क्यों बढ़ रहा है आंध्रप्रदेश के तटीय इलाकों में किडनी रोग, अध्ययन में खुलासा

आंध्र प्रदेश के समुद्रतटीय क्षेत्र में किडनी की बीमारी का फैलाव चालीस वर्ष तक के वयस्कों में ज्यादा है

By Kanhaiya Lal
Published: Tuesday 28 September 2021
आंध्र प्रदेश के समुद्रतटीय क्षेत्र में किडनी की बीमारी का फैलाव चालीस वर्ष तक के वयस्कों में ज्यादा है। Photo: Agnimirh Basu

कन्हैया लाल

आंध्र प्रदेश-श्रीकाकुलम जिले में लगभग दो सौ वर्ग किलोमीटर के समुद्रतटीय क्षेत्र में बसे कई गांव पिछले तीन दशकों से एक रहस्यमय किडनी की बीमारी से जूझ रहे हैं। यह बीमारी गरीब कृषकों में मुख्यरूप से व्याप्त है और चिकित्सा जगत के लिए अबूझ पहेली बनी हुई है। 

इसे चिकित्सीय भाषा में क्रोनिक किडनी डिजीज ऑफ अननोन ओरिजिन (CKDu) नाम दिया गया है। इस बीमारी में दोनों किडनी सिकुड़ कर छोटी होती जाती हैं और कुछ ही वर्षों में बिल्कुल खराब हो जाती हैं।

ऐसी बीमारी सामान्यतः साठ वर्ष से ज्यादा उम्र के उन लोगों में होती है जो कि पांच-दस वर्षों से डायबिटीज और हाइपरटेंशन (उच्च रक्तचाप) की समस्या से ग्रसित होते हैं। जबकि आंध्र प्रदेश के इस समुद्रतटीय क्षेत्र में इस बीमारी का फैलाव चालीस वर्ष तक के वयस्कों में ज्यादा है और इन लोगों को डायबिटीज और ब्लड प्रेशर की समस्या भी नही है।

इस रहस्यमयी किडनी की बीमारी को पर्यावरण प्रदूषण के साथ जोड़कर देखा जाता रहा है, हालांकि ये तथ्य अब तक वैज्ञानिक रूप से स्थापित नहीं है। दूषित पानी, भोजन, मिट्टी और हवा में मौजूद कुछ खास प्रदूषक इस बीमारी के मूल कारण हो सकते हैं।

पिछले दो वर्षों (2018 – 2020) में टेरी ने आंध्र प्रदेश के इस क्षेत्र में पर्यावण प्रदूषण का व्यापक मूल्यांकन किया। भूजल इस क्षेत्र में पीने के पानी का मुख्य स्रोत है  कुछ वर्ष पहले तक यहां अधिकांश लोग कुएं और हैंड पंप का पानी पीते थे।

अब इस क्षेत्र में आरओ शोधित जल भी उपलब्ध है। टेरी टीम ने इस क्षेत्र के चालीस गांवों में पानी की गुणवत्ता की जांच की। यहां जल असामान्य रूप से अम्लीय (pH 6.5 से कम) पाया गया।

गौरतलब है कि विश्व स्वास्थ संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मानक के अनुसार पेयजल का pH 6.5 से 8.5 के बीच होना चाहिए । इस अम्लीय भूजल में सिलिका और लेड के मात्रा भी असामान्य मात्रा में मापी गई।

सामान्यतः पेयजल में सिलिका की मात्रा 25 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम होती है। जबकि पेयजल में लेड की मात्रा विश्व स्वास्थ संगठन के मानकों के अनुसार 10 माइक्रोग्राम प्रति लीटर से कम होनी चाहिए ।

एक मिली ग्राम एक ग्राम का हजारवां और एक माइक्रोग्राम दस लाखवां भाग होता है। सिलिका पर्यावरण में रेत के रूप में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। सिलिका नॉनटॉक्सिक पदार्थ है, हालांकि हाल के शोध में पेयजल में 40 मिलीग्राम प्रतिलीटर से अधिक सिलिका किडनी सेल के लिए हानिकारक पायी गयी है।

वहीं लेड यानी सीसा का मानव स्वास्थ पर कई हानिकारक प्रभाव हैं। लेड की तय मानक से अधिक मात्रा शरीर में एनीमिया यानी खून की कमी, किडनी और दिमागी रोगों को न्योता देती है। हाल के चिकित्सा अनुसंधान में सिलिका और लेड का जुड़ाव क्रोनिक किडनी रोगों में पाया गया है और इस विषय पर गहन अनुसंधान की तत्काल आवश्यकता है।

