स्टील और सीमेंट क्षेत्र से होने वाले उत्सर्जन को बिना कीमत बढ़ाए किया जा सकता है कम

विश्लेषण में यह भी सामने आया है कि कीमतों में वृद्धि किए बिना भी स्टील उत्सर्जन को 25 फीसदी और सीमेंट क्षेत्र से होने वाले उत्सर्जन को 32 फीसदी तक कम किया जा सकता है

By Lalit Maurya
Published: Wednesday 25 October 2023
मथुरा में मालगाड़ी से सीमेंट की बोरियां उतारते मजदूर; फोटो: आईस्टॉक

भारत में यदि स्टील और सीमेंट उद्योग को शुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करना है, तो उसके लिए इन क्षेत्रों में 47 लाख करोड़ रुपए (62,700 करोड़ डॉलर) के अतिरिक्त निवेश (कैपेक्स) की जरूरत होगी। साथ ही शुद्ध शून्य उत्सर्जन की दिशा में आगे बढ़ने के लिए इन दोनों क्षेत्रों को सालाना एक लाख करोड़ रुपए के अतिरिक्त परिचालन खर्च (ओपेक्स) की भी आवश्यकता होगी।

यह जानकारी काउंसिल आन एनर्जी, इनवायरनमेंट एंड वाटर (सीईईडब्ल्यू) द्वारा जारी दो रिपोर्ट “इवैल्युएटिंग नेट-जीरो फार द इंडियन स्टील इंडस्ट्री” और “इवैल्युएटिंग नेट-जीरो फार द इंडियन सीमेंट इंडस्ट्री” से सामने आई है। बता दें कि यह अपनी तरह के पहले अध्ययन हैं जो इन दोनों उद्योगों को उत्सर्जन मुक्त बनाने की लागत का आंकलन करते हैं।

गौरतलब है कि भारत स्टील और सीमेंट उत्पादन के मामले में दुनिया में दूसरे स्थान पर है। इसमें कोई शक नहीं कि यह दोनों क्षेत्र देश के आर्थिक विकास में बेहद अहम भूमिका निभाते हैं, लेकिन साथ ही यह भी नहीं भूलना चाहिए कि यह दोनों क्षेत्र बड़े पैमाने पर होने वाले उत्सर्जन के लिए भी जिम्मेवार हैं, जो देश के जलवायु लक्ष्यों को हासिल करने में एक बड़ी बाधा है।

विश्लेषण में यह भी सामने आया है कि कीमतों में वृद्धि किए बिना भी स्टील उत्सर्जन को 8 से 25 फीसदी और सीमेंट क्षेत्र से होने वाले उत्सर्जन को 32 फीसदी तक कम करना संभव है। रिपोर्ट के मुताबिक यह वेस्ट-हीट रिकवरी (यानी बर्बाद होने वाली हीट को दोबारा प्राप्त करके) और ऊर्जा के बेहतर उपयोग संबंधी कुशल तकनीकों की मदद से किया जा सकता है।

इतना ही नहीं देश में स्टील और सीमेंट उद्योगों द्वारा संयुक्त रूप से किए जा रहे कार्बन उत्सर्जन में 33 फीसदी की कमी मुमकिन है। हालांकि इसके लिए कैपेक्स में केवल साढ़े आठ फीसदी और ओपेक्स में सालाना 30 फीसदी की अतिरिक्त वृद्धि करनी होगी। रिसर्च के मुताबिक यह कमी कार्बन कैप्चर की आवश्यकता के बिना भी हासिल की जा सकती है। हालांकि इसके लिए वैकल्पिक ईंधन और कच्चे माल की उचित आपूर्ति की जरूरत होगी।

