भारत में कोविड-19 के मामले 30,000 के करीब, लेकिन अभी सामुदायिक प्रसार नहीं: डब्ल्यूएचओ

कई देशों ने कम मामले आने के बाद ही सामुदायिक प्रसार की घोषणा कर दी है, लेकिन भारत ने नहीं की है

By Banjot Kaur
Published: Tuesday 28 April 2020
राजधानी दिल्ली के कनॉट प्लेस को सैनिटाइज करती फायर बिग्रेड की गाड़ी। फोटो: विकास चौधरी

 

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के द्वारा 27 अप्रैल को जारी रिपोर्ट में 27,892 कोविड-19 के मामले सामने आने के बाद भी भारत में सामुदायिक प्रसार (कॉम्युनिटी ट्रांसमिशन) शुरू नहीं हुआ है, बल्कि अभी यह क्लस्टर ऑफ केस की स्टेज है। डब्ल्यूएचओ के मानने के पीछे तर्क यह है कि इस तरह की रिपोर्ट किसी भी देश द्वारा दी गई जानकारी पर आधारित होती है।

डब्लूएचओ के मुताबिक वायरस के फैलाव का स्तर को हर सप्ताह के आंकड़ों के आधार पर किया जाता है और हर सप्ताह नई जानकारी मिलते ही इसे ऊपर या नीचे किया जा सकता है। क्लस्टर ऑफ केस की परिभाषा देते हुए डब्लूएचओ का कहना है कि यह स्थिति तब आती है जब किसी देश, कोई क्षेत्र या इलाके में कोविड-19 के मामले किसी खास स्थानों से ही आ रहे हों। इसे क्लस्टर ऑफ केस कहा जाता है।

केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के ताजा जानकारी के अनुसार 28 अप्रैल को भारत में कोविड-19 कर 29,435 मामले हो गए थे। डब्ल्यूएचओ की ही रिपोर्ट बताती हैं कि तब तक कई देशों ने कम मामले सामने आने के बाद भी सामुदायिक प्रसार (कम्युनिटी ट्रांसमिशन) की घोषणा कर दी थी। इसमें अमेरिकी क्षेत्र के 8 देश, अफ्रीका के 6 देश, दक्षिण एशिया का एक और यूरोप के 14 देश शामिल हैं। इनमें से कुछ देशों में 10,000 से भी कम मामले सामने आए थे, और कुछ में 1,000 से भी कम।

डाउन टू अर्थ ने डब्ल्यूएचओ के संवाद विभाग को इस संबंध में जानकारी स्पष्ट करने के लिए सवाल भेजे हैं। जानकारी मिलने पर स्टोरी में वह शामिल कर लिया जाएगा। 

इस बीच, वरिष्ठ वैज्ञानिक मानते हैं कि भारत में कॉम्युनिटी ट्रांसमिशन काफी पहले शुरू हो चुका है, लेकिन क्योंकि सरकार इसकी घोषणा नहीं करना चाहती कि ऐसा वाकई हुआ है। एक वरिष्ठ वैज्ञानिक कहती हैं कि यह अजीब है। मामलों में वृद्धि से क्या यह पता नहीं चल रहा है कि यह समाज के भीतर से ही आ रहे हैं?

कोविड-19 के मामले पिछले सप्ताह से अब रोजाना 1,000 से 1,500 के औसत से बढ़ रहे हैं। "ऐसा लगता है कि अधिकारी यह दिखाना चाहते हैं कि महामारी नियंत्रण में है और इसकी घोषणा नहीं करना चाहते। लॉकडाउन को भी एक महीने से ज्यादा हो गए। वायरस का इन्क्यूबेशन का समय भी 14 दिन का ही होता है। अगर वह कह रहे हैं कि उन्होंने सबके संचरण की कड़ी खोज ली है तो नए मामले तो बिल्कुल सामने नहीं आने चाहिए थे।" वह आगे कहती हैं।

स्वास्थ्य मंत्रालय की नेशनल हेल्थ सिस्टम्स रिसोर्स सेंटर की पूर्व प्रमुख टी सुंदरारमन कहती हैं, “बिना किसी संदेह के, भारत में कम्युनिटी ट्रांसमिशन काफी समय पहले शुरू हो चुका है। सरकार इसे खारिज कर सकती है, लेकिन यह जरूरी है कि जांच की क्षमता को बढ़ाकर यह समझा जाए कि समस्या किस हद तक फैली हुई है।"

महामारी और वैश्विक स्वास्थ्य विभाग की कनाडा रिसर्च चेयर मधुकर पाई ने भी यही चिंता जाहिर की।  "भारत में 29,000 से अधिक मामले सामने आ चुके हैं, लेकिन असल संख्या इससे कहीं अधिक होने की आशंका है। जांच कम होने की वजह से मामलों का सही पता नहीं चल रहा है। उदाहरण के लिए दक्षिण अफ्रीका भारत की तुलना में पांच गुना अधिक जांच कर रहा है। वहां संक्रमण के पुष्ट मामले भारत की तुलना में एक चौथाई हैं।" पाई कहते हैं।

उन्होंने आगे जोड़ा कि भारत के लिए यह महत्वपूर्ण है कि सरकारी और निजी क्षेत्र को जांच के लिए साथ लेकर आए। "जांच मुफ्त होनी चाहिए। इससे संक्रमण के पुष्ट मामलों को छोड़कर जो स्वस्थ हैं वह काम पर वापस जा सकते हैं।”

भारतीय आयुर्विज्ञान शोध संस्थान के मार्च में प्रकाशित शोध में कहा गया है कि सांस की गंभीर बीमारी के सभी मामले में जांच के बाद 40 प्रतिशत मामलों में किसी का कोई यात्रा का विवरण नहीं मिला। स्वास्थ्य मंत्रालय के द्वारा इसके बाद भी सामुदायिक प्रसार को लेकर कोई निर्णय नहीं लिया गया।

यह पहली बार नहीं है जब समुदायिक प्रसार को लेकर आशंकाएं जाहिर की गई। कई राज्य सरकार के अधिकारियों ने सामुदायिक प्रसार की तरफ इशारा किया। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कहती हैं, "समस्या काफी विकराल स्तर पर है," वह सामुदायिक प्रसार को लेकर सचेत कर रही हैं।

डाउन टू अर्थ से एक राज्य के अधिकारी ने कहा था कि उनके राज्य में सामुदायिक प्रसार शुरू हो गया है। मुम्बई की बीएमसी ने भी सामुदायिक प्रसार से इनकार किया है। हालांकि, वहां कई क्षेत्र में कोविड-19 के मामलों में कोविड-19 के मरीजों के संक्रमण की कड़ी को नहीं खोजा जा सका है।

पंजाब के मुख्यमंत्री ने पीजीआई चंडीगढ़ के एक शोध का हवाला देते हुए 10 अप्रैल को कहा था कि सामुदायिक प्रसार के संकेत मिलने शुरू हो गए हैं, लेकिन बाद में संस्थान ने ऐसे किसी शोध से इनकार कर दिया था।

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