अप्रत्याशित रूप से भूजल में थैलेट्स - जो कि प्लास्टिक को मुलायम बनाने के लिए डाले जाते हैं, परीक्षण किए गए सभी पानी के सैंपल में उपस्थित थे। थैलेट्स का जुड़ाव इस तरह के किडनी रोग में अब तक स्थापित सत्य नही और इस दृष्टि से भी रिसर्च की जरूरत है।

टेरी टीम ने किडनी बीमारी से ग्रसित इस क्षेत्र में मिट्टी का व्यापक परीक्षण किया। धान यहां की मुख्य फसल है। हरी सब्जियों की खेती भी होती है। जबकि काजू और नारियल व्यापार की दृष्टि के महत्वपूर्ण हैं।

अध्ययन क्षेत्र के सभी चालीस गांवों से मिट्टी के पांच-पांच सैंपल इन तीनों तरह की फसलों के खेतों से लिये गए और परीक्षण में भारी धातुओं जैसे लेड, क्रोमियम, निकल आदि की उपस्थिति जांची गयी।

सब्जियों के खेत से लिये गए मिट्टी के सैम्पल में भारी धातुओं की मात्रा सबसे ज्यादा थी और काजू के जंगल से ली गयी मिट्टी में भारी धातुओं की मात्रा सबसे कम थी। यह निष्कर्ष भारी धातुओं का स्रोत पता करने में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।

क्रोमियम इस क्षेत्र की महेन्द्रतान्या नदी के पानी में भी पाया गया । जबकि यहां प्रयोग किये जा रहे उर्वरक (फर्टिलाइजर) जैसे यूरिया, डीएपी, पोटाश में भी भारी धातुएं पायी गयीं ।

इन उर्वरकों और सिंचाई के जल के लगातार प्रयोग से मिट्टी में भारी धातुओं की मात्रा बढ़ना अपेक्षित है। हालांकि जंगल की मिट्टी में भी भारी धातुओं का उपस्थित होना दर्शाता है कि ये धातुएं यहां की मिट्टी में पहले से ही पर्याप्त मात्रा में हैं।

पीडीएस में मिलने वाले चावल यहां के निम्न आय वाले किसानों का मुख्य भोजन है। समुद्र तट के अति समीप बसे गांवों में सूखी मछलियां भी भोजन में सामान्यतः सम्मिलित होती हैं। हरी पत्तेदार सब्जियां जैसे पालक और चौलाई थोड़ी मात्रा में पूरे साल खाई जाती हैं।

इन चावल के सैंपल में भी भारी धातुएं मुख्यतः लेड 2 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम से ज्यादा पाई गई। लेड की इतनी मात्रा चावल के माध्यम में शरीर में पहुंचना किडनी के लिए घातक हो सकता है। मछली और सब्जी के सैंपल में भी इसी तरह के परिणाम प्राप्त हुए।

इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए इस क्षेत्र में पैदा हुए धान, उड़द, तिल के सैंपल भी जांचे गए और भारी धातुओं की उपस्थिति जांचे गए सभी प्रकार के सैंपल में मिले।

तुलनात्मक अध्ययन के लिए आंध्र प्रदेश के नौ और जिलों - विजयनगरम, विशाखापट्नम, ईस्ट गोदावरी, वेस्ट गोदावरी, गुंटूर, प्रकाशम, कृष्णा, नेल्लोर और कड़पा के दस-बीस चिन्हित गांवों से भूजल, मिट्टी और चावल के सैंपल जांचे गए।

अम्लीय जल में उच्च सिलिका और लेड केवल में श्रीकाकुलम के किडनी बीमारी ग्रसित क्षेत्र में ही मिले जबकि मिट्टी और चावल में लेड सभी जिलों से लिये गए सैंपल में पाए गए।

(लेखक इस अध्ययन से जुड़े हैं यह अध्ययन इंडियन कॉउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) की एक चिकित्सा टीम-द जॉर्ज इंस्टिट्यूट ऑफ ग्लोबल हेल्थ के साथ किया गया। टेरी टीम ने पर्यावरण मूल्यांकन स्वतंत्र रूप से किया। भूजल मूल्यांकन पर इंटरनेशनल जर्नल में एक शोधपत्र भी प्रकाशित किया जा चुका है)


Reference:

Kanhaiya Lal Meena Sehgal Vidhu Gupta Aastha Sharma Oommen John Balaji Gummidi Vivekanand Jha Aruna Kumari (2020). Assessment of groundwater quality of CKDu affected Uddanam region in Srikakulam district and across Andhra Pradesh, India. Groundwater for Sustainable 

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