दुनिया भर में आंख सम्बन्धी विकारों से ग्रस्त हैं 110 करोड़ लोग, 4.3 करोड़ हैं नेत्रहीन

2020 में करीब 59.6 करोड़ लोगों में दूरदृष्टि दोष था, जिनमें से करीब 4.3 करोड़ लोगों की आंखों की रौशनी छिन चुकी है| वहीं 51 करोड़ लोगों की पास की नजर कमजोर है

By Lalit Maurya
Published: Wednesday 17 February 2021

दुनिया भर में करीब 110 करोड़ लोग अंधेपन, दूरदृष्टि दोष और आंखों की अन्य समस्याओं से ग्रस्त हैं।आंकड़ों से पता चला है कि 2020 में करीब 59.6 करोड़ लोगों में दूरदृष्टि दोष था, जिनमें से करीब 4.3 करोड़ लोगों की आंखों की रौशनी छिन चुकी है।वहीं 51 करोड़ लोगों की पास की नजर कमजोर है।दुर्भाग्य की बात है कि ऐसा इसलिए है क्योंकि उनके पास इस विकार को दूर करने के लिए चश्मे नहीं हैं।यह जानकारी ग्लोबल आई हेल्थ कमीशन द्वारा जारी नई रिपोर्ट में सामने आई है जोकि अंतरराष्ट्रीय जर्नल लैंसेट में प्रकाशित हुई है|

आंखों की समस्या से ग्रस्त इन लोगों की करीब 90 फीसदी आबादी कम और मध्यम आय वाले देशों में रहती है। हालांकि आंखों के विकारों से ग्रस्त 90 फीसदी से अधिक लोगों का उपचार किया जा सकता है और इनमें इस समस्या को बढ़ने से रोका जा सकता है।वैसे तो आंखों की समस्या उम्र के किसी भी पड़ाव में सामने आ सकती है पर इसका सबसे ज्यादा शिकार बुजुर्ग और बच्चे बनते हैं|    

2050 तक देखने में पूरी तरह लाचार होंगे 6.1 करोड़ लोग

यह महत्वपूर्ण है कि महिलाओं, ग्रामीणों और अल्पसंख्यकों में दृष्टि दोष होने की संभावना सबसे अधिक होती है।ऐसे में इस व्यापक असमानता पर तुरंत ध्यान देने की जरुरत है। यह समस्या कितनी बड़ी है इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि 2050 तक आंखों की समस्या से ग्रस्त लोगों की संख्या 180 करोड़ हो जाएगी।इनमें से करीब 89.5 करोड़ लोगों में दूर दृष्टि दोष होगा जबकि 6.1 करोड़ लोग देखने में पूरी तरह असमर्थ होंगे|  

रिपोर्ट से पता चला है कि 2020 में नेत्र सम्बन्धी विकारों के चलते अर्थव्यवस्था को करीब 29,90,038 करोड़ रुपए (41,070 करोड़ डॉलर) का नुकसान उठाना पड़ा था जिसके लिए मुख्य तौर पर रोजगार का हो रहा नुकसान जिम्मेवार था।इसमें सबसे ज्यादा 655,231 करोड़ रुपए (9,000 करोड़ डॉलर) का नुकसान पूर्वी एशिया को और करीब 509,624 करोड़ रुपए (7,000 करोड़ डॉलर) का नुकसान दक्षिण एशिया को उठाना पड़ा था।दुख की बात है कि इन विकारों से ज्यादातर ग्रस्त रोगियों का इलाज हो सकता है, इसके बावजूद हम उससे होने वाले नुकसान को झेलने के लिए मजबूर हैं|

इस रिपोर्ट में लिंग और सामाजिक असमानता पर भी प्रकाश डाला गया है।यदि दुनिया भर में नेत्रहीन लोगों को देखें तो हर 100 पुरुषों की तुलना में 108 महिलाएं महिलाओं की आँखों की रौशनी जा चुकी है।इस असमानता के लिए सबसे ज्यादा सामाजिक और आर्थिक कारक जिम्मेवार हैं।यह दिखाता है कि दुनिया में आज भी पुरुषों की तुलना में महिलाओं के स्वास्थ्य के प्रति उतना ध्यान नहीं दिया जाता जितना देना चाहिए|

आंखों की रौशनी के कमजोर होने के लिए काफी हद तक बढ़ती उम्र भी जिम्मेवार होती है।यदि यूएन द्वारा किए पूर्वानुमान को देखें तो आने वाले 30 वर्षों में 65 वर्ष या उससे अधिक उम्रदराज लोगों की संख्या 70 करोड़ से बढ़कर 150 करोड़ हो जायेगी।ऐसे में इस समस्या पर ज्यादा ध्यान देने की जरुरत है।हालांकि पिछले 30 वर्षों (1990 से 2020) में आयु के आधार पर नेत्रहीनता के प्रसार की दर को देखें तो उसमें करीब 28.5 फीसदी की गिरावट आई है।जो आने वाले वक्त के लिए आशा की एक किरण है, जो उम्मीद जगाती है कि इस समस्या को दूर किया जा सकता है।   

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