक्रेन व अर्जेंटीना से सूरजमुखी का तेल आयात कर रहा है। पाम ऑयल के आयात के मामले में भारत दुनिया में सबसे आगे हैं। भारत ने 2018 में 88.1 लाख टन पाम ऑयल आयात किया था। उसके बाद चीन का नंबर आता है, जिसने 2018 में 53.3 लाख टन पाम ऑयल आयात किया। 

भारतीय किसान यूनियन के महासचिव युद्धवीर सिंह बताते हैं कि 1995 में हुए डब्ल्यूटीओ समझौते के चलते जब दूसरे देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) हुए तो भारत को निर्यात के रूप में कोई बड़ा फायदा नहीं मिला, लेकिन दूसरे देशों से हुए आयात की वजह से भारत में तेली समुदाय जैसे कई पुश्तैनी कारोबार करने वाले समुदाय खतरे में पड़ गए और उन कारोबारियों को या तो छोटे-मोटे दूसरे धंधे शुरू करने पड़े या मजदूरी करके अपना व अपने परिवार का पेट पालना पड़ा।

यहां यह उल्लेखनीय है कि वर्तमान में खाद्य तेल के महंगे होने का बड़ा कारण पाम ऑयल की कीमतें बढ़ना बताया जा रहा है। पाम ऑयल के दामों में बीते दो माह में 35 फीसदी से अधिक की तेजी आई है। देश के बाजारों में पाम तेल का दाम करीब 20 रुपए प्रति किलो बढ़ा है। वहीं, पिछले दिनों हुई भारी बारिश के कारण सोयाबीन की फसल खराब हुई है, इसलिए सोया तेल के आयात की भी संभावना है, जबकि सोया तेल निर्यात करने वाले देश अर्जेंटीना ने निर्यात शुल्क 25 फीसदी से बढ़ा कर 35 फीसदी कर दिया है। इससे सोया तेल के महंगे होने की भी आशंका जताई जा रही है।

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