कोरोना महामारी के चलते शिक्षा से वंचित रह जाएंगी दक्षिण एशिया में 45 लाख बच्चियां

यूनिसेफ, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) और यूएनएफपीए ने संयुक्त रूप से एक रिपोर्ट जारी की है

By DTE Staff
Published: Thursday 18 March 2021

दक्षिण एशिया में कोरोना महामारी के प्रभाव का आंकलन करने वाली एक रिपोर्ट से पता चला है कि इस महामारी के चलते दक्षिण एशिया में करीब 45 लाख बच्चियां अपने स्कूलों में वापस नहीं लौट पाएंगी। यूनिसेफ, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) और यूएनएफपीए द्वारा यह रिपोर्ट सम्मिलित रूप से जारी की गई है।

यही नहीं भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, और श्रीलंका पर जारी की गई इस रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि कोविड-19 के चलते 42 करोड़ बच्चे अपने स्कूल नहीं जा पाए थे। गौरतलब है कि दक्षिण एशिया में कोविड-19 के अब तक 1.3 करोड़ मामले सामने आ चुके हैं जबकि इससे करीब 187,653 लोगों की जान जा चुकी है।

यदि हाल के दशकों को देखें तो दक्षिण एशिया में महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य की दिशा में उल्लेखनीय सुधार आया है। लेकिन 2020 में इस महामारी ने इस पर गहरा आघात किया है। जिसने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों रूप से इस पर असर डाला है। इसने स्वास्थ्य के लिए चलाई जा रही नियमित सेवाओं जैसे टीकाकरण आदि पर व्यापक असर डाला है।

इसका असर ने केवल शिशु मृत्युदर पर बल्कि मातृ मृत्युदर पर भी पड़ा है। रिपोर्ट के अनुसार स्वास्थ्य सेवाओं में जो व्यवधान आया है, उसके चलते 5 वर्ष से कम उम्र के करीब 228,000 बच्चों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है। वहीं मातृत्व मृत्यु के 11,000 अतिरिक्त मामले सामने आए हैं। यही नहीं मलेरिया, टीबी, एड्स और टाइफाइड से करीब 6,000 किशोरों की जान गई है, जिसे रोका जा सकता था।

अनचाहे गर्भ के सामने आए 35 लाख अतिरिक्त मामले

रिपोर्ट से पता चला है कि इस महामारी के चलते दक्षिण एशिया में अनचाहे गर्भ के करीब 35 लाख अतिरिक्त मामले सामने आए हैं जिनमें 400,000 किशोरियां भी शामिल हैं। एक तरह जहां इसके चलते बाल विवाह के मामलों में वृद्धि हुई है। साथ ही बच्चों में कुपोषण भी बढ़ा है। वहीं मातृ मृत्यु में करीब 16 फीसदी का इजाफा हुआ है।

रिपोर्ट से पता चला है कि जहां बांग्लादेश और नेपाल में इस महामारी के चलते कुपोषण का शिकार 80 फीसदी से ज्यादा बच्चों का इलाज नहीं मिल पाया था। वहीं भारत में टीकाकरण में करीब 35 फीसदी और पाकिस्तान में 65 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी। 2020 में भारत की शिशु मृत्युदर में 15.4 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई थी वहीं बांग्लादेश में 13 फीसदी की वृद्धि दर्ज हुई थी। इसी तरह श्रीलंका में मातृत्व मृत्युदर में करीब 21.5 फीसदी और पाकिस्तान में 21.3 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई थी।

दक्षिण एशिया में यूनिसेफ के क्षेत्रीय निदेशक जॉर्ज लारिया-अदजेई के अनुसार, इन जरुरी सेवाओं के ठप्प पड़ जाने का सबसे ज्यादा असर गरीब और कमजोर तबके के स्वास्थ्य और पोषण पर पड़ा है। उनके अनुसार यह जरुरी है शिशुओं और माताओं के लिए उन सेवाओं को पूरी तरह से बहाल किया जाए, जिनकी उन्हें सख्त जरुरत है। साथ ही इस बात के पूरे प्रयास किए जाएं कि वो इन सेवाओं का इस्तेमाल करते समय अपने आप को सुरक्षित महसूस करें।

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