इस बारे में काउंसिल आन एनर्जी, इनवायरनमेंट एंड वाटर के सीईओ डॉक्टर अरुणाभा घोष का कहना है कि, "भारत के इस्पात और सीमेंट उद्योग से होने वाले कार्बन उत्सर्जन में कमी करने से न केवल देश को अपने जलवायु लक्ष्यों को हासिल करने में मदद मिलेगी, बल्कि ये उद्योग वैश्विक बाजार में अधिक भी प्रतिस्पर्धी बनेंगे। साथ ही इससे उद्योगों को ऐसे भविष्य के लिए तैयार होने में मदद मिलेगी, जहां पर्यावरण और उत्सर्जन से जुड़े नियम लगातार सख्त हो रहे हैं।"

कैसे हासिल किया जा सकता हैं इन उद्योगों द्वारा शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य

सीईईडब्ल्यू द्वारा जारी रिपोर्ट से पता चलता है कि 2021-22 में, भारतीय इस्पात उद्योग ने कच्चे स्टील के उत्पादन के दौरान 29.7 करोड़ टन कार्बन डाइ-आक्साइड (सीएओ2) उत्सर्जित किया था।

इस आधार पर भारतीय स्टील उद्योग द्वारा प्रति टन कच्चे स्टील की एवज में किए जा रहे उत्सर्जन को देखें तो वो करीब 2.36 टन कार्बन डाइआक्साइड के बराबर बैठता है। जो प्रति टन स्टील के लिए किए जा रहे वैश्विक औसत उत्सर्जन 1.89 टन सीओ2 से कहीं ज्यादा है। ऐसे में जैसे-जैसे उत्सर्जन सीमा और सख्त होती जाएगी, देश में स्टील उत्पादन की लागत बढ़ जाएगी।

रिपोर्ट के मुताबिक भविष्य में उत्सर्जन-मुक्त स्टील की उत्पादन लागत, मौजूदा लागत की तुलना में 40 से 70 फीसदी तक बढ़ सकती है। जो उत्पादन के लिए उपयोग की जा रही विधियों, तकनीकों और कार्बन कैप्चर, उपयोग और भंडारण (सीसीयूएस) की लागत जैसे कारकों पर निर्भर करेगी।

स्टील इंडस्ट्री के उत्सर्जन को कम करने के लिए सीसीयूएस की भूमिका अहम है जो संभावित रूप से क्षेत्र के कुल उत्सर्जन में 56 फीसदी की कटौती कर सकता है। हालांकि यह अभी प्रारंभिक चरण में है और इसे व्यवहार में लाने से पहले बड़े पैमाने पर जांच की आवश्यकता है।

वहीं भारतीय सीमेंट उद्योग की बात करें तो वो ऊर्जा उपयोग के मामले में अत्यधिक दक्ष है। हालांकि जीवाश्म ईंधन के उपयोग के अलावा, जिस तरह से चूना पत्थर को प्रोसेस किया जाता है, उसके कारण उत्सर्जित होता कार्बन चिंता का विषय है। यदि 2018-19 के आंकड़ों को देखें तो भारत ने कुल 33.7 करोड़ टन सीमेंट का उत्पादन किया था, जिसकी वजह से कुल 21.8 करोड़ टन सीओ2 उत्सर्जित हुई थी। रिपोर्ट की मानें तो कार्बन उत्सर्जन का बेहतर प्रबंधन इस उत्सर्जन के एक महत्वपूर्ण हिस्से को कम कर सकता है, लेकिन ऊर्जा दक्षता में सुधार, वैकल्पिक ईंधन और सामग्रियों के साथ-साथ क्लिंकर पर ध्यान देने जैसे विकल्पों की तुलना में वो कहीं ज्यादा महंगा है।

इस अध्ययन से पता चला है कि भारत में करीब 50 फीसदी सीमेंट संयंत्रों को कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (सीसीएस) के लिए सीओ2 पाइपलाइनों तक पहुंच की आवश्यकता होती है। इन पाइपलाइनों को मौजूदा प्राकृतिक गैस की पाइपलाइनों के साथ बनाया जा सकता है। इन सीओ2 पाइपलाइनों के बिना, सीमेंट संयंत्र सीसीएस लागू नहीं कर सकते।

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