ग्राउंड रिपोर्ट : कोरोना संक्रमण की जद में उत्तराखंड के पहाड़ों में बसे गांव, बीते 40 दिन में 42 फीसदी मामले बढ़े

उत्तराखंड के सिर्फ शहरी ही नहीं बल्कि पहाड़ों में बसे गांवों में कोरोना संक्रमण बहुत वेग से बढ़ रहा है। कोरोना संक्रमण ने इन गांवों के सन्नाटे को और डरावना बना दिया है। 

By Trilochan Bhatt
Published: Thursday 13 May 2021
Photo : रुद्रप्रयाग जिले का भटवाड़ी गांव जहां कटेंनमेंट जोन घोषित किया गया : त्रिलोचन भट्ट

उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के अगस्त्यमुनि ब्लाॅक का सुदूरवर्ती भटवाड़ी गांव को कटेंनमेंट जोन में रखा गया है। करीब 100 परिवारों का यह गांव राज्य के उन गांवों में शामिल है, जिन पर पलायन की मार सबसे ज्यादा पड़ी है। गांव में केवल 25 ऐसे परिवार हैं जिनके एक-दो सदस्य नियमित रूप से यहां रह रहे हैं। पलायन के कारण आमतौर पर गांव में सन्नाटा पसरा रहता है, लेकिन इन दिनों गांव का यह सन्नाटा पहले से ज्यादा घना हो गया है।

पिछले महीने गांव में आयोजित एक सामूहिक धार्मिक समारोह में गांव के कई लोग कुछ दिनों के लिए वापस लौटे और कोविड  की सौगात छोड़कर लौट गये। गांव में अब करीब 60 लोग हैं और इसमें से 33 कोविड-19 पाॅजिटिव हैं। जिला प्रशासन ने इस गांव को कंटेनमेंट जोन घोषित किया है। गांव से लगते मोटर मार्ग पर पुलिस का पहरा है और किसी को भी अपने घर से बाहर निकलने की इजाजत नहीं है। इस दौरान गांव में पिछले कुछ दिनों में तीन लोगों की मौत हुई है। हालांकि वे कोविड संक्रमित थे या नहीं इसका जवाब न गांव वालों के पास है और न ही प्रशासन के पास। बीमार होने के बावजूद उनका सैंपल टेस्ट नहीं हो पाया था।

यही स्थिति भटवाड़ी से लगे हुए मणिगुह गांव की भी है। धार्मिक समारोह में मणिगुह गांव भी शामिल था। सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस गांव में 41 लोग संक्रमित हैं। इस गांव को भी कंटेनमेंट जोन घोषित किया गया है। मणिगुह में एक कोविड संक्रमित व्यक्ति की मौत होने की सूचना है।

मणिगुह और भटवाड़ी राज्य के उन 172 गांवों अथवा तोकों में शामिल हैं, जहां लोगों का टेस्ट किया गया है और बड़ी संख्या में पाॅजिटिव मामले सामने आने के बाद उन्हें कंटेनमेंट जोन घोषित किया गया है। जमीनी सच्चाई यह है कि राज्य का कोई भी गांव ऐसा नहीं है, जहां हर घर के सभी सदस्य या कोई न कोई सदस्य बुखार और खांसी सहित दूसरे कोविड जैसे लक्षणों की चपेट में न हांे। लोग इसे मौसमी बुखार बता रहे हैं। जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग को लगातार लोगों के बीमार होने की सूचना दी जा रही है, लेकिन इस सुदूरवर्ती जिले में फिलहाल लोगों के टेस्ट करने और उन तक दवाइयां पहुंचाने की कोई व्यवस्था नहीं है।
 
रुद्रप्रयाग जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी और जिला अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक सहित ज्यादातर डाॅक्टर खुद कोविड पाॅजिटिव हो गये हैं। जिले के दो विधायकों में से एक भी हाॅस्पिटल में भर्ती हैं। दूसरे विधायक केदारनाथ विधानसभा क्षेत्र के मनोज रावत स्वीकार करते हैं कि क्षेत्र में ज्यादातर गांवों में लोग बुखार, खांसी, जुकाम और पेचिश जैसे बीमारियों की चपेट में हैं। उन्होंने अपनी विधायक निधि से 2 करोड़ रुपये दवाइयों और अन्य जरूरी चीजों पर खर्च करने की बात कही है, लेकिन पूरा स्वास्थ्य महकमा ही बीमार पड़ा है तो दवाइयां लोगों तक पहुंचाएगा कौन, यह सबसे बड़ा सवाल खड़ा हो गया है।

