हिमालय व उत्तरी गोलार्ध के पहाड़ों में हर एक डिग्री तापमान बढ़ने से 15 फीसदी अधिक होगी बारिश: रिपोर्ट

दुनिया भर में तापमान दो डिग्री होने से 30 प्रतिशत और तीन डिग्री की वृद्धि होने से 45 प्रतिशत तक बारिश में वृद्धि देखी जा सकती है।

By Rohini Krishnamurthy, Dayanidhi
Published: Wednesday 28 June 2023
फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स, रोमजान अहमद सियाम

जलवायु में बदलाव के कारण उत्तरी गोलार्ध के पर्वतीय इलाकों में बर्फबारी के बजाय बारिश हो सकती है, जिससे वर्षा की चरम सीमा कुछ घंटों से लेकर एक दिन तक बढ़ सकती है

एक नए अध्ययन के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में हर एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि पर हिमालय और उत्तरी गोलार्ध के अन्य पहाड़ों में 15 फीसदी अधिक बारिश होने के आसार हैं।

नेचर नामक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण उत्तरी गोलार्ध के पर्वतीय क्षेत्रों में बर्फबारी से लेकर बारिश तक में बदलाव हो सकता है, जिससे बारिश की चरम सीमा कुछ घंटों से लेकर एक दिन तक बढ़ सकती है।

बर्फबारी के बजाय बारिश होने के इस बदलाव के कारण बाढ़, भूस्खलन और मिट्टी के कटाव जैसी आपदाओं का खतरा बढ़ सकता है।

मिशिगन विश्वविद्यालय के शोधकर्ता तथा प्रमुख अध्ययनकर्ता  मोहम्मद ओमबादी ने कहा कि, "वैश्विक आबादी का एक चौथाई हिस्सा पहाड़ी क्षेत्रों में या नीचे की ओर रहता है, वे इस खतरे से सीधे तौर पर प्रभावित होने वाले हैं।"

अध्ययन के निष्कर्ष प्राकृतिक और निर्मित पर्यावरण की रक्षा के लिए जलवायु अनुकूलन योजनाओं को विकसित करने के महत्व पर जोर देते हैं, जहां वैश्विक आबादी का 26 प्रतिशत हिस्सा पहाड़ी क्षेत्रों में या सीधे नीचे की ओर रहता है।

लॉरेंस बर्कले नेशनल लेबोरेटरी, बर्कले और मिशिगन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने 1950 से 2019 के बीच के आंकड़ों के लिए यूरोपियन सेंटर फॉर मीडियम-रेंज वेदर फोरकास्ट्स एटमॉस्फियरिक रीएनालिसिस (ईआरए 527) का उपयोग किया। वे भविष्य के अनुमानों के लिए कंप्यूटर मॉडल पर निर्भर थे।

ऐतिहासिक रिकॉर्ड (1950 से 2019) डेटासेट को जलवायु मॉडल अनुमान (2024 से 2100) के साथ जोड़कर, शोधकर्ताओं ने अवधि और डेटासेट दोनों में वर्षा की चरम सीमा में वृद्धि होने का पता लगाया।

साल 1950 से 2019 के आंकड़ों से पहले ही पता चला है कि उत्तरी गोलार्ध के पर्वतीय क्षेत्रों में बर्फबारी के बजाय बारिश होने का बदलाव शुरू हो गया है।

तापमान में हर एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि पर यह 15 प्रतिशत की दर से बढ़ता रहेगा। दुनिया भर में तापमान दो डिग्री होने से 30 प्रतिशत और तीन डिग्री की वृद्धि होने से 45 प्रतिशत तक बारिश में वृद्धि देखी जा सकती है।

हालांकि सभी पर्वतीय क्षेत्र खतरे में नहीं हैं। निष्कर्षों से पता चला है कि हिमालय और उत्तरी अमेरिकी प्रशांत पर्वत श्रृंखलाएं, जिनमें कैस्केड, सिएरा नेवादा और कनाडा से दक्षिणी कैलिफोर्निया तक की तटीय श्रृंखलाएं शामिल हैं, रॉकी या आल्प्स की तुलना में अधिक खतरे में हैं।

ओमबादी ने डाउन टू अर्थ के अंग्रेजी संस्करण को बताया कि, “हिमालय उन हॉटस्पॉट क्षेत्रों में से एक है जहां हम भारी बारिश का बढ़ा हुआ खतरा देखते हैं। वास्तव में, हमारे आंकड़ों से पता चलता है कि हिमालय में अन्य पर्वतीय क्षेत्रों की तुलना में वृद्धि के अधिक होने के आसार हैं"।

शोधकर्ताओं का अनुमान है कि वायुमंडलीय गतिशीलता में बदलाव के कारण भारी खतरा हो सकता है।

उदाहरण के लिए, उत्तरी अमेरिकी प्रशांत पर्वत श्रृंखला में बर्फबारी का एक बड़ा हिस्सा शून्य डिग्री सेल्सियस से थोड़ा नीचे के तापमान पर होता है।

ओमबादी ने कहा कि, हवा के तापमान में बदलाव इस बर्फबारी को बारिश में बदल देगा। अन्य कम खतरे वाली पर्वत श्रृंखलाओं में, शून्य डिग्री से बहुत कम तापमान पर बर्फबारी हो सकती है।

उपग्रह से पहले की अवधि (1979 से पहले) के आंकड़ों की कमी के कारण शोध दल ने दक्षिणी गोलार्ध में पर्वतीय क्षेत्रों पर विचार नहीं किया। उन्होंने बताया कि इससे आधारभूत अवधि (1950-1979) के अनुमानों में कुछ गड़बड़ी हो सकती है। उन्होंने अपने अध्ययन में बताया कि, "स्थानीय अवलोकनों की ऐसी कमी विशेष रूप से पर्वतीय क्षेत्र में अधिक आम है।"

इस महीने की शुरुआत में, इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट की एक रिपोर्ट में पाया गया कि हिंदू कुश हिमालय के ग्लेशियर अपने द्रव्यमान का 65 प्रतिशत खो चुके है।

इसके अलावा, उच्च उत्सर्जन परिदृश्य के तहत बर्फ का एक चौथाई हिस्सा नष्ट हो सकता है। रिपोर्ट में एक अध्ययन का हवाला दिया गया है जिसमें अनुमान लगाया गया है कि औसत बर्फबारी में 1971 से 2000 की तुलना में 2070 से 2100 के बीच सिंधु बेसिन में बर्फबारी में 30 से 50 प्रतिशत, गंगा में 50 से 60 प्रतिशत और ब्रह्मपुत्र में 50 से 70 प्रतिशत बर्फबारी में की गिरावट आएगी।

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