आधे से अधिक बीफ खा जाते हैं 12 फीसदी अमेरिकी, पर्यावरण पर पड़ रहा हैं भारी असर

दुनिया भर की खाद्य प्रणाली हर साल 17 अरब टन ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करती है, जो मानवजनित गतिविधि द्वारा उत्पादित सभी ग्रह को गर्म करने वाली गैसों के एक तिहाई के बराबर है

By Dayanidhi
Published: Friday 24 November 2023
फोटो: विकिमीडिया कॉमन्स, माइकल सी. बर्च

एक नए अध्ययन में पाया गया है कि, मात्र 12 फीसदी अमेरिकी, देश में हर दिन खाए जाने वाले कुल बीफ का आधा हिस्सा खा जाते हैं, इसके कारण मवेशियों की खपत के बुरे प्रभाव स्वास्थ्य और दुनिया भर के पर्यावरण पर पड़ रहा है।

12 फीसदी में अधिकतर वे लोग हैं जिनकी आयु 50 से 65 वर्ष के बीच के हैं, शोधकर्ताओं का मानना है कि, नवीनतम आहार दिशा-निर्देशों के अनुसार हर दिन यह मात्रा चार औंस होनी चाहिए। हर दिन 2,200 कैलोरी का सेवन करने का मतलब, मांस, मुर्गी और अंडे का एक साथ सेवन करना है।

जर्नल न्यूट्रिएंट्स में प्रकाशित अध्ययन में सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) के राष्ट्रीय स्वास्थ्य और पोषण परीक्षा सर्वेक्षण के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया। जिसमें 24 घंटे के दौरान 10,000 से अधिक वयस्कों के आहार पर नजर रखी गई। दुनिया भर की खाद्य प्रणाली हर साल 17 अरब टन ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करती है, जो मानवजनित गतिविधि द्वारा उत्पादित सभी तरह के धरती को गर्म करने वाली गैसों के एक तिहाई के बराबर है।

अध्ययन में कहा गया है कि, ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के लिए बीफ उद्योग सबसे अधिक जिम्मेवार है, यह चिकन की तुलना में आठ से 10 गुना अधिक उत्सर्जन करता है और बीन्स की तुलना में 50 गुना अधिक उत्सर्जन करता है।

अध्ययनकर्ताओं ने पर्यावरण पर इसके असर को देखते हुए मवेशी के मांस पर गौर किया, क्योंकि इसमें पाई जाने वाली संतृप्त वसा की मात्रा अधिक होती है, जो मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है।

अध्ययन के हवाले से शोधकर्ता रोज ने कहा कि, अध्ययन का उद्देश्य भारी मात्रा में मवेशी का मांस खाने वालों के लिए शैक्षिक कार्यक्रमों या जागरूकता अभियानों को आगे बढ़ाने में सहायता करना है। बीफ उत्पादन के पर्यावरणीय प्रभाव के बारे में जानकारी देना ऐसे समय में महत्वपूर्ण है जब जलवायु परिवर्तन के बारे में जागरूकता पहले से कहीं अधिक है।

रोज ने कहा कि हम सभी आश्चर्यचकित थे कि, मवेशी के मांस की इतनी अधिक खपत के लिए कुछ प्रतिशत लोग ही जिम्मेदार हैं।

रोज ने कहा, एक तरफ, अगर मवेशी के मांस की आधी खपत के लिए केवल 12 फीसदी हिस्सेदारी है, तो आप उन 12 फीसदी को शामिल कर कुछ बड़ा फायदा कर सकते हैं। दूसरी ओर वे 12 फीसदी परिवर्तन के प्रति सबसे अधिक प्रतिरोधी हो सकते हैं।

अध्ययन में यह भी पाया गया कि जो लोग भारी मात्रा में मवेशी के मांस के उपभोक्ता नहीं थे, उन्होंने यूएसडीए की मायप्लेट खाद्य मार्गदर्शन प्रणाली को देखने की अधिक संभावना जताई थी।

यह इस बात की जानकारी दे सकता है कि आहार संबंधी दिशा-निर्देशों का संपर्क खाने के व्यवहार को बदलने में एक प्रभावी उपकरण हो सकता है। लेकिन यह भी सच हो सकता है कि जो लोग स्वस्थ या टिकाऊ खाने के तरीकों के बारे में जानते थे, वे आहार दिशा-निर्देश उपकरणों के बारे में भी उनके अधिक जागरूक होने की संभावना थी। 

किसी भी दिन खाए गए मवेशी के मांस में से, लगभग एक तिहाई स्टेक या ब्रिस्केट जैसे मवेशी से आया था। लेकिन शीर्ष 10 स्रोतों में से छह मिश्रित व्यंजन थे जैसे बर्गर, बरिटोस, टैकोस, मीटलोफ या मीट सॉस के साथ स्पेगेटी। इनमें से कुछ खाद्य पदार्थ भारी मात्रा में बीफ खाने वालों को अपनी आहार संबंधी आदतों को बदलने का आसान अवसर प्रदान कर सकते हैं।

अध्ययनकर्ता ने कहा यदि आपको विकल्प मिल रहा है, तो आप बीफ के बजाय आसानी से चिकन मांग सकते हैं।

29 वर्ष से कम और 66 वर्ष से अधिक आयु वालों के बड़ी मात्रा में बीफ खाने की संभावना कम थी। रोज ने कहा कि इससे पता चलता है कि युवा पीढ़ी जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में अधिक रुचि ले रही है।

रोज ने कहा, युवा पीढ़ी में आशा है, क्योंकि यह उनकी धरती है जो उन्हें विरासत में मिलने वाली है। हमने अपनी कक्षाओं में देखा है कि वे आहार में रुचि रखते हैं, यह पर्यावरण को कैसे प्रभावित करता है और वे इसके बारे में क्या कर सकते हैं।

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