एसओई 2021: कोरोना महामारी में जन्मे बच्चों पर 2040 तक दिखेगा असर

स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरमेंट 2021 रिपोर्ट में कोरोना महामारी के दौरान पैदा हुए बच्चों के भविष्य पर चिंता जताई गई है

By Raju Sajwan
Published: Monday 01 March 2021
कोविड-19 महामारी का सबसे बुरा प्रभाव बच्चों पर पड़ने वाला है। फोटो: विकास चौधरी

बेशक कोरोनावायरस संक्रमण से होने वाली बीमारी कोविड-19 सीधे तौर पर बच्चों और गर्भवती महिलाओं को प्रभावित नहीं कर रही है, लेकिन यह वैश्विक महामारी अगर सबसे अधिक प्रभावित करेगी तो बच्चों और गर्भवती महिलाओं के पेट में पल रहे बच्चों को ही करेगी। इस दौरान पैदा हो रहे बच्चों और पांच साल तक के बच्चों को महामारी पीढ़ी के नाम से जानी जाएगी और इस पीढ़ी को इस महमाारी का दंश झेलना होगा। 

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट व डाउन टू अर्थ के सालाना विशेषांक स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरमेंट (एसओई) 2021 में एक अध्याय में इस पीढ़ी पर विस्तार से लिखा गया है। 

इस अध्याय के लेखक रिचर्ड महापात्रा लिखते हैं कि एक जनवरी 2020 को दुनिया में 4 लाख बच्चों का जन्म हुआ। इनमें से 67,385 बच्चों ने भारत में जन्म लिया। संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) ये आंकड़े एकत्र करता है। ताकि दुनिया का ध्यान बच्चों के स्वास्थ्य व विकास की ओर खींचा जा सके। लेकिन इससे ठीक एक दिन पहले यानी 31 दिसंबर 2019 को चीन ने वुहान में कोरोना वायरस का पहला मामला दर्ज किया और धीरे-धीरे कोरोनावायरस पहले चीन और फिर दुनियाभर में फैलने लगा। भारत में 30 जनवरी 2020 को पहला मामला दर्ज किया गया और 11 फरवरी 2020 को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इस बीमारी का नाम कोविड-19 घोषित कर दिया।

अनुमान है कि एक जनवरी 2020 से लेकर 31 दिसंबर 2020 के बीच भारत में लगभग 2.5 करोड़ बच्चों ने जन्म लिया। यानी कि इस महामारी के दौरान इन बच्चों ने जन्म लिया। इसका मतलब यह है कि भारत में 14 साल तक की उम्र के बच्चों की संख्या लगभग 3.5 करोड़ हो जाएगी, जिन पर यह महामारी जीवन भर के लिए अपना असर छोड़ सकती है। जो 2040 तक कामकाजी आबादी का लगभग 46 फीसदी होगा।

रिचर्ड महापात्रा हाल ही में पीव रिसर्च सेंटर की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहते हैं कि पीढ़ी की सामान्य परिभाषा के मुताबिक 15 से 25 साल की उम्र के लोगों को एक पीढ़ी कहा जाता है। उदाहरण के लिए 1991 में जब भारत में आर्थिक उदारीकरण का दौर शुरू हुआ था, उसके बाद जन्म लेने वाले बच्चों को मुक्त व्यापार पीढ़ी कहा जाता है। इसलिए 2020 में पांच साल तक की उम्र के बच्चों को महामारी पीढ़ी कहा जा सकता है।

यूनिसेफ के आंकड़े बताते हैं कि कोविड-19 महामारी की वजह से लगभग 91 फीसदी बच्चों की शिक्षा प्रभावित हुई है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस महामारी का सबसे अधिक प्रभावित यही पीढ़ी हो रही है या होगी।

भारत की बात करें तो कोविड-19 महामारी की वजह से सरकार द्वारा स्कूलों में दिए जाने वाले भोजन से बच्चे वंचित रहे, जबकि यूनिसेफ के आंकड़े बताते हैं कि लगभग 11.9 करोड़ बच्चों को जीवन बचाने वाली वैक्सीन या इलाज नहीं मिल पाया। इंग्लैंड के एक स्वयंसेवी संगठन सेव दी चिल्ड्रन की सर्वे रिपोर्ट बताती है कि 50 फीसदी बच्चे दुखी दिखाई दिए, इनमें से एक तिहाई बच्चे डरे हुए थे। 