भटवाड़ी गांव के सामाजिक कार्यकर्ता अनुपम भट्ट का कहना है कि दोनों गांवों में सिर्फ एक-एक दिन प्रशासन और हेल्थ विभाग की टीम ने लोगों के सैंपल लिये थे। उसके बाद कई ऐसे लोग भी बीमार हुए, जो टेस्ट में नेगेटिव आये थे। लेकिन, ऐसे लोगों के दुबारा सैंपल लेने की कोई व्यवस्था नहीं की गई। पाॅजिटिव आने वाले लोगों को प्रशासन की ओर से कोविड प्रोटोकाॅल की आधी-अधूरी दवाइयां, कुछ मास्क और एक सेनेटाइजर पकड़ा कर अपने दायित्वों की पूर्ति कर दी गई। दोनों गांवों में कुछ पुलिस वालों को तैनात करके लोगों को घरों से बाहर निकलने पर रोक लगा दी गई है। लोगों की दैनिक जरूरत की चीजों की आपूर्ति के साथ ही जरूरत पड़ने पर दवाइयों आदि की भी कोई व्यवस्था नहीं है। दोनों गांवों में किसी के पास एक थर्मामीटर और ऑक्सीमीटर तक की व्यवस्था नहीं है। किसी मरीज की तबीयत ज्यादा बिगड़ने पर उसे अस्पताल तक पहुंचाना भी कठिन हो गया है।

मणिगुह और भटवाड़ी गांव तो सिर्फ उदाहरण हैं। राज्य के ज्यादातर कंटेनमेंट घोषित किये गये गांवों में यही स्थिति है। इससे भी ज्यादा बुरी स्थिति उन गांवों में है, जहां ज्यादातर लोग खांसी और बुखार की चपेट हैं, लेकिन न तो कोविड टेस्ट की व्यवस्था है और न दवाइयों की। कोरोना कफ्र्यू के कारण अस्पताल तक पहुंचने के लिए भी कोई वाहन नहीं मिल रहा है।
 
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में पिछले वर्ष 15 मार्च को पहला कोविड पाॅजिटिव मरीज सामने आया था तो उस समय आमतौर पर माना जा रहा था कि यह बीमारी राज्य के मैदानी क्षेत्रों तक ही सीमित रहेगी। पहले दो महीनों में ऐसा हुआ भी। जून 2020 तक राज्य के पर्वतीय जिले कोविड से मुक्त रहे। लाॅकडाउन में घरों से बाहर फंसे लोगों को घर जाने की अनुमति मिलने के साथ ही देशभर के विभिन्न शहरों में लोग अपने गांव लौटने लगे और इसी के साथ कोविड ने पहाड़ों में दस्तक देनी शुरू कर दी।

इस वर्ष मार्च तक भी पहाड़ों में स्थिति आमतौर में नियंत्रण में थी। पाॅजिटिव मरीजों और मरने वालों की संख्या बहुत ज्यादा नहीं थी। लेकिन, एक अप्रैल के बाद से पहाड़ों में मरीजों और मरने वालों की संख्या ऐसे बढ़ी कि स्थितियां बेकाबू होती नजर आने लगी हैं। सरकारी आंकड़ों पर ही विश्वास करें तो 2 अप्रैल से 12 मई के बीच 40 दिनों में राज्य के पहाड़ी जिलों में पाॅजिटिव मरीजों और मरने वालों की संख्या में करीब 42 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2 अप्रैल 2021 को उत्तराखंड के 9 पहाड़ी जिलों में कोविड पाॅजिटिव मरीजों की संख्या 29396 थी जो 12 मई 2021 को 68456 हो गई है। यानी कि पिछले 40 दिनों में राज्य के पहाड़ी जिलों में हर रोज 977 नये कोविड मरीज सामने आये हैं। पहाड़ी जिलों में कोविड से मरने वालों की संख्या में भी पिछले 40 दिनों में 42.9 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। 2 अप्रैल को जहां मरने वालों का आंकड़ा 248 था, वहीं अब यह संख्या 590 है। यानी हर रोज राज्य के पहाड़ी जिलों में करीब 9 कोविड मरीजों की मौत हो रही है।

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