कोरोना संकट से मुकाबले के लिए विकासशील देशों को चाहिए 2.5 लाख करोड़ डॉलर

विकासशील देशों के एक लाख करोड़ (एक ट्रिलियन) डॉलर के कर्ज को रद्द करते हुए एक ट्रिलियन डॉलर की राशि स्पेशल ड्रॉइंग राइट्स के जरिए उपलब्ध कराई जानी चाहिए

By Kiran Pandey
Published: Thursday 02 April 2020

नोवेल कोरोनावायरस (कोविड-19) से पैदा हुए भारी वित्तीय संकट से विकासशील देशों को बचाने के लिए 2.5 लाख करोड़ डॉलर के राहत पैकेज की जरूरत है। यह बात 30 मार्च, 2020 को यूनाइटेड नेशंस कॉन्फ्रेंस ऑन ट्रेड एंड डेवलपमेंट (अंकटाड) ने कही है। अंकटाड की रिपोर्ट के अनुसार, 2.5 लाख करोड़ डॉलर के इस पैकेज को तीन हिस्सों में बांटा जा सकता है, ताकि वित्तीय संकट का सामना अधिक व्यावहारिक और अर्थपूर्ण तरीके से किया जा सके। 

रिपोर्ट के अनुसार, इस क्रम में विकासशील देशों के एक लाख करोड़ (एक ट्रिलियन) डॉलर के कर्ज को रद्द करते हुए एक ट्रिलियन डॉलर की राशि स्पेशल ड्रॉइंग राइट्स के जरिए उपलब्ध कराई जानी चाहिए। हेल्थ रिकवरी के लिए जरूरी एक मार्शल प्लान के लिए भी 500 अरब डॉलर की जरूरत है, जिन्हें अनुदान के रूप दिया जाना चाहिए।

गौरतलब है कि मार्शल प्लान दूसरे विश्व युद्ध के बाद पश्चिमी यूरोपीय देशों की आर्थिक रिकवरी प्रोग्राम्स की फंडिंग के लिए अमेरिकी पहल थी। विश्व स्वास्थ्य संगठऩ (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, 203 से अधिक मुल्कों में कोविड-19 फैल चुका है। 31 मार्च तक दुनियाभर में इससे संक्रमितों की संख्या 8 लाख से अधिक और मरने वालों की संख्या 38,700 से अधिक हो गई थी।

इस महामारी के कारण दुनिया की एक-तिहाई से अधिक आबादी किसी न किसी तरह के लॉकडाउन या क्वारंटाइन में है, जिससे विकसित और विकासशील दोनों तरह के देशों की अर्थव्यवस्थाएं प्रभावित हो रही हैं। रिपोर्ट के अनुसार, तीन प्रमुख कारणों से कोरोना से पैदा होने वाली वैश्विक मंदी से विकासशील देश अधिक प्रभावित होंगे। 

निर्यात आय में भारी कमी

जनवरी में इस वायरस के दुनियाभर में फैलने से विकासशील देश कई मोर्चों पर प्रभावित हुए हैं, जैसे 

-        कैपिटल आउटफ्लो

-        बांड का लगातार विस्तार

-        करेंसी का अवमूल्यन

-        निर्यात आय में कमी, कमोडिटी कीमतों में गिरावट और पर्यटकों से आने वाली आय में कमी

कोरोना से विकासशील देशों के असंगठित क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं। इस सेक्टर के कामगार ही विकासशील देशों की इकोनॉमी की रीढ़ हैं। उन पर लगाए गए सख्त प्रतिबंधों ने इस महामारी की पीड़ा को कम करने संबंधी प्रयासों को और कठिन बना दिया है।

भारत के असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोगों में से 90 फीसदी से अधिक लोग केंद्र सरकार द्वारा लोगों को संक्रमण से बचाने के लिए लगाए गए इस देशव्यापी लॉकडाउन से प्रभावित हुए हैं। भारत की तरह जिम्बाब्वे का असंगठित क्षेत्र वहां के 95 फीसदी लोगों की जीविका का स्रोत है। वहां भी लॉकडाउन से यह सेक्टर बुरी तरह प्रभावित हुआ है।

घरेलू करेंसी का अवमूल्यन

अंकटाड की रिपोर्ट के अनुसार, फरवरी और मार्च के दौरान विकासशील देशों से पोर्टफोलियो आउटफ्लो बढ़कर 59 अरब डॉलर हो गया। यानी पोर्टफोलियो इन्वेस्टर्स ने इन देशों से इतने पैसे निकाले हैं। यह 2008 के ग्लोबल वित्तीय संकट के तुरंत बाद के 26.7 अरब डॉलर के पोर्टफोलियो आउटफ्लो की तुलना में दोगुना है। इस साल के शुरू से लेकर अभी तक विकासशील देशों की करेंसी में डॉलर की तुलना में 5 से 25 फीसदी तक का अवमूल्यन हुआ है।

निर्यात आय में कमी

अपने फॉरेन एक्सचेंज के लिए कई विकासशील देश कमोडिटी की कीमतों पर काफी अधिक निर्भर हैं। कोरोना संकट के बाद इसमें 37 फीसदी की गिरावट आई है। इस साल पूरी दुनिया पर मंदी छा सकती है, जिससे लाखों करोड़ डॉलर की ग्लोबल आय की क्षति होगी। इससे चीन और भारत को छोड़कर बाकी विकासशील देशों के लिए गंभीर संकट पैदा हो सकता है।

हालांकि, इस रिपोर्ट में यह नहीं बताया गया है कि भारत और चीन इससे क्यों बचे रहेंगे, जबकि हाल के अन्य आर्थिक अनुमानों में कहा गया था कि 2020 में भारत में मंदी छा सकती है। अंकटाड के अनुसार, कोरोना महामारी के कारण ग्लोबल इकोनॉमी पर छाए इस संकट से कम से कम एक लाख करोड़ डॉलर की क्षति हो सकती है। 2020 में ग्लोबल ग्रोथ गिरकर 1.5 फीसदी हो सकती है, जबकि इससे पहले ओईसीडी का अनुमान लगभग 3 फीसदी का था। इन सबके अलावा, राजस्व और फॉरेन एक्सचैंज संबंधी बाध्यताएं इस संकट को और गंभीर बना सकती हैं।

कोरोना संकट से 2030 के सस्टेनेबल डेवलपमेंट एजेंडे के मामले में विकासशील देशों की प्रगति भी प्रभावित होगी। इस मद में अगले दो वर्षों में विकासशील देशों के पास 2 से 3 लाख करोड़ डॉलर कम हो जाएंगे। इतना ही नहीं, गरीब मुल्कों में आधे पर सॉवरेन एक्सटरनल डेट संकट और गहरा सकता है। 

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