हालांकि इस दौरान पैदा होने वाली नई पीढ़ी इस समय को हमारी तरह याद नहीं रखेगी, लेकिन क्या यह पीढ़ी सामान्य होगी और इस महामारी को केवल अपनी किताबों में ही पढ़ेगी? जैसे कि हम 1918-20 की स्पेनिश फ्लू महामारी के बारे में पढ़ते रहे हैं। इस तरह के सवालों का जवाब तलाशने से पहले हमें इतिहास की कुछ घटनाओं के बारे में जरूर पता होना चाहिए।

2008 की आर्थिक मंदी के दौरान गरीब परिवार की गर्भवती महिलाओं के पेट में पल रहे बच्चे कमजोर व ठिगने पैदा हुए। 1998 में अल नीनो की वजह से दक्षिण अमेरिका के देश इक्वाडोर में आई बाढ़ के बाद पैदा हुए बच्चे अगले पांच से सात साल तक कमजोर, ठिगने और कम वजह के थे। इस तरह की आपदाओं में एक समान बात यह रही कि इनकी वजह से आर्थिक संकट पैदा हुआ। इनसे अंदाजा लगाया जा सकता है कि कोविड-19 महामारी के दौरान या पेट में पल रहे बच्चों पर क्या असर पड़ने वाला है। बल्कि इस तरह के प्राथमिक संकेत मिलने भी लगे हैं। 

हाल ही में विश्व बैंक द्वारा जारी मानव पूंजी सूचकांक (ह्यूमन कैपिटल इंडेक्स) में कहा गया है कि 2040 की वयस्क पीढ़ी ठिगनी रहेगी। इस सूचकांक का आकलन आज पैदा हुए बच्चे के 18 साल तक की उम्र के दौरान मिलने शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं के उनके विकास के आधार पर किया जाता है। 

महापात्रा कहते हैं कि बेशक कोविड-19 की वजह से गर्भवती महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य पर असर नहीं पड़ेगा, लेकिन महामारी की वजह से पैदा हुए आर्थिक संकट का असर इन पर जरूर पड़ेगा। इसका कारण यह है कि इस दौरान गरीब परिवार स्वास्थ्य, खानपान और शिक्षा पर खर्च नहीं कर पाएंगे। ऐसे में, बाल मृत्यु दर अधिक हो सकती है या जो बच्चे जीवित रह जाएंगे, उनके ठिगने रहने की आशंका है। 

विश्व बैंक के मानव पूंजी सूचकांक के मुताबिक लो इनकम और मिडल इनकम वाले 118 देशों में बाल मृत्यु दर में 45 फीसदी की वृद्धि होगी। विश्लेषण बताते हैं कि प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 10 फीसदी तक वृद्धि हो तो नवजात शिशु मृत्यु दर में 4.5 फीसदी तक कमी लाई जा सकती है। हालांकि अनुमान बताते हैं कि ज्यादातर देशों में कोविड-19 महामारी के कारण जीडीपी में नुकसान हो रहा है। 

अक्टूबर 2020 में संयुक्त राष्ट्र की विभिन्न एजेंसियों ने एक संयुक्त रिपोर्ट में ऐसे बच्चों का आंकड़ा जारी किया, जो गर्भ में 28 सप्ताह या उससे अधिक समय तक रहने के बावजूद मर गए। इन आंकड़ों के मुताबिक, 2019 में दुनिया में ऐसे मृत बच्चों की संख्या 19 लाख थी, इसमें से सबसे अधिक (3.4 लाख) भारत में थे। हालांकि सबसे अधिक संख्या होने के बावजूद भारत में ऐसे मृत बच्चों की संख्या में पिछले सालों के मुकाबले कमी आई। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना काल के दौरान कम आमदनी वाले 119 देशों में लगभग दो लाख मृत बच्चों ने जन्म लिया। 

वहीं, जुलाई 2020 में ग्लोबल हेल्थ साइंस जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया कि भारत में लॉकडाउन के दौरान खाना न मिलने के कारण बच्चों में कुपोषण बढ़ा। यह अध्ययन उचित आहार न मिलने के कारण बच्चों के वजन कम होने के बारे में भी बताता है। इसके मुताबिक, बच्चों का 5 फीसदी वजन कम हुआ। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में कम वजन वाले बच्चों की संख्या 43,93,178 और लंबाई के मुकाबले कम वजन वाले बच्चों की संख्या 51,40,396 है। इस मामले में बिहार, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश सबसे अधिक प्रभावित राज्य हैं। 

स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरमेंट के इस अध्याय में साफ तौर पर कहा गया है कि कोविड-19 महामारी आने वाली पीढ़ी के लिए घातक साबित होने वाली है। 

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