वैज्ञानिकों ने खोजा केले के कैंसर का इलाज

भारत के वैज्ञानिकों ने पनामा रोग को कंट्रोल करने के लिए एक बायो पेस्टीसाइड बनाया है जिसका नाम है आईसीएआर-फ्यूजीकांट

By Bhagirath, Arnab Pratim Dutta
Published: Wednesday 09 September 2020

भारत और दुनियाभर में सबसे ज्यादा खाया जाने वाला फल केला एक बहुत बड़े खतरे से बचा है। इस खतरे का नाम है फ्यूजेरियम विल्ट। आम बोलचाल की भाषा में इसे पनामा रोग भी कहते हैं। दुनिया के 17 देशों में फैल चुके इस रोग ने केले के वजूद को ही खतरे में डाल दिया था।

अच्छी खबर ये है आईसीएआर यानी भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के वैज्ञानिकों ने इस खतरे का तोड़ खोज निकाला है। भारत के वैज्ञानिकों ने इस रोग को कंट्रोल करने के लिए एक बायो पेस्टीसाइड बनाया है। इसका नाम है आईसीएआर-फ्यूजीकांट। खास बात ये है कि पेस्टीसाइड एक फंगस की मदद से बनाया गया है। यह बहुत बड़ी उपलब्धि है क्योंकि दुनिया में कहीं भी ऐसी दवा नहीं बनी है।

केला किसान लंबे समय से पनामा रोग से परेशान थे। यह रोग केले की केवेंडिश प्रजाति यानी टी-9 प्रजाति पर बहुत बुरा असर डालता है। भारत के ज्यादातर केला किसान टी-9 प्रजाति ही उगाते हैं। इस प्रजाति को हम कई नामों से जानते हैं, जैसे ग्रैंड नैन, रोबस्टा, भुसावल, बसराई और श्रीमंथ।

भारत के चार राज्य- बिहार, गुजरात, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश पनामा रोग से सबसे ज्यादा प्रभावित रहे हैं। इन राज्यों में बड़े पैमाने पर केंवेंडिश केला उगाया जाता है।

अब बात करते हैं पनामा रोग की और जानते हैं कि यह क्यों इतना खतरनाक है। यह रोग एक अजीब किस्म के फंगस से होता है। इस फंगस का नाम है फ्यूजेरियम ऑक्सिसपोरम एफ. एसपी क्यूबेंस। इसके एक स्ट्रेन को ट्रॉपिकल रेस-4 यानी टीआर-4 के नाम से जाना जाता है।

फंगस के इसी स्ट्रेन ने केले को तबाह किया है। आशंका है कि दुनिया में 80 प्रतिशत केले की फसल इससे प्रभावित हो सकती है। यह रोग इतना खतरनाक है कि कई बार इसे केले का कैंसर तक कह दिया जाता है।

यह फंगस पौधे की जड़ पर हमला करता है। एक बार संक्रमित होने के बाद पौधे को पानी और अन्य पोषक नहीं मिल पाते। इससे धीरे-धीरे पत्ते मुरझा जाते हैं और तना काला पड़ने लगता है। इसके बाद पौधा मर जाता है। अगर एक पौधे को यह रोग लग गया तो सभी पौधे इसकी चपेट में आ सकते हैं।

2017 में यह रोग उत्तर प्रदेश और बिहार में बड़े पैमाने पर फैला था। इसे देखते हुए आईसीएआर के सेंट्रल सोइल सेलिनिटी रिसर्च इंस्टीट्यूट ने इस समस्या का समाधान खोजना शुरू किया। इस काम में नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर बनाना और सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ सब-हॉर्टिकल्चर ने मदद की।

खोजबीन के दौरान पता चला कि आईसीएआर के वैज्ञानिक ने पहले से एक हर्बीसाइड बना रखा है। यह हर्बीसाइड टमाटर और मिर्च के पौधे पर लगने वाले फ्यूजेरियम विल्ट पर असरदार है। वैज्ञानिकों ने इस हर्बीसाइड के फार्मुलेशन को बदलकर पनामा रोग की दवा आईसीएआर-फ्यूजीकांट विकसित कर ली।

2018 में इस नई दवा का फील्ड ट्रायल शुरू किया गया। यह दवा ट्राईकोडरमा ईसी नामक फंगस की मदद से बनी है। यह फ्यूजेरियम फंगस को कंट्रोल करती है और उसे बढ़ने से रोकती है। इससे केले के पौधे की इम्युनिटी भी बढ़ती है। आमतौर पर केले की फसल 14-16 महीने में तैयार होती है। इस दौरान नियमित अंतराल पर दवा का इस्तेमाल करना होता है। 

भारतीय किसानों के लिए केले की खेती फायदा का सौदा है। आमतौर पर एक एकड़ के खेत में किसान 4 लाख रुपए कमा सकता है। पनामा रोग लगने पर किसानों की कमाई आधी हो जाती है।

डाउन टू अर्थ ने ऐसे बहुत से किसानों से बात की जिनके लिए नई दवा किसी वरदान से कम नहीं है। तीन महीने से भी कम समय में उन्होंने केले की फसल को रोग से मुक्त होते देखा है।

भारत में केला केवल खाने की वस्तु नहीं है। हमारी सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताओं में यह गहराई से जुड़ा है। भारत के कई राज्यों में केले के पत्तों और तनों के बिना शादी नहीं होती। हिंदु धर्म में मान्यता है कि केले के पौधे की पूजा करने से सुख, शांति और समृद्धि आती है। भारत, दक्षिण एशिया और दुनियाभर में ऐसी बहुत सी मान्यताएं हैं। आईसीएआर के वैज्ञानिकों ने केले को बचाकर हमारी धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं को भी बचाया है।  

Subscribe to Weekly Newsletter :