विशेषज्ञों ने कहा, उत्तराखंड में तबाही की वजह हो सकती है कम बर्फबारी

विश्षेज्ञों का कहना है कि इस बार उत्तराखंड में बर्फबारी कम हुई है, संभव है कि इस वजह से ग्लेशियर कमजोर पड़ गए हैं

By Ishan Kukreti
Published: Sunday 07 February 2021
उत्तराखंड के चमोली जिले में अचानक आई बाढ़ से क्षतिग्रस्त तपोवन परियोजना। फोटो: दीक्षा

उत्तराखंड के चमौली जिले में 7 फरवरी को हुई घटना के लिए इस बार हुई सर्दियों में हुई कम बर्फबारी ने अहम भूमिका निभाई है।

नाम न छापने की शर्त पर एक वैज्ञानिक ने कहा, “इस समय ऐसा कुछ होना बहुत ही असामान्य है। सर्दियों के दौरान, बारिश और बर्फबारी ग्लेशियरों की भरपाई करती है और किसी भी संरचनात्मक संबंधी कमी को ठीक करती है। लेकिन इस साल ऊंचाई वाले इलाकों में बर्फबारी कम हुई, ताजा घटना के लिए यह एक कारण हो सकता है, हालांकि अभी यह कहना मुश्किल है कि ग्लेशियर किस तरह से प्रभावित हुए हैं। ”

उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू और कश्मीर में लगभग 200 ग्लेशियर हैं।

मुखर्जी ने कहा कि सर्दियों के दौरान ग्लेशियरों की निगरानी मौसम की वजह से मुश्किल होती है और क्षेत्र बंद हो जाता है। इनकी निगरानी केवल मार्च से सितंबर के बीच की जाती ह, उस समय मौसम अनुकूल होता है कि हम ग्लेशियरों की निगरानी करने में सक्षम होते हैं।

दिल्ली विश्वविद्यालय के एनवायरमेंटल स्टडीज विभाग के प्रोफेसर और सेंटर फॉर इंटडिस्पिलनिरी स्टडीज ऑफ माउंटेन एंड हिल एनवायरमेंट के निदेशक महाराज के. पंडित ने कहा, "हिमालय में कुछ 8,800 हिमनद (ग्लेशियल) झीलें फैली हुई हैं, और इनमें से 200 से अधिक को खतरनाक के रूप में वर्गीकृत किया गया है। हाल ही के वैज्ञानिक प्रमाण बताते हैं कि हिमालय में उत्पन्न होने वाली बाढ़ बड़े पैमाने पर भूस्खलन के कारण होती है, जो अस्थायी रूप से पहाड़ी नदियों को रोक देती हैं।"

उन्होंने कहा कि अन्य पर्वत श्रृंखलाओं की तुलना में हिमालय तेजी से गर्म हो रहा है, इसकी वजह यह है कि स्थानीय लोगों में घर बनाने के लिए पारंपरिक लकड़ी और पत्थर की चिनाई की बजाय कंक्रीट का इस्तेमाल बढ़ा है, इससे स्थानीय तापमान का स्तर बढ़ रहा है। सरकार केवल आपदा के बाद हरकत में आती है, लेकिन उससे पहले कुछ नहीं किया जाता। 2004 की सुनामी के बाद तटीय क्षेत्रों में जैसी चेतावनी प्रणाली स्थापित की गई, हम हिमालय में भी वैसी ही प्रणाली स्थापित करने की बात कर रहे हैं, लेकिन अब तक ऐसा नहीं हो पाया है।

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