क्या आईसीएमआर के आंकड़े सामुदायिक संक्रमण का संकेत दे रहे हैं?

आईसीएमआर के आंकड़े बताते हैं कि जब सांस के मरीजों की जांच बढ़ाई गई तो ऐसे मरीजों का पता चला, जिन्होंने विदेश यात्रा नहीं की थी और न ही वे किसी पॉजीटिव मरीज के संपर्क में आए थे

By Banjot Kaur
Published: Friday 10 April 2020

15 फरवरी से अब तक, देश के 20 राज्यों में नोवेल कोरोनोवायरस पॉजिटिव मरीजों में से 40 प्रतिशत मरीज सीवियर सांस के गंभीर रोगी ( सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी डिजिज (एसएआरआई) से ग्रस्त थे और इनका कोई अंतरराष्ट्रीय यात्रा या संपर्क इतिहास नहीं पाया गया। यह महत्वपूर्ण तथ्य 9 अप्रैल को इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च द्वारा जारी एक पेपर से सामने आया है।

नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर केन्द्र सरकार की एक संस्था की एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने कहा, "ये कोई महत्वपूर्ण बात नहीं है कि मंत्रालय इसे पारिभाषित करने के लिए किस स्थानीयकृत या बड़ी महामारी जैसे शब्द का उपयोग करता है। महत्वपूर्ण बात ये है कि यह संख्या स्पष्ट रूप से संकेत दे रही है कि कोरोना संक्रमण समुदाय में फैल रहा है। यात्रा या संपर्क इतिहास समुदाय में फैलते संक्रमण का संकेत नहीं है।”

निष्कर्ष बताते हैं कि सभी एसएआरआई रोगियों में से 2 प्रतिशत का एक पुष्ट हो चुके मरीज के साथ संपर्क था, 1 प्रतिशत का अंतरराष्ट्रीय यात्रा इतिहास था और लगभग 57 प्रतिशत मामलों में संक्रमण के स्त्रोत का पता नहीं चल सका।

ये महत्वपूर्ण है कि आईसीएमआर ने परीक्षण दायरे का विस्तार किया और 20 मार्च को सभी एसएआरआई रोगियों को भी इसमें शामिल करने के लिए दिशानिर्देशों को संशोधित किया। इससे पहले, केवल वही परीक्षण के पात्र थे जिनका अंतर्राष्ट्रीय यात्रा या कोई संपर्क इतिहास था। यानी, भारत में कोविड-19 पॉजिटिविटी के लिए एसएआरआई रोगी संवेदनशील हैं। कुल मिलाकर, 1।8 प्रतिशत ऐसे मरीज सार्स-सीओवी-2 पॉजिटिव पाए गए हैं।

रिसर्च पेपर में कहा गया है कि इन रोगियों के बीच पॉजीटिविटी रेट 14 मार्च तक 0 प्रतिशत था जो 2 अप्रैल तक बढ़कर 2.6 प्रतिशत हो गया। रिसर्च पेपर के मुताबिक, 8 फरवरी से 14 मार्च के बीच, इन रोगियों में संक्रमण सकारात्मकता दर शून्य थी। मार्च 15 से मार्च 21 के बीच यह बढ़कर 1.9 प्रतिशत, मार्च 22 से मार्च 28 के बीच 1.7 प्रतिशत और 29 मार्च से 2 अप्रैल के बीच 2.6 प्रतिशत हो गया।

वैज्ञानिक ने डाउन टू अर्थ को बताया,“इससे पता चलता है कि यह बीमारी भारत में अभी आई है। इसलिए एसएआरआई रोगियों में पॉजीटिव मरीजों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ रही है। यह स्पष्ट संदेश है कि अब हमें वायरस के खिलाफ अपने प्रयास तेज करने होंगे।” आंकड़ों के इस विशेष सेट से यह भी पता चलता है कि जितने रोगियों का परीक्षण किया गया था, पॉजीटिव मरीजों की दर में भी उतनी ही वृद्धि दर्ज की गई थी। यानी, नमूना कम तो दर कम और नमूना ज्यादा तो दर अधिक।

अब वे सभी एसएआरआई मरीज, जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय यात्रा या संपर्क इतिहास के बिना कोविड-19 पॉजिटिव पाया गया है, वे 15 राज्यों के 36 जिलों में बिखरे हुए हैं। रिसर्च पेपर बताता है कि कोविड-10 रोकथाम गतिविधियों को इन्हीं जगहों पर बढ़ाना है लेकिन यह ये नहीं बताता कि वे जिले या राज्य कौन से हैं। वैज्ञानिक ने कहा, "बेहतर सांख्यिकीय विश्लेषण के लिए हमें यह जानना होगा कि वे कौन से जिले हैं।"

इसमें जिलेवार पॉजीटिव मरीजों की दर नहीं दिखाई गई है, लेकिन राज्यवार चर्चा की गई है। पॉजीटिव पाए जाने वाले एसएआरआई के सबसे ज्यादा 11 प्रतिशत मरीज त्रिपुरा के हैं। त्रिपुरा के अलावा पांच शीर्ष राज्यों / संघ राज्य क्षेत्रों का विवरण नीचे दिया गया है:

बैंगलोर स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ में महामारी विज्ञान के प्रमुख ने डाउन टू अर्थ से कहा,“मेरे लिए यह डेटा चिंताजनक नहीं है, लेकिन ये साफ है कि एसएआरआई रोगियों की निगरानी को अधिक व्यापक बनाना होगा। वर्तमान में, केवल सरकारी अस्पतालों को चुना गया है। इसका विस्तार न केवल अन्य अस्पतालों तक बल्कि अस्पताल में भर्ती न हुए मरीजों के लिए भी किया जाना है। इसके अलावा, सैंपल साइज बढाया जाना चाहिए। इसका अर्थ ये भी नहीं है कि अंधाधुंध परीक्षण हो। यदि आप बुखार या कोविड-19 के अन्य लक्षणों वाले प्रत्येक व्यक्ति का परीक्षण नहीं करना चाहते हैं, तो भी कम से कम उनके प्रतिनिधि नमूनों की जांच करनी होगी। अब उन्हें परीक्षण नेट से बाहर नहीं रखा जा सकता है।”

ये डेटा मरीजों को उम्र और लिंग के हिसाब से भी विवरण देती है। पुरुष और महिला एसएआरआई रोगियों में सकारात्मकता दर क्रमशः 2.3 प्रतिशत और 0.8 प्रतिशत थी। वहीं, 50-59 वर्ष की आयु के लोगों में उच्चतम सकारात्मकता दर (4.9 प्रतिशत) पाई गई और 40-45 वर्ष की आयु के रोगियों में ये 2.9 प्रतिशत थी।

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