यमुना प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट का स्वतः संज्ञान, एनजीटी की गठित समिति से मांगी रिपोर्ट

यमुना प्रदूषण मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार से दिल्ली जल बोर्ड के विरुद्ध जवाब दाखिल करने के लिए एक हफ्ते की मोहलत दी है। 

By Vivek Mishra
Published: Wednesday 20 January 2021
Photo : Vikas Choudhry

यमुना में अनियंत्रित अमोनिया और अन्य प्रदूषकों के मामले की सुनवाई भले ही अब तक नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में चला हो लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस पर स्वतः संज्ञान लेते हुए सुनवाई शुरू की है। अब तक दो सुनवाई हो चुकी है। 

19 जनवरी, 2020 को दूसरी सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने एनजीटी की ओर से यमुना प्रदूषण मामले को देखने वाली गठित समिति से अपनी रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे वाली पीठ ने एनजीटी की गठित समिति को मामले में पक्षकारों में शामिल भी किया है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने प्रदूषित नदियों के उपचार संबंधी मुद्दों पर स्वतः संज्ञान लिया था। 

19 जनवरी, 2020 को सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता और मामले में न्याय मित्र मीनाक्षी अरोड़ा ने पीठ को जानकारी दी कि 18 जनवरी, 2020 को पानी की गुणवत्ता बेहतर थी और अमोनिया का स्तर भी नियंत्रित था। यदि यमुना की यही स्थिति बनी रहती है तो यह बेहतर होगी। वहीं, उन्होंने यह जानकारी भी दि कि हरियाणा सरकार ने यमुना में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) और कॉमन इफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (सीईटीपी) की गुणवत्ता में सुधार करने का आश्वासन दिया है। 

वहीं, दिल्ली औऱ हरियाणा के बीच पानी के बंटवारे व प्रदूषण के आरोप-प्रत्यारोप पर सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार को एक हफ्ते के भीतर दिल्ली जल बोर्ड के आरोपों पर अपना हलफनामा दाखिल करने को कहा है। 

इससे पहले 13 जनवरी, 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर पहली सुनवाई की थी और प्रदूषित नदी हिस्सों व एसटीपी और सीईटीपी की स्थितियों पर प्राधिकरणों से रिपोर्ट तलब की थी। 

यमुना पुनरुद्धार के लिए कानूनी लड़ाई लड़ने वाले यमुना जिए अभियान के संयोजक मनोज मिश्रा ने डाउन टू अर्थ से कहा कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के फैसले के करीब पांच बरस बीत चुके हैं लेकिन जो कार्रवाई की जानी चाहिए थी, वह अब तक नहीं की जा सकी है। सफाई के नाम पर अब भी प्राधिकरणों के लड़ाई-झगड़े और आरोप-प्रत्यारोप जारी हैं। 

वहीं, 25 मार्च से 31 मई, 2020 तक लगे लॉकडाउन के चलते तमाम गतिविधियों पर लगी रोक से यमुना को भी राहत की सांस मिली थी। अप्रैल, 2020 में दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति की रिपोर्ट में बताया गया था कि  यमुना का पानी पिछले साल अप्रैल महीने की तुलना में काफी हद तक साफ हुआ है। समिति ने दिल्ली से गुजरने वाली यमुना में नौ जगहों से नमूने उठाए थे। इन नौ में से चार जगहों पर पानी में बीओडी (बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड) में 18 से लेकर 33 फीसदी तक की कमी आई थी। जबकि, यमुना में गिरने वाले नालों का पानी भी पहले की तुलना में साफ हुआ था। 

दिल्ली में प्रवेश करने से पहले यमुना नदी अपेक्षाकृत साफ-सुथरी है। लेकिन, यहां पर प्रवेश करने के साथ ही यमुना का पानी बेहद गंदा होने लगता है। यह प्रदूषण इस हद तक है कि नदी के कई हिस्सों में जलीय जीवन का बचे रहना भी संभव नहीं रह गया है। इसी के चलते कुछ लोग यमुना को मृत नदी की संज्ञा भी देने लगे हैं। 

वहीं, लॉकडाउन के बाद यमुना के कई स्थानों पर प्रदूषण का स्तर फिर से बढ़ने लगा, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले में स्वतः संज्ञान लिया है।

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