तापमान का दुष्चक्र: गर्मी बढ़ने से पिघल रही है बर्फ और बर्फ पिघलने से बढ़ रही है गर्मी

एक नए अध्ययन में कहा गया है कि बर्फ पिघलने से वैश्विक तापमान में लगभग 0.2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो सकती है

By Dayanidhi
Published: Wednesday 28 October 2020

1970 के दशक से लेकर 2000 के दशक के मध्य तक आर्कटिक में गर्मियों के दौरान समुद्री बर्फ में प्रति दशक 10 फीसदी से अधिक की गिरावट आई है। यदि यह इसी तरह कम होना जारी रहा तो 21 वीं सदी में आर्कटिक पहली बार गर्मियों में बिना बर्फ के होगा। बड़े पैमाने पर आर्कटिक समुद्री बर्फ, पहाड़ के ग्लेशियर, ग्रीनलैंड और पश्चिम अंटार्कटिक बर्फ की चादर पिछली सदी के दौरान मानवजनित ग्लोबल वार्मिंग के कारण काफी बदल गए हैं।

बहुत अधिक बर्फ के नुकसान से गर्मी बढ़ सकती है। बर्फ का यह नुकसान आगे खतरों का कारण बन रहा है। एक नए अध्ययन में लंबे समय तक परिदृश्यों की खोज करके इस बारे में पता चला है। यदि गर्मियों में आर्कटिक की समुद्री बर्फ पूरी तरह से पिघल जाती है, तो एक ऐसा परिदृश्य होगा जिसके इस सदी के भीतर हमेशा के लिए हकीकत बनने के आसार है। यह अंततः ग्लोबल वार्मिंग को लगभग 0.2 डिग्री सेल्सियस और बढ़ा सकता है। हालांकि यह भविष्य के वार्मिंग के आईपीसीसी अनुमान के अनुसार है। अब वैज्ञानिकों ने बर्फ के नुकसान के प्रभावों को अन्य प्रभावों से अलग कर दिया है और इसकी मात्रा निर्धारित की है।

तापमान में 0.2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि पर्याप्त है, यह देखते हुए कि वैश्विक औसत तापमान, वर्तमान में पूर्व-औद्योगिक समय की तुलना में लगभग एक डिग्री अधिक है, और दुनिया भर की सरकारें 2 डिग्री से कम पर वृद्धि को रोकने के लिए सहमत हुई हैं। यह अध्ययन नेचर कम्युनिकेशन्स में प्रकाशित हुआ है।

यदि दुनिया भर में बर्फ व्यापक रूप से कम होती है, तो पृथ्वी की सतह से टकराने वाली सूर्य की रोशनी अंतरिक्ष में वापस कैसे परावर्तित होती है इसमें भी बदलाव होगा। प्रमुख अध्ययनकर्ता निको वेलिंगलिंग कहते हैं कि आर्कटिक में बर्फ के आवरण के कम होने से गहरे समुद्र का पानी अधिक ऊर्जा को अवशोषित करता है। इसे अल्बेडो प्रतिक्रिया के रूप में जाना जाता है। यह गर्मियों में सफेद या काले कपड़े पहनने जैसा है। यदि आप काले कपड़े पहनते हैं, तो आप अधिक आसानी से गर्मी को अवशोषित करते हैं।

आगे के कारणों में बर्फ के पिघलने के कारण गर्म वातावरण में जल वाष्प की वृद्धि होना शामिल है। गर्म हवा अधिक जल वाष्प को रोक सकती है, और जल वाष्प ग्रीनहाउस प्रभाव को बढ़ाता है। पॉट्सडैम वैज्ञानिक बर्फ के नुकसान से उत्पन्न गर्मी (वार्मिंग) की गणना करने में सक्षम हैं।

आर्कटिक महासागर में जमी हुए मीथेन निकलनी हुई शुरू

हाल ही के एक शोध में वैज्ञानिकों ने पाया है कि आर्कटिक महासागर में जमी हुए मीथेन भंडार जिसे "कार्बन चक्र के सोए हुए दानव" के रूप में जाना जाता है। यह पूर्वी साइबेरियाई तट से महाद्वीपीय ढलान के एक बड़े क्षेत्र से निकलनी शुरू हो गई है। इसके निकलने से आर्कटिक के वातावरण में ग्रीनहाउस गैस में वृद्धि होगी जो ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ावा देगी, जिससे बर्फ पिघलने की गति बढ़ेगी, फिर और गर्मी बढ़ेगी इस तरह इस दुष्चक्र के बढ़ने के आसार हैं।

शोध समूह की अगुवाई करने वाले रिकार्डा विंकेलमैन ने कहा कि यह खतरा लंबे समय के लिए है। पृथ्वी में बर्फ का द्रव्यमान बहुत अधिक है, जो हमारी पृथ्वी प्रणाली के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इसका मतलब यह भी है कि मानवजनित जलवायु परिवर्तन के प्रति उनकी प्रतिक्रिया, विशेष रूप से ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका पर बर्फ की चादरें, लंबी अवधि तक होती हैं। लेकिन कुछ बदलाव होने में सैकड़ों या हजारों साल लग सकते हैं, तो भी संभव है कि हम उन्हें सिर्फ एक-दो दशकों के भीतर ही खो सकते हैं।

वैज्ञानिकों ने व्यापक कंप्यूटर सिमुलेशन किया। उन्होंने कहा कि प्रभाव हमेशा सीधे-सीधे नहीं होते हैं उदाहरण के लिए, भूमि पर एक विशाल बर्फ के आवरण के कम होने, सिकुड़ने के बावजूद भी वहां बर्फ हो सकती है। जो सूरज की रोशनी को परावर्तित कर सकती है, ठीक उसी तरह जैसे बर्फ में होता है। यही कारण है कि यदि ग्रीनलैंड और पश्चिम अंटार्कटिका पर पहाड़ के ग्लेशियर और बर्फ सभी गायब हो जाएंगे, तो बर्फ के नुकसान के कारण सीधे अतिरिक्त गर्मी (वार्मिंग) होगी। गर्मियों में आर्कटिक की बर्फ के पिघलने के कारण 0.2 डिग्री तापमान अतिरिक्त होगा। विंकेलमैन कहते हैं फिर भी हमारे जलवायु के लिए हर डिग्री का दसवां हिस्सा मायने रखता है। पृथ्वी प्रणाली की प्रतिक्रिया या दुष्चक्र को रोकना पहले से कहीं ज्यादा जरूरी है।

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