2024 में भी मौजूद है ब्लैक डेथ के नाम से बदनाम ब्यूबोनिक प्लेग, जानिए क्यों है इसका इतना खौफ

ब्लैक डेथ के नाम से बदनाम यह बीमारी ब्यूबोनिक प्लेग 14 वीं शताब्दी में यूरोप में फैली थी, जिसकी वजह से यूरोप में पांच करोड़ से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी

By Lalit Maurya
Published: Wednesday 14 February 2024
इतिहास के पन्नों से: 1890 के दशक में ग्रांट रोड हॉस्पिटल मुंबई के एक महिला वार्ड में ब्यूबोनिक प्लेग पीड़ित की देखभाल करती नर्सें; इलस्ट्रेशन: आईस्टॉक

ब्यूबोनिक प्लेग, इतिहास की एक ऐसी बदनाम बीमारी जिसका खौफ इतना की इसे 'ब्लैक डेथ' के नाम से भी जाना जाता है। साक्ष्य दर्शाते हैं कि यह बीमारी 2024 में भी मौजूद है। पिछले सप्ताह अमेरिका के ओरेगन में मानव प्लेग का एक दुर्लभ मामला सामने आया है। बता दें कि 2015 के बाद से ओरेगन में सामने आया यह ब्यूबोनिक प्लेग का पहला मामला है।

अमेरिका की डेसच्यूट्स काउंटी हेल्थ सर्विसेज ने इसकी आधिकारिक पुष्टि की है। जानकारी मिली है कि ओरेगन के एक स्थानीय निवासी में इसके लक्षण मिले हैं। स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि संभवतः वह व्यक्ति एक पालतू बिल्ली से संक्रमित हुआ था। सौभाग्य से, इस मामले का जल्द पता चल गया और उस व्यक्ति का सही समय पर इलाज किया गया है।

स्वास्थ्य अधिकारियों ने आश्वस्त किया है कि इस बीमारी के फैलने का जोखिम ज्यादा नहीं है। गौरतलब है कि ब्यूबोनिक प्लेग के मामले आज दुर्लभ हैं, लेकिन हर साल इसके कुछ न कुछ मामले सामने आते रहते हैं। आइए जानते हैं इस बीमारी से जुड़े कुछ बुनियादी सवालों के जवाब, जैसे क्या है यह ब्लैक डेथ के नाम से बदनाम ब्यूबोनिक प्लेग बीमारी? क्या हैं इस बीमारी के लक्षण? क्यों लोगों के मन में है इस बीमारी से इतना खौफ? कैसे इस बीमारी से बचा जा सकता है?

क्या है यह ब्लैक डेथ के नाम से बदनाम ब्यूबोनिक प्लेग बीमारी?

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक प्लेग एक बेहद संक्रामक बीमारी है, जो यर्सिनिया पेस्टिस नामक बैक्टीरिया के कारण होती है। यह एक जूनोटिक बैक्टीरिया है, जो आमतौर पर छोटे स्तनधारियों जैसे चूहे, बिल्ली आदि जीवों और उनके पिस्सू यानी टिक्स में पाया जाता है।

यह बीमारी संक्रमित जानवरों के बीच टिक्स के माध्यम से फैलती है, जिसकी चपेट में इंसान भी आ सकते हैं। इसी तरह संक्रमित व्यक्ति या जीवों के संपर्क में आने वाला भी इस बीमारी से संक्रमित हो सकता है। यह बैक्टीरिया इंसानी शरीर के लिंफ नोड्स (लसीका ग्रंथियां), रक्त और फेफड़ों पर हमला करता है।

डब्ल्यूएचओ के मुताबिक प्लेग के दो मुख्य प्रकार होते हैं। इनमें पहला ब्यूबोनिक, जबकि दूसरा न्यूमोनिक प्लेग होता है। हालांकि इन दोनों में ब्यूबोनिक प्लेग अधिक सामान्य है। इसका नाम इस बीमारी के कारण लिम्फ नोड्स में होने वाली सूजन (बुबोज) के कारण पड़ा है। इसकी वजह से बगल, कमर और गर्दन में गांठें हो जाती हैं।

कैसे इंसानों को अपना शिकार बनाती है यह बीमारी?

बता दें कि ब्यूबोनिक प्लेग एक प्रकार का संक्रामक रोग है, प्लेग का सबसे आम रूप है। यह यर्सिनिया पेस्टिस (वाई पेस्टिस) नामक बैक्टीरिया के कारण फैलता है। यह बैक्टीरिया छोटे स्तनधारी जीवों जैसे चूहों, गिलहरियों और उनके टिक्स की वजह से दूसरे जीवों में फैलता है। इसके बैक्टीरिया इंसानी शरीर में प्रवेश करने के बाद निकटतम लिम्फ नोड्स तक पहुंच जाते हैं, जहां यह अपनी संख्या में वृद्धि करने लगते हैं।

इनकी वजह से लिम्फ नोड में दर्द होता और वो सूज जाते हैं। इन सूजे हुए लिम्फ नोड्स को 'बुबो' कहा जाता है। जैसे-जैसे संक्रमण बढ़ता है यह सूजी हुई लिम्फ नोड्स मवाद भरे खुले घावों में बदल जाती है। जब यह स्थिति कहीं ज्यादा गंभीर रूप लेती है तो यह संक्रमण आगे बढ़कर फेफड़ों को प्रभावित करता है, इसे ही न्यूमोनिक प्लेग कहा जाता है।

क्या हैं इस बीमारी के लक्षण?

ब्यूबोनिक प्लेग के लक्षण काफी हद तक फ्लू से मिलते जुलते हैं। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक आमतौर पर इसके लक्षण संक्रमित होने के एक से सात दिनों के भीतर सामने आते हैं। इस बीमारी में मरीज को सर्दी लगना, अचानक से बुखार, कमजोरी, उल्टी, मतली और थकान के साथ-साथ लिंफ नोड्स में सूजन जैसे लक्षण सामने आते हैं। 

कितनी घातक है यह बीमारी?

प्लेग एक बहुत घातक बीमारी है। ब्यूबोनिक प्लेग में मृत्युदर 30 से 60 फीसदी के बीच रहती है। वहीं यदि सही समय पर ध्यान न दिया जाए तो न्यूमोनिक प्लेग हमेशा ही घातक होता है।

क्या एक से दूसरे व्यक्ति को हो सकता है प्लेग?

डब्ल्यूएचओ के मुताबिक इंसानों से इंसानों में होने वाले ब्यूबोनिक प्लेग के मामले बहुत ही दुर्लभ हैं। हालांकि जब किसी व्यक्ति को न्यूमोनिक प्लेग होता है तो वो संक्रमित व्यक्ति से दूसरे में फैल सकता है। खांसने से बैक्टीरिया युक्त बूंदें किसी अन्य व्यक्ति की सांस के माध्यम से शरीर में चली जाती हैं जो न्यूमोनिक प्लेग का कारण बन सकती हैं। हालांकि इसके संक्रमण के लिए पीड़ित व्यक्ति के साथ सीधा और निकट संपर्क जरूरी होगा है।

क्यों लोगों के मन में है इस बीमारी का इतना खौफ?

ब्लैक डेथ के नाम से बदनाम यह बीमारी ब्यूबोनिक प्लेग 14 वीं शताब्दी में यूरोप में फैली थी, जिसकी वजह से यूरोप में पांच करोड़ से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी। बता दें कि उस समय यात्री पानी के जहाजों से यात्रा करते थे, जिनके सामान के साथ चूहे भी चले जाते थे। यह चूहे अपने साथ टिक्स और महामारी के बैक्टीरिया भी साथ ले जाते थे। जो लोगों में इस बीमारी के फैलने का कारण बने थे।

उस समय इलाज न होने के कारण ज्यादातर संक्रमितों की मौत हो गई थी। बीमारी के कारण आमतौर पर संक्रमित लोगों के टिश्यूज पर गैंग्रीन के कारण काले निशान बन गए थे। यही वजह है कि इस महामारी को लोग ब्लैक डेथ के नाम से बुलाने लगे थे।

कहां पाया गया है प्लेग?

प्लेग एक जूनोटिक डिजीज है, ऐसे में ओशिनिया को छोड़कर सभी महाद्वीपों में इसके पाए जाने के सबूत मिले हैं। देखा जाए तो जहां भी इंसान और जानवरों की आबादी सह-अस्तित्व में है, वहां इंसानों में प्लेग का खतरा मौजूद है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार इंसानों में प्लेग मामले अफ्रीका, एशिया, यूरोप और दक्षिण अमेरिका में सामने आए हैं।

लेकिन 1990 के बाद से, अधिकांश इंसानी मामले अफ्रीका में ही दर्ज किए गए हैं। स्थानिक तौर पर इनका सबसे ज्यादा खतरा डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, मेडागास्कर और पेरू में है। मेडागास्कर में महामारी के मौसम में सितंबर से अप्रैल के बीच तकरीबन हर साल ब्यूबोनिक प्लेग के मामले सामने आते हैं। अमेरिका की बात करें तो वहां हर साल इंसानों में औसतन प्लेग के सात मामले सामने आते हैं। इनमें से 80 फीसदी ब्यूबोनिक प्लेग के होते हैं।

गौरतलब है कि भारत में भी 1994 में ब्यूबोनिक प्लेग के मामले सामने आए थे। सीडीसी के मुताबिक 26 अगस्त से पांच अक्टूबर 1994 के बीच, भारत के आठ राज्यों में न्यूमोनिक या ब्यूबोनिक प्लेग के कुल 5,150 संदिग्ध मामले सामने आए थे। इनकी वजह से 53 मौतें भी दर्ज की गईं थी। इसमें से 54 फीसदी मामले महाराष्ट्र में, 27 फीसदी गुजरात, 14.5 फीसदी दिल्ली में जबकि बाकी 169 मामले (3.3%) आंध्रप्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में रिकॉर्ड किए गए थे।

कैसे इस बीमारी से बचा जा सकता है?

बता दें कि ब्यूबोनिक प्लेग एक बैक्टीरियल इंफेक्शन है, जिसका इलाज एंटीबायोटिक दवाओं के जरिए संभव है। हालांकि इस बीमारी का अब तक कोई टीका उपलब्ध नहीं है। ऐसे में इससे बचाव ही निपटने का सबसे बेहतर तरीका है।  इससे बचाव के लिए लोगों को सही समय पर उनके क्षेत्र में जूनोटिक प्लेग की मौजूदगी के बारे में सूचित करना। टिक्स के काटने से बचने के लिए सावधानी बरतने की सलाह देना।

इसी तरह मृत जानवरों के शरीर का जल्द से जल्द निपटान करना और संक्रमित के निकट संपर्क से दूर रहना महत्वपूर्ण है। साथ ही संभावित मरीजों की देखभाल या नमूने एकत्र करते समय दिशानिर्देशों को ध्यान में रखते हुए सावधानियां बरतनी चाहिए।

इससे बचाव के लिए जल्द से जल्द संक्रमण के स्रोत का पता लगाना और उसे फैलने से रोकना महत्वपूर्ण है। सही इलाज, स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा, गंभीर संक्रमण की स्थिति में रोगी को दूसरे मरीजों से दूर रखना और उनकी निगरानी जरूरी है